जयपुर. 1994 में A meeting by the River के लिए विश्व का सर्वोच्च सम्मान ग्रैमी अवार्ड जीतकर भारत और भारतीय संगीत को विश्व में शीर्ष स्थान दिलाने वाले पं. विश्व मोहन भट्ट (Maestro Vishwa Mohan Bhatt) आज विश्व पटल पर भारत की पहचान बन गए हैं. मोहन वीणा और विश्व वीणा का सृजन कर चुके पं. भट्ट विश्व विशिष्ट वादन शैली से गायन और वादन तकनीक का अनूठा मिश्रण करने के लिए जाने जाते हैं. अपने जन्मदिन के अवसर पर ईटीवी भारत से खास बातचीत में पंडित विश्व मोहन भट्ट ने बताया कि उनका जन्म महान संगीतज्ञों और कला-साहित्य के गुणीजन जयपुर के भट्ट घराने में हुआ (Music Of Rajasthan). जहां शास्त्रीय संगीत को समर्पित लोग रहे. संगीत की परम्परा उनकी पिछली कई पीढ़ियों से चली आ रही है.
कल्पना से दिया साकार रूप: अपने वाद्य यंत्र मोहनवीणा के बारे में उन्होंने बताया कि हर कलाकार की कल्पना होती है. उनमें भी कुछ नया करने की ललक थी. करीब 60 साल पहले उन्होंने गिटार के साथ प्रयोग करना शुरू किया. उसमें नए तार लगाए. अपनी सोच समझ से कुछ खूटियां भी लगाईं. गिटार में जो तार पहले से लगे थे, उन्हें हटा दिया और सितार और सरोद के तार को उसमें लगाना शुरू कर दिया. फिर इसमें तुंबा और 20 तार लगाकर वीणा का रूप दिया. जिसे मोहनवीणा नाम दिया. मोहन मीणा तमाम भारतीय वाद्य यंत्रों का मिश्रण है. यही मोहनवीणा और पंडित विश्वमोहन भट्ट आज एक दूसरे का पर्याय हैं.
अपने संगीत के सफर के बारे में पंडित विश्व मोहन भट्ट ने बताया कि बचपन से ही घर पर हर तरफ से संगीत की धुनें आती थीं. माता-पिता संगीत गुरु थे. ऐसे में उनके संगीत सीखने की शुरुआत शास्त्रीय गायकी से हुई. असल में बचपन से ही कान में संगीत की ध्वनियां जाती थी. इस बात का उन्हें बहुत फायदा मिला. उन्होंने तमाम राग रागिनियां ऐसे ही सुन-सुनकर सीखीं.
परम्परा बन गई ये: शास्त्रीय संगीत की परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चलती हैं. जिस तरह उन्होंने अपने पूर्वजों से सीखा उसी तरह उनके दोनों पुत्र सलील भट्ट और सौरभ भट्ट भी संगीत कला से जुड़े हुए हैं. यही नहीं उनके पुत्र भी ये विधा सीख रहे हैं. ये परंपरा है कि उन्होंने जो ज्ञान अर्जित किया, वो अगली जनरेशन को हस्तांतरण करना बहुत आवश्यक है. ये कला देश की धरोहर है. ये किसी मॉन्यूमेंट की तरह दिखाई नहीं देती है, ये सिर्फ सुनाई देती है. इसकी गहन तालीम होती है. जिसमें काफी वक्त देना पड़ता है. और ये हर पिता की इच्छा होती है कि वो अपने पुत्र को खुद से ज्यादा सिखाएं ताकि वो दुनिया में नाम करें.
पढ़ें-World Music Day 2022 : जब मां की लोरी कानों तक पहुंची तो कोमा से बाहर आ गया बच्चा...
आज की पीढ़ी स्मार्ट: वर्तमान समय के युवाओं को लेकर उन्होंने कहा कि आज का यूथ बहुत स्मार्ट और इंटेलिजेंट है. ऐसा नहीं है कि उनकी भारतीय शास्त्रीय संगीत से बहुत दूर है. लेकिन झिझक जरूर है. उन्हें लगता है कि उन्हें शास्त्रीय संगीत समझ नहीं आएगा. लेकिन यूथ से उनका कहना है कि समझने की जरूरत नहीं, आप सुन लीजिए इसके बाद समझ आ जाएगी कि शास्त्रीय संगीत क्या होता है. और अब एक ऑर्गेनाइजेशन के जरिए यूथ को कम्युनिकेट करते हुए और उन तक संगीत पहुंचाते हैं. यही वजह है कि अब शास्त्रीय संगीत और युवा पीढ़ी एक हो चुकी है.
'पिता राष्ट्रीय धरोहर' : पंडित विश्व मोहन भट्ट के बड़े बेटे सलिल भट्ट भी संगीत जगत का जाना माना नाम है. अपने पिता को गुरु कहने वाले सलिल भट्ट ने बताया कि उनके गुरुजी का जन्मदिन उनके लिए सबसे खुशी वाला दिन है. हिंदुस्तानी संस्कृति में गुरु की महिमा सबसे ऊपर है. कहा भी जाता है कि गुरु और भगवान एक साथ सामने आ जाए तो पहले गुरु के चरणों में जाना चाहिए. क्योंकि वही भगवान का, अच्छाई और सच्चाई का रास्ता दिखाते हैं. यही वजह है कि आज पिता और पुत्र का रिश्ता बैकग्राउंड में चला गया. आज वो अपने गुरु के लिए बस यही कामना करते हैं कि ईश्वर उनकी आयु को न सिर्फ लंबी करें, बल्कि उनको स्वस्थ रखें क्योंकि पंडित विश्व मोहन भट्ट राष्ट्रीय धरोहर है. अब ये सिर्फ उनके या उनके भाई के पिता, या परिवार के सदस्य नहीं बल्कि पूरे विश्व में भारत की धरोहर के रूप में हैं.
पंडित जी ने अमेरिका सहित 16 देशों की नागरिकता ठुकराते हुए देश की मिट्टी सर्वोपरि माना. पद्म भूषण, पद्मश्री, राष्ट्रीय संगीत नाटक अकादमी अवार्ड, राष्ट्रीय तानसेन संगीत सम्मान जैसे ना जाने कितने हजारों सम्मान और अवार्ड से पंडित विश्व मोहन भट्ट के घर का हर कोना सजा हुआ है. देश की ऐसी विलक्षण प्रतिभा को ईटीवी भारत जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएं देता है.