जयपुर. राजस्थान राज्यसभा चुनाव में निर्दलीय डॉ. सुभाष चंद्रा की एंट्री के बाद मौजूदा चुनाव काफी रोचक हो गए हैं. हार का डर केवल बीजेपी समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी डॉ. चन्द्रा को ही नहीं बल्कि कांग्रेस को भी है. क्योंकि 3 सीटों पर जीत के लिए कांग्रेस के पास भी स्वयं के पर्याप्त विधायक नहीं हैं. लिहाजा इन चुनावों में निर्दलीय और अन्य छोटे दलों के विधायकों की मदद लेना दोनों की मजबूरी (Independent MLAs become important in Rajya Sabha election) होगा. कांग्रेस 126 विधायकों के समर्थन का कर रही है तो डॉ. चन्द्रा खुद को 45 वोट मिलने की बात कहते हैं. लेकिन यह दावा किस आधार पर है और वे कौन से विधायक हैं, जिन पर बीजेपी की निगाहें है, यह भी देख लें...
इन पर विधायकों पर है भाजपा का फोकस: आरएलपी के 3 विधायक-राज्यसभा चुनाव में भाजपा समर्थित निर्दलीय को सबसे बड़ा साथ आरएलपी के 3 विधायकों का मिलेगा. पूर्व में आरएलपी बीजेपी के साथ गठबंधन में रही है और वर्तमान में कांग्रेस सरकार के खिलाफ आरएलपी संयोजक हनुमान बेनीवाल खुलकर बोलते हैं. बताया जा रहा है कि आरएलपी ने भाजपा समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी को समर्थन देने पर रजामंदी दे दी है. आरएलपी के मौजूदा 3 विधायकों में पुखराज गर्ग, नारायण बेनीवाल और इंदिरा देवी शामिल हैं.
ओमप्रकाश हुंडला: पिछली वसुंधरा राजे सरकार में हुंडला संसदीय सचिव रह चुके हैं लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी का टिकट ना मिलने के कारण वे निर्दलीय लड़े और चुनाव भी जीते. पिछली बार कांग्रेस व समर्थित विधायकों की बाड़ेबंदी में ओमप्रकाश हुंडला शामिल नहीं हुए थे. फिलहाल राज्यसभा चुनाव में हुंडला पर बीजेपी का फोकस है. बताया जा रहा है कि वसुंधरा राजे सहित कुछ नेताओं ने हुंडला से संपर्क भी किया है.
सुरेश टांक: किशनगढ़ से निर्दलीय विधायक सुरेश टांक के पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से काफी अच्छे संबंध हैं. वहीं निर्दलीय भाजपा समर्थित प्रत्याशी सुभाष चंद्रा से भी उनके अच्छे संबंध बताए जा रहे हैं. सुरेश टांक पिछले विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के कार्यकर्ता भी रह चुके हैं और उन्हें संगठनात्मक रूप से कुछ दायित्व भी दिए गए थे. वहीं पूर्व में कांग्रेस की ओर से अपने और समर्थित विधायकों की बाड़ेबंदी में सुरेश टांक शामिल नहीं हुए थे. ऐसे में वसुंधरा राजे के जरिए बीजेपी सुरेश टांक से भी समर्थन जुटाने का प्रयास करेगी.
संदीप यादव: बसपा के टिकट से विधायक बनकर कांग्रेस में शामिल हुए संदीप यादव भी भाजपा के पुराने सहयोगी रहे हैं. पिछली वसुंधरा राजे सरकार के कार्यकाल के दौरान संदीप यादव युवा बोर्ड में उपाध्यक्ष लगाए गए थे, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने क्षेत्र के मौजूदा समीकरणों के चलते बहुजन समाज पार्टी के टिकट से चुनाव लड़ा और जीतने के बाद कांग्रेस में शामिल हो गए. ऐसे में पुराने संबंधों के आधार पर संदीप यादव से भी बीजेपी संपर्क में है. बताया जा रहा है मौजूदा कांग्रेस सरकार में अहम जिम्मेदारी ना मिलने से भी संदीप यादव नाराज हैं.
बलजीत यादव: निर्दलीय विधायक बलजीत यादव लगातार विधानसभा और उसके बाहर बेरोजगारों के मुद्दों पर सरकार को घेर रहे हैं. वहीं मौजूदा सरकार में समर्थन के बाद भी उन्हें किसी प्रकार से कोई बड़ा पद या जिम्मेदारी नहीं मिल पाई. ऐसे में बीजेपी उनसे भी संपर्क के जरिए अपने समर्थन में करने का प्रयास कर रही है.
रमिला खड़िया: भाजपा की निगाहें निर्दलीय विधायक रमिला खड़िया पर भी है जो वर्तमान में मौजूदा सरकार से नाराज भी बताई जा रही हैं. बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री आवास पर बैठक के दौरान बुलाने के बावजूद वो शामिल नहीं हुईं. वहीं राज्य सरकार को पूर्व में दिए गए समर्थन के बाद भी राजनीतिक रूप से कोई नियुक्ति उन्हें नहीं मिल पाई.
