जयपुर. राजस्थान पिछले 15 साल से आरक्षण की आग झेलता रहा है. कभी गुर्जर समाज ने तो कभी जाट समाज ने, यहां तक कि ब्राह्मण और राजपूत समाज ने भी कई बार आरक्षण को लेकर तेवर तीखे किये हैं. इन 15 सालों में मरुप्रदेश राजस्थान ने आरक्षण की आग को झेला है, आरक्षण की मांग को लेकर लोगों को गोलियां खाते देखा. लंबे संघर्ष के बाद कुछ समाज को आरक्षण का लाभ भी मिला, लेकिन इस आरक्षण के लाभ पर एक बार फिर संकट के बादल साफ दिखने लगे हैं.
कानून की भाषा में संवैधानिक तौर पर दिए गए इस आरक्षण पर जल्द ही संकट आने वाला है. इसकी वजह है, सुप्रीम कोर्ट द्वारा मराठा आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया जाना. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आरक्षण 50 फीसदी से अधिक नहीं हो सकता. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि मराठा समुदाय को शैक्षणिक और सामाजिक रूप से पिछड़े समुदाय के रूप में घोषित श्रेणी में नहीं लाया जा सकता. महाराष्ट्र को लेकर आए फैसले के बाद अब राजस्थान में भी आरक्षण को लेकर नए सिरे से कानूनी तैयारी शुरू हो गई है. आरक्षण को लेकर कानूनी लड़ाई लड़ रहे 'समता आंदोलन' अब मराठा आरक्षण को लेकर आए फैसले को आधार बनाकर राजस्थान में एमबीसी और ईडब्ल्यूएस को दिए गए आरक्षण को एक बार फिर चुनौती देने की तैयारी में जुट गई है.
सुप्रीम कोर्ट के पैसले का स्वागत...
समता आंदोलन के अध्यक्ष पाराशर नारायण शर्मा ने मराठा आरक्षण को लेकर आए सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ की फैसले का स्वागत किया है. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के फैसले से साफ हो गया है कि कोई भी सरकार, चाहे राज्य की ही क्यों न हो, वह 50 फीसदी के दायरे से ऊपर जाकर आरक्षण का लाभ नहीं दे सकती. समता आंदोलन की ओर से पूर्व में ही एमबीसी को 5 फीसदी से ऊपर जाकर आरक्षण दिए जाने के फैसले को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी हुई है. अब हम एक बार फिर इस याचिका पर जल्द सुनवाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल करेंगे.
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किसी भी राज्य को अब OBC की सूची जारी करने का अधिकार नहीं...
पाराशर नारायण शर्मा ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने 5 मई, 2021 को एतिहासिक फैसला देते हुए मराठा आरक्षण को रद्द कर दिया. महाराष्ट्र सरकार के मराठा आरक्षण कानून को असंवैधानिक करार दिया. सर्वोच्च न्यायालय ने आरक्षण की अधिकतम सीमा को 50 फीसदी के अंदर रखने के इंदिरा साहनी निर्णय को उचित ठहराते हुए कहा कि इंदिरा साहनी के निर्णय की पुनर्समिक्षा का कोई औचित्य नहीं है. आरक्षण की अधिकतम सीमा को 50 फीसदी से अधिक करने पर समानता के मूल अधिकार का हनन होगा, जो कि संविधान की मूलभूत संरचना का हिस्सा है. पारासर नारायण शर्मा ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि संविधान में 102वें संशोधन के बाद किसी भी राज्य को अब OBC की सूची जारी करने का अधिकार नहीं है. अब राज्य केवल किसी जाति वर्ग को OBC में शामिल करने की अभिशंसा कर सकते हैं, जिस पर अंतिम निर्णय NCBC द्वारा अनुमोदन करने के बाद संसद द्वारा लिया जाएगा.
राजस्थान में गुर्जरों को 5 फीसदी आरक्षण पर भी प्रश्न चिह्न...
इसी आधार पर राष्ट्रपति द्वारा किसी जाति, वर्ग या समुदाय को OBC में शामिल होने की अधिसूचना जारी की जाएगी. सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय से राजस्थान में गुर्जरों को MBC के नाम से दिये 5 फीसदी आरक्षण पर भी प्रश्न चिह्न लग गया है, क्योंकि ये 50 फीसदी की सीमा से अधिक है. ये आरक्षण 102वें संविधान संशोधन के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए राज्य सरकार द्वारा दिया गया है. सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय के बाद EWS के आरक्षण पर भी तलवार लटक गई है, क्योंकि ये आरक्षण भी 50 फीसदी की अधिकतम सीमा से बाहर जाकर दिया गया है. संविधान के 102वें संशोधन से जोड़े गए प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए राजस्थान में दिए जा रहे OBC और MBC के आरक्षण को चुनौती देने वाली समता आंदोलन की अनेक याचिकाएं राजस्थान उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में लंबित हैं. अब इन याचिकाओं के निर्णय का रास्ता साफ हो गया है.
वहीं, 10 फीसदी ईडब्ल्यूएस को आरक्षण दिया हुआ है. मतलब प्रदेश में इस समय 64 फीसदी आरक्षण अलग-अलग जातियों को दिया हुआ है. जबकि आरक्षण की अधिकतम सीमा को 50 फीसदी के अंदर रखने के इंदिरा साहनी निर्णय की अवहेलना है. सुप्रीम कोर्ट कहता है कि इंदिरा साहनी के निर्णय की पुनर्समिक्षा का कोई औचित्य नहीं है. आरक्षण की अधिकतम सीमा को 50 फीसदी से अधिक करने पर समानता के मूल अधिकार का हनन होगा, जो कि संविधान की मूलभूत संरचना का हिस्सा है.
