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लॉकडाउन में दो वक्त की रोटी की कहानी, सुने नारियल वाले बाबा की जुबानी - जयपुर नारियल बाबा की कहानी

कोरोना में लगे लॉकडाउन में संक्रमित लोगों ने जिंदगी छोड़ दी, लेकिन कुछ ऐसे भी लोग है, जो अपनी जिंदगी को ही कोस रहे है और कोसे भी क्यों न, लॉकडाउन में गरीबी का दंश झेलने के बाद उनकी जिंदगी दिन-प्रतिदिन बदतर होती जा रही है. ऐसी ही कहानी है जयपुर के एक बुजुर्ग बाबा की है, जिन्होंने लॉकडाउन में रूखा-सूखा खाकर पेट भरा. यही नहीं सरकारी सिस्टम ने मदद के नाम पर उनके साथ भद्दा मजाक किया. देखिए एक रिपोर्ट.

जयपुर नारियल बाबा की कहानी, Story of Jaipur Coconut Baba
वीरेंद्र वर्मा ने लॉकडाउन में झेला आर्थिक संकट
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Published : Jun 12, 2021, 4:01 PM IST

जयपुर. शहर के सबसे बड़े उद्यान सेंट्रल पार्क के बाहर बरसों से नारियल 64 वर्षीय वीरेंद्र वर्मा हर रोज अपने घर से 15 किलोमीटर दूर पैदल रेहड़ी लेकर पार्क में नारियल बेचते है. ऐसे में एक नारियल के 60 रुपये मिलते है. ऐसे ही रोजाना सुबह 3 घण्टे पार्क के बाहर रेहड़ी लगाकर खर्चा निकाल 250-300 रुपये कमाई कर अपने परिवार का पेट भरते थे. लेकिन लॉकडाउन में उन्हें दो वक्त की रोटी के भी लाले पड़ गए. हालात इस कदर बिगड़ गए कि कभी चाय में ब्रेड, तो कभी सुखी रोटी के साथ मिर्च लगाकर पेट भरा.

वीरेंद्र वर्मा ने लॉकडाउन में झेला आर्थिक संकट

छलकती आंखों से अपना दर्द बयां करते हुए वीरेंद्र वर्मा बताते है कि, 2014 से पार्क के बाहर ठेला लगा रहा हुं, लेकिन जिंदगी में पहली बार भूखे मरने की नोबत आ गई. लॉकडाउन में हालात इस कदर बिगड़ गए कि, उल्टा-सीधा खा करके पेट की आंतो को शांत किया. जिसमें कभी चाय के साथ ब्रेड खाई तो कभी नमकीन की फाक मारी, लेकिन दर्दनाक पलों को जैसे तैसे जी लिया.

पढ़ेंः पायलट के पीछे-पीछे डोटासरा भी पहुंचे दिल्ली 'दरबार', आलाकमान से करेंगे मुलाकात

सरकारी राशन के लिए राशन की दुकान गए तो गेंहू नहीं मिला. यदि कोई संस्थान मदद करने के लिए भी आती तो सिर्फ घर के एक सदस्य के लिए खाना दे फोटो खींचवा निकल लेते. यही नहीं राज्य सरकार की ओर से चलाई जा रही इंदिरा रसोई में भी खाने के लिए दूर तक जाते तो सिर्फ एक जने को ही वहां बैठा कर खिलाते, लेकिन घर नहीं लेकर जाने देते. ऐसा एक बार नहीं बार-बार हुआ. जिसे देख उनका परिवार अपनी तंगहाली को कोसता रहा.

यही नहीं बाबा ने पेट भरने के लिए साहूकारों से ब्याज पर धनराशि तक ले ली और उन्ही में से कुछ रुपयों से हिम्मत जुटा कर लॉकडाउन में ही नारियल बेचने निकल पड़ते, लेकिन पूरे दिन में 5-7 नारियल ही बिकते थे. जिससे मुश्किल से 50 रुपये की कमाई होती थी. जबकि इतना तो लॉकडाउन में घर से शहर में आने का किराया लग जाता था. जिसकी वजह से ना धंधा चला और ना ही ठीक से पेट भर पाएं ऊपर से अब कर्ज के तले दबे गए.

इसको लेकर राजस्थान हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता रविशंकर शर्मा ने बताया कि, वो पिछले 1 साल से बाबा से नारियल पानी पी रहे है. लेकिन लॉकडाउन में सेंट्रल पार्क बंद होने से बाबा की आजीविका पर संकट आ गया. इन्होंने लॉकडाउन में कैसे अपने दिन काटे इन्हें सिर्फ यही महसूस कर सकते है. इनको न तो खाने के लिए कुछ मिला और न ही कुछ सरकारी सहायता. इस तरह से कोरोना काल में इनका जीवन संकटों भरा रहा.

