जयपुर. दीपावली का पर्व सिर पर है और इस मौके पर हर व्यक्ति अपने घर को सजाने के लिए मार्केट से रंग-बिरंगी लाइट लेकर घर पहुंचता है. हालांकि, अब तक चीन की ओर से निर्मित चाइनीज लाइट घरों को जगमग किया करती थी. लेकिन इस बार चीनी सामान के पुरजोर विरोध के बीच बाजारों में स्वदेशी झालर भी उपलब्ध हैं, जो जयपुर के सेवा भारती के कौशल विकास केंद्र पर बनाई जा रही है.
कोरोना काल में हजारों लोग बेरोजगार हुए, जिनमें से सैकड़ों लोग अभी भी रोजगार की तलाश में इधर-उधर भटक रहे हैं. कोरोना के दौर में ही कुछ लोगों ने स्वावलंबन का पाठ भी पढ़ा और अपनी आजीविका चलाने के लिए स्वदेशी सामान का निर्माण करने में जुट गए.
कौशल विकास केंद्र में किया जा रहा स्वदेशी झालर का निर्माण
राजधानी जयपुर के 22 गोदाम के पास स्थित सेवा भारती भवन में संचालित कौशल विकास केंद्र में स्वदेशी झालर का निर्माण किया जा रहा है. इस केंद्र पर कच्ची बस्तियों के बेरोजगार युवक-युवतियों को स्वदेशी झालर बनाने का प्रशिक्षण दिया गया. अब जयपुर और आसपास के करीब 55 परिवार सेवा भारती के सानिध्य में स्वदेशी लाइट बना रहे हैं. यहीं से उन्हें घर के लिए कच्चा माल भी दिया जाता है. ये परिवार झालर का निर्माण कर सेवा भारती केंद्र तक पहुंचाते हैं और यहां से इन्हें न्यूनतम दरों पर बाजार में उपलब्ध कराया जा रहा है. अब तक यहां करीब 8,000 से ज्यादा स्वदेशी झालर लाइट बनाई जा चुकी हैं जो इस दीपावली पर घरों को रोशन करेंगी.
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2 साल के प्रयास के बाद मेहनत लाया रंग
सेवा भारती के सह मंत्री धर्मचंद जैन ने बताया कि देश के प्रधानमंत्री से प्रेरणा मिलने के बाद स्वदेशी झालर लाइट के निर्माण का कार्य शुरू किया गया. 2 साल पहले भी इस कार्य को शुरू किया गया था, लेकिन तब सफलता नहीं मिल पाई थी. उन्होंने कहा कि इस बार का प्रयास रंग लाया है. अभी कच्चे माल की बड़ी समस्या आ रही है, यही वजह है कि एलईडी लाइट ताइवान से, होल्डर कैप अहमदाबाद से और वायर दिल्ली से मंगाया जा रहा है. इसकी वजह से इन लाइट की कीमत ज्यादा पड़ रही है. कीमत कम होना तभी संभव हो पाएगा जब जयपुर में ही कच्चा माल उपलब्ध होगा.
स्वदेशी झालर की लाइफ 25 हजार घंटे
सेवा भारती कौशल विकास केंद्र के प्रमुख सोनू वर्मा ने बताया कि अभी एलईडी लाइट की झालर बनाई जा रही है, जो मल्टी कलर, रेड, ग्रीन, वाइट और वॉर्म वाइट के सिंगल कलर में उपलब्ध है. इनका विद्युत खपत भी 2.9 वाट प्रति घंटे का है और इनकी लंबाई करीब 40 फुट है. उन्होंने कहा कि इनकी लाइफ 25 हजार घंटे है. झालर का शुल्क 140 रुपए प्रति झालर है और यदि कोई 500 से ज्यादा झालर खरीदता है तो उन्हें 115 रुपए प्रति झालर की दर से उपलब्ध कराई जाती है.
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आजीविका की माध्यम बनी जानकारी
कौशल विकास केंद्र पर काम करने वाली भगवती ने बताया कि वो बीते 3 महीनों से यहां काम कर रही हैं. इसी सेवा केंद्र पर पहले वो कोचिंग लिया करती थी और यहीं उन्हें स्वदेशी झालर निर्माण की जानकारी मिली. यह जानकारी अब उनकी आजीविका का माध्यम बनी हुई है. उन्हें पहले प्रशिक्षण दिया गया और जितनी झालर का वो निर्माण करती हैं, उसका उन्हें 15 से 20 रुपए प्रति झालर भुगतान किया जाता है.
जयपुर के अलावा अलवर, भरतपुर, सीकर, चूरू, सवाई माधोपुर और कोटा में भी इसी तरह स्वदेशी झालर का निर्माण किया जा रहा है. यह झालर इस दीपावली घरों को तो रोशन करेगी ही, साथ ही इससे उन परिवारों के घरों को भी रोशन करेगी जिन्हें स्वदेशी झालर लाइट से रोजगार मिला है.