जयपुर. बिहार में जेडीयू ने भारतीय जनता पार्टी का साथ (JDU Alleged BJP in Bihar) छोड़ा तो कहा कि भाजपा जिस पार्टी के साथ अलायंस करती है, उस पार्टी को समाप्त कर देती है. इस बयान के बाद देश में एक नई बहस छिड़ी है कि क्या भाजपा वाकई में सहयोगी दलों को समाप्त कर देती है. ऐसे में सहयोगी पार्टियों के साथ राजस्थान में अलायंस को देखा जाए तो न केवल भाजपा, बल्कि कांग्रेस पार्टी भी इसमें पीछे नहीं है, जो प्रदेश में काम कर रही अन्य राजनीतिक पार्टियों को या तो अपने में समाहित कर लेती है या फिर उसे समाप्त कर देती है.
बीते दो दशक की बात करें तो पिछले दो कार्यकाल से राजस्थान में बसपा को कांग्रेस सरकार पूरी तरह डैमेज करते हुए सभी विधायक कांग्रेस में शामिल करवा लेती है. यही हाल जमींदारा पार्टी का हुआ, जिसकी एक विधायक को कांग्रेस ने अपनी पार्टी में समाहित कर लिया. किरोड़ी लाल मीणा भाजपा में चले गए तो उनकी एनपीईपी राजस्थान में समाप्त हो गई. यही हाल घनश्याम तिवाड़ी की पार्टी भारत वाहिनी का भी हुआ, जिसका तिवाड़ी के कांग्रेस में जाने के साथ ही अस्तित्व समाप्त हो गया. अब तिवाड़ी कांग्रेस से किनारा कर भाजपा के राज्यसभा सांसद भी बन चुके हैं.
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ऐसा नहीं है कि राजस्थान में बीते दो दशक से ही छोटी या नई बनने वाली पार्टियों को (Political Parties in Rajasthan) भाजपा और कांग्रेस समाप्त कर रही हैं, बल्कि आजादी के बाद कांग्रेस का विरोध करने के लिए बनी स्वतंत्र पार्टी के आधे नेता जनसंघ और आधे नेता कांग्रेस में चले गए. यही हाल जनता पार्टी और जनता दल का हुआ, जिन्होंने एक समय राजस्थान में अपना वर्चस्व बना लिया था, लेकिन कांग्रेस और भाजपा ने मिलकर उन दोनों पार्टियों को भी समाप्त कर दिया.
भाजपा और कांग्रेस के सामने अन्य पार्टियों का हाल :
अखिल भारतीय राम राज्य परिषद : 1952 में पहले चुनाव में कांग्रेस के सामने विपक्षी के तौर पर अखिल भारतीय राम राज्य परिषद बनी, जिसकी 1952 में 24 सीटें आईं जो 1957 में घट कर 17 रही. 1962 में रामराज्य परिषद पार्टी की जगह स्वतंत्र पार्टी ने ले ली, जिसके चलते रामराज्य पार्टी की केवल 3 सीटें मिली. 1967 में अखिल भारतीय राम राज्य परिषद का अस्तित्व ही समाप्त हो गया.
स्वतंत्र पार्टी : 1962 में स्वतंत्र पार्टी का उदय हुआ जो 36 सीटों पर जीत दर्ज कर प्रमुख विपक्षी दल बना. स्वतंत्र पार्टी का दबदबा 1967 के चुनाव में और भी बढ़ा और यह 48 सीट तक पहुंच गई, लेकिन 1972 में स्वतंत्र पार्टी भी समाप्ति की ओर बढ़ी और केवल 11 सीटें रहीं. 1977 में स्वतंत्र पार्टी के ज्यादातर नेता या तो जनता पार्टी में शामिल हुए या फिर कांग्रेस में, जिसके चलते स्वतंत्र पार्टी का अस्तित्व भी समाप्त हो गया.
जनता पार्टी : कांग्रेस का विरोध कर रहे नेताओं ने जनता पार्टी का 1977 में गठन किया, जिसमें जनसंघ भी सहयोगी रहा और जनता पार्टी को 152 सीटों के साथ मेजॉरिटी मिली. लेकिन 1977 में सरकार बनाने वाली जनता पार्टी के 1980 में कई टुकड़े हुए और जनसंघ से बनी भारतीय जनता पार्टी में ज्यादातर नेता जनता पार्टी के चले गए, तो कुछ जनता पार्टी सेकुलर और कुछ जनता पार्टी में रह गए. 1977 में सरकार बनाने वाली जनता पार्टी के 1985 में 10 विधायक रह गए और 1990 में जनता पार्टी का अस्तित्व राजस्थान में समाप्त हो गया और जनता पार्टी के ज्यादातर नेता भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस से नाराज और भारतीय जनता पार्टी में शामिल नहीं होने वाले नेता जनता दल में शामिल हो गए.
जनता दल : 1990 में जनता दल का उदय हुआ, जिसमें जनता पार्टी के साथ ही कांग्रेस से नाराज नेता भी शामिल थे. 1990 में जहां भारतीय जनता पार्टी 85 सीटों के साथ सत्ता में आई तो वहीं जनता दल के 55 विधायकों ने चुनाव जीतकर भाजपा की सरकार बनाने में सहयोग दिया, लेकिन 1993 में जनता दल भी सिमट कर पहले 6 सीट पर आई जो 1998 में 3 सीट पर आने के बाद जनता दल यूनाइटेड बनी, जिसकी 2003 में दो सीट आई. 2008 में 1 सीट पर आने के बाद पूरी तरह से सिमट गई.
जनसंघ ही बना भाजपा, जिसने कई पार्टियों को किया अपने में समाहित : राजस्थान में 1952 के चुनाव से जनसंघ कांग्रेस के सामने खड़ा रहा, जिसकी सीटों में धीरे-धीरे इजाफा होता रहा और 1980 में भारतीय जनता पार्टी में तब्दील हुआ. यही भारतीय जनता पार्टी राजस्थान में कई बार सत्ता में आने के बाद आज राजस्थान का प्रमुख विपक्षी दल है.
बहुजन समाज पार्टी : राजस्थान में बहुजन समाज पार्टी का उदय साल 1998 में हुआ, जब पहली बार उसके दो विधायक राजस्थान में चुनाव जीते. उसके बाद 2003 में भी बसपा के दो विधायक जीते. लेकिन 2008 में बसपा विधायकों की संख्या बढ़कर 6 हुई, लेकिन सभी 6 विधायकों को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कांग्रेस की सदस्यता दिला दी. 2013 में फिर बसपा के तीन विधायक जीते, लेकिन साल 2018 में फिर 6 विधानसभा सीट जीतने वाली बसपा के सभी विधायकों को कांग्रेस ने अपने साथ सम्मिलित कर लिया.
सामाजिक न्याय मंच : भाजपा में पूर्व मंत्री रहे देवी सिंह भाटी ने भाजपा से अलग राजस्थान सामाजिक न्याय मंच बनाया, लेकिन अकेले देवी सिंह भाटी ही 2003 में चुनाव जीत सके और बाद में वापस देवी सिंह भाटी ने भाजपा का रुख कर लिया और सामाजिक न्याय मंच का अस्तित्व समाप्त