बीटीपी के 2 विधायक: बीटीपी के 2 विधायकों का समर्थन यूं तो प्रदेश के गहलोत सरकार के पास है लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में आदिवासी क्षेत्र के मुद्दों पर सरकार से विधायक राजकुमार रोत की नाराजगी जगजाहिर है. ऐसे में भाजपा अपने समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी के लिए बीटीपी के इन दो विधायकों को भी अपनी तरफ खींचने में जुटी है. हालांकि बीटीपी ने अब तक अपने पत्ते नहीं खोले कि उनका समर्थन इन चुनाव में किसको रहेगा.
अन्य निर्दलीय का सहारा जरूरी,ये है कारण: मौजूदा चुनाव में कांग्रेस 2 सीटों पर और बीजेपी 1 सीट पर तो अपने दम से जीत हासिल करेगी, लेकिन शेष 1 सीट पर जीत के लिए निर्दलीय विधायकों का सहारा लेना ही होगा. भाजपा हो या फिर कांग्रेस बिना निर्दलीय विधायकों के सहारे इन चुनाव में जीत का सेहरा उनके प्रत्याशी नहीं बांध सकते. खास तौर पर 1 सीट पर जीत का असर प्रदेश के निर्दलीय विधायक ही डालेंगे. मतलब निर्दलीय विधायक जिसके साथ होंगे, उसके जीतने की संभावना ज्यादा रहेगी. यही कारण है कि कांग्रेस और भाजपा लगातार निर्दलीयों को अपने खेमे में करने में जुटी है.
माकपा कह चुकी हम भाजपा के विरोध में लेकिन कांग्रेस से गठबंधन नहीं: राज्यसभा चुनाव को लेकर माकपा नेता प्रकाश करात पहले ही यह साफ कर चुके हैं कि इन चुनावों में माकपा भाजपा के खिलाफ रहेगी, लेकिन कांग्रेस के साथ भी उसका गठबंधन नहीं होगा. बावजूद इसके बीजेपी के कुछ स्थानीय नेता लगातार माकपा विधायकों के संपर्क में बताए जा रहे हैं. लेकिन माकपा विधायकों के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से रिश्तों के चलते भाजपा को इनका समर्थन मिलने पर संशय है.
भाजपा और कांग्रेस की है यह स्थिति: राज्यसभा के चुनाव में बीजेपी को अपने प्रत्याशी घनश्याम तिवाड़ी और समर्थित प्रत्याशी डॉ सुभाष चंद्रा को जिताने के लिए कुल 82 प्रथम वरीयता के वोटों की आवश्यकता है. क्योंकि बीजेपी के पास अपने 71 विधायक हैं. साथ ही 3 आरएलपी विधायकों का भी उसे समर्थन माना जा रहा है. ऐसी स्थिति में बीजेपी के अधिकृत प्रत्याशी घनश्याम तिवाड़ी की जीत तय है, लेकिन निर्दलीय समर्थित प्रत्याशी डॉ सुभाष चंद्रा को जिताने के लिए बीजेपी को बचे हुए 33 वोटों के अतिरिक्त 8 अन्य वोटों की दरकार (BJP plan for Subhash Chandra victory in Rajya Sabha election) रहेगी.
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इसी तरह कांग्रेस को अपने तीन प्रत्याशी जिताने के लिए कुल 123 वोट की आवश्यकता (Congress need 123 votes for victory of its candidates) होगी. कांग्रेस के पास 108 विधायक और 1 आरएलडी विधायक डॉ सुभाष गर्ग मौजूद हैं. जो सरकार में मंत्री भी हैं. इस तरह कांग्रेस के पास बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए विधायकों सहित 109 वोट खुद के हैं. हालांकि प्रथम वरीयता के 123 वोट के लिए उसे 14 अतिरिक्त वोट चाहिए. ऐसे में सरकार को समर्थन दे रहे निर्दलीय व अन्य छोटे दलों के समर्थन की आवश्यकता सरकार को इन चुनावों में भी रहेगी.
पशोपेश में कांग्रेस भी क्योंकि जीत की राह नहीं आसान: जीत की रहा कांग्रेस के लिए भी आसान नहीं है. कांग्रेस अपने तीसरे प्रत्याशी को जिताने के लिए पूरा दमखम लगा रही है. हालांकि कांग्रेस सत्ता में है और अधिकतर निर्दलीय और छोटे दलों के विधायकों का समर्थन कांग्रेस को मिलने की संभावना है, लेकिन सरकार में विभिन्न राजनीतिक नियुक्तियों में इन सभी निर्दलीयों को मौका नहीं मिल पाया. जिसके चलते यह विधायक मौजूदा चुनाव में सरकार के खिलाफ भी जा सकते हैं. ऐसे भी डेढ़ साल बाद राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं. उसके पहले यह अंतिम राज्यसभा चुनाव है.
लिहाजा निर्दलीय व अन्य छोटे दलों के विधायकों के भटकने की संभावना ज्यादा है और इस बात को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अच्छी तरह जानते हैं. यही कारण है कि विधायकों की नाराजगी दूर करने के लिए हाल ही में सरकारी विभागों में तबादलों पर लगे प्रतिबंध को हटाया गया. उधर जीत के लिए विधायकों का समर्थन जुटाने के साथ ही दोनों दल अपने मौजूदा विधायकों को बहारियों से संपर्क में ना आने देने के लिए बाड़ेबंदी की तैयारियों में भी जुट गए हैं.