जयपुर. राजस्थान में हाल ही में 17 नई नगर पालिकाओं (newly formed municipalities) का गठन किया गया है. जिनमें 50 से ज्यादा गांव शामिल कर दिए गए हैं. हालांकि इनमें से अधिकतर में शहरी सुविधाएं हाशिए पर हैं.
लेकिन नगरीय निकायों में शामिल होने के कारण यहां के बाशिंदों पर नगरीय विकास कर लागू हो गया है. साथ ही कृषि भूमि की रजिस्ट्री कराना भी महंगा सौदा साबित हो रहा है. इससे राज्य सरकार को तो फायदा मिल रहा है. लेकिन आम आदमी की जेब कट रही है.
स्वायत्त शासन विभाग ने जनसंख्या, प्रति व्यक्ति आय, आजीविका और दूसरे मानकों के आधार पर विभिन्न ग्राम पंचायतों को जोड़ते हुए 17 नई नगर पालिकाओं का गठन कर दिया.
नई नगर पालिका के लिए तय मानक
क्षेत्र की जनसंख्या | 10 हजार/ अधिक |
जनसंख्या घनत्व | 200 व्यक्ति/ वर्ग km या अधिक |
राजस्व प्राप्ति के स्रोत या औसत प्रति व्यक्ति आय | 10 हजार रुपये/व्यक्ति या अधिक |
कृषि नियोजन का प्रतिशत | 10 प्रतिशत या अधिक |
आर्थिक महत्व | शहरी विकास की संभावना व अन्य बिंदू |
ये हैं नई नगर पालिकाएं
जिला | नगरपालिका का नाम |
जयपुर | बस्सी, पावटा |
अलवर | रामगढ़, बानसूर, लक्ष्मणगढ़ |
दौसा | मंडावर |
सवाई माधोपुर | बामनवास |
जोधपुर | भोपालगढ़ |
सिरोही | जावाल |
भरतपुर | उच्चैन, सीकरी |
धौलपुर | सरमथुरा, बसेड़ी |
करौली | सपोटरा |
कोटा | सुल्तानपुर |
बारां | अटरू |
श्रीगंगानगर | लालगढ़ जाटान |
अब नगरीय विकास कर की मार
नई नगर पालिकाओं के गठन के बाद से स्थानीय लोगों की नगरीय विकास कर के नाम पर जेब कटना शुरू हो गई है. नगरीय सीमा में शामिल होते ही ग्रामीण इलाका नगरीय विकास के दायरे में आ गया. ऐसे में 300 वर्गगज से अधिक क्षेत्रफल का व्यक्तिगत मकान, 1500 वर्ग फीट से ज्यादा का फ्लैट, 100 वर्गगज से बड़ी कमर्शियल और औद्योगिक संपत्ति के नाम पर यूडी टैक्स वसूला जाता है.
वहीं नगरीय सीमा में शामिल होने के बाद 1000 वर्गगज की कृषि भूमि की रजिस्ट्री पर डीएलसी की 3 गुणा गणना की जाती है. जबकि इसके परे सरकार ने नवगठित निकायों में सुविधाओं का ब्लूप्रिंट तक तैयार नहीं किया है. ऐसे में सुविधाओं से ज्यादा जमीनों की डीएलसी से लेकर टैक्स का बोझ बढ़ गया है.
इस संबंध में एलएसजी सचिव भवानी सिंह देथा ने कहा कि अभी नवगठित 17 नगर पालिकाओं के इलेक्शन होना बाकी है. वहां फिलहाल कार्यवाहक अधिकारी लगाए गए हैं. उन्हें फंड भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं. यहां सुविधाएं विस्तार होने में समय लगेगा.
हालांकि कलेक्टर स्तर पर गठित कमेटी ये तय कर सकती है कि शहरी सुविधाएं विकसित नहीं होने तक डीएलसी दरें नहीं बढ़ाई जाएं. बहरहाल, निकाय सीमा में शामिल जमीनों की डीएलसी दर ज्यादातर मामलों में ज्यादा रहती है, ऐसे में भले ही सुविधाएं ज्यादा न हों लेकिन अब यहां रजिस्ट्री पहले से महंगी हो गई है.