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कब-कब किसी जाति ने किए आंदोलन...
- गुर्जर आरक्षण की शुरुआत 6 सितंबर 2006 को हिंडौन से हुई
- दूसरा आंदोलन 23 मई 2007 में
- तीसरा आंदोलन 29 मई 2008 में
- चौथा आंदोलन 23 दिसंबर 2010 में. इस आंदोलन में गहलोत सरकार ने गुर्जर सहित पांच जातियों को एसबीसी (स्पेशल बैकवर्ड कास्ट) के नाम पर एक फीसदी आरक्षण दिया.
- पांचवां आंदोलन 21 मई 2015 में हुआ. जिसमें वसुंधरा सरकार ने एसबीसी (स्पेशल बैकवर्ड कास्ट) के नाम से 16 अक्टूबर 2015 को 4 फीसदी आरक्षण देते हुते गुर्जर सहित पांच जातियों को कुल 5 फीसद आरक्षण लाभ दिया गया. उस वक्त राज्य सरकार ने 50 फीसदी के आरक्षण के दायरे से बाहर जाकर यह आरक्षण दिया, जिसे 14 महीने बाद यानी 9 दिसंबर 2016 को संवैधानिक मानकर कोर्ट ने रद्द कर दिया.
- छठा आंदोलन 2015 में. इसके वक्त प्रदेश में कोंग्रेस की गहलोत सरकार थी, जिसने एक बार फिर गुर्जर सहित पांच जातियों को 13 फरवरी को विधानसभा और 15 फरवरी 2019 को नोटिफिकेशन जारी करते हुए एमबीसी (मोस्ट बैकवर्ड क्लास) मानकर 5 फीसदी आरक्षण दिया, जो वर्तमान में लागू है.
- सातवां आंदोलन 1 नवंबर 2020 में. जिसमें आरक्षण दिए जाने के बाद मिलने वाले लाभ नहीं मिलने की वजह से आंदोलन किया गया था.
जाट आरक्षण आंदोलन...
- प्रदेश में जाट आरक्षण आंदोलन की शुरुआत 1996 में हुई.
- दो साल अलग-अलग तरीके से चले छोटे-बड़े आंदोलन के बाद 1998 में भरतपुर और धौलपुर के जाट समाज को छोड़ कर सभी जिले के जाट समाज को आरक्षण मिला.
- फिर 2000 में कांग्रेस की गहलोत सरकार ने भरपुर और धौलपुर के जाट समाज को भी स्टेट में आरक्षण दिया.
- 2013 में केंद्र में भी इन दोनों जिलों के जाट समाज को आरक्षण मिला.
- 10 अगस्त 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने भरतपुर और धौलपुर के जाट समाज के आरक्षण को असंवैधानिक मानकर रद्द कर दिया.
- इसके बाद 2015 से 2017 तक इन दोनों जिलों के जाट समाज ने सरकार पर दबाव बनाने के लिए चरणबद्ध आंदोलन किया.
- 23 अगस्त 2017 को बीजेपी की वसुंधरा सरकार ने भरतपुर और धौलपुर के जाट समाज को स्टेट में ओबीसी में शामिल करते हुए आरक्षण का लाभ दिया, लेकिन केंद्र में इन दोनों जिलों के जाट समाज को ओबीसी में आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा है. हालांकि, 25 दिसंबर 2020 को कांग्रेस की गहलोत सरकार ने भरतपुर और धौलपुर के जाट समाज को आरक्षण का केंद्र में भी लाभ मिले, इसको लेकर सिफारिश की चिट्ठी लिखी है.
ब्राह्मण आरक्षण आंदोलन...
- ब्राह्मण समाज को ईडब्ल्यूएस (इकोनॉमिक बेैकवर्ड क्लास) आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाए.
- इसको लेकर 19 अगस्त 2001 को आरक्षण की शुरुआत हुई.
- 2001 से 2003 तक 17 जिलों में अलग-अलग रैलियां आयोजित, लेकिन सरकार पर दबाव नहीं बना पाए.
राजपूत आरक्षण आंदोलन...
- प्रदेश में राजपूत समाज को ओबीसी में शामिल करने की मांग सबसे पहले 1998 में उठी, जब प्रदेश के जाट समाज को आरक्षण दिया गया.
- इसको लेकर राजपूत समाज की ओर 1998 से लेकर 2015 तक कई बार अलग-अलग चरणबद्ध आंदोलन हुए, लेकिन सरकार पर दबाव नही बना पाए.
राजपूत-ब्राह्मण समाज को EWS में मिला आरक्षण...
प्रदेश की 9 सवर्ण जातियों को 19 जनवरी 2019 को केंद्र सरकार द्वारा ईडब्ल्यूएस के तहत 10 फीसदी आरक्षण दिया गया. आर्थिक आधार पर मिले इस आरक्षण में ब्राह्मण, राजपूत, वैश्य, कायस्त, सिंधी, पंजाबी, मराठा, पाटिल आदि हर वो जाती जो अब तक आरक्षण से वंचित थी, उन्हें भी ईडब्ल्यूएस के तहत आरक्षण मिल गया.