पढ़ेंः पायलट गुट के इस विधायक ने कहा, गांधी परिवार के बिना एक दिन में खत्म हो जाएगी कांग्रेस

अब जब अनलॉक हो चुका है, तो बाबा ने इस उम्मीद से फिर हिम्मत जुटा अपना काम शुरू किया है कि वो अपना कर्ज चुका फिर से अपने परिवार का पेट पाल सकें, ताकि बेपटरी हुई उनकी जिंदगी की गाड़ी फिर से उसी रफ्तार से दौड़ सके. अब बाबा की भगवान से सिर्फ एक ही प्रार्थना है की ऐसे दुखद पल वापस न दिखाएं.

जयपुर. शहर के सबसे बड़े उद्यान सेंट्रल पार्क के बाहर बरसों से नारियल 64 वर्षीय वीरेंद्र वर्मा हर रोज अपने घर से 15 किलोमीटर दूर पैदल रेहड़ी लेकर पार्क में नारियल बेचते है. ऐसे में एक नारियल के 60 रुपये मिलते है. ऐसे ही रोजाना सुबह 3 घण्टे पार्क के बाहर रेहड़ी लगाकर खर्चा निकाल 250-300 रुपये कमाई कर अपने परिवार का पेट भरते थे. लेकिन लॉकडाउन में उन्हें दो वक्त की रोटी के भी लाले पड़ गए. हालात इस कदर बिगड़ गए कि कभी चाय में ब्रेड, तो कभी सुखी रोटी के साथ मिर्च लगाकर पेट भरा.

वीरेंद्र वर्मा ने लॉकडाउन में झेला आर्थिक संकट

छलकती आंखों से अपना दर्द बयां करते हुए वीरेंद्र वर्मा बताते है कि, 2014 से पार्क के बाहर ठेला लगा रहा हुं, लेकिन जिंदगी में पहली बार भूखे मरने की नोबत आ गई. लॉकडाउन में हालात इस कदर बिगड़ गए कि, उल्टा-सीधा खा करके पेट की आंतो को शांत किया. जिसमें कभी चाय के साथ ब्रेड खाई तो कभी नमकीन की फाक मारी, लेकिन दर्दनाक पलों को जैसे तैसे जी लिया.

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सरकारी राशन के लिए राशन की दुकान गए तो गेंहू नहीं मिला. यदि कोई संस्थान मदद करने के लिए भी आती तो सिर्फ घर के एक सदस्य के लिए खाना दे फोटो खींचवा निकल लेते. यही नहीं राज्य सरकार की ओर से चलाई जा रही इंदिरा रसोई में भी खाने के लिए दूर तक जाते तो सिर्फ एक जने को ही वहां बैठा कर खिलाते, लेकिन घर नहीं लेकर जाने देते. ऐसा एक बार नहीं बार-बार हुआ. जिसे देख उनका परिवार अपनी तंगहाली को कोसता रहा.

यही नहीं बाबा ने पेट भरने के लिए साहूकारों से ब्याज पर धनराशि तक ले ली और उन्ही में से कुछ रुपयों से हिम्मत जुटा कर लॉकडाउन में ही नारियल बेचने निकल पड़ते, लेकिन पूरे दिन में 5-7 नारियल ही बिकते थे. जिससे मुश्किल से 50 रुपये की कमाई होती थी. जबकि इतना तो लॉकडाउन में घर से शहर में आने का किराया लग जाता था. जिसकी वजह से ना धंधा चला और ना ही ठीक से पेट भर पाएं ऊपर से अब कर्ज के तले दबे गए.

इसको लेकर राजस्थान हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता रविशंकर शर्मा ने बताया कि, वो पिछले 1 साल से बाबा से नारियल पानी पी रहे है. लेकिन लॉकडाउन में सेंट्रल पार्क बंद होने से बाबा की आजीविका पर संकट आ गया. इन्होंने लॉकडाउन में कैसे अपने दिन काटे इन्हें सिर्फ यही महसूस कर सकते है. इनको न तो खाने के लिए कुछ मिला और न ही कुछ सरकारी सहायता. इस तरह से कोरोना काल में इनका जीवन संकटों भरा रहा.

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अब जब अनलॉक हो चुका है, तो बाबा ने इस उम्मीद से फिर हिम्मत जुटा अपना काम शुरू किया है कि वो अपना कर्ज चुका फिर से अपने परिवार का पेट पाल सकें, ताकि बेपटरी हुई उनकी जिंदगी की गाड़ी फिर से उसी रफ्तार से दौड़ सके. अब बाबा की भगवान से सिर्फ एक ही प्रार्थना है की ऐसे दुखद पल वापस न दिखाएं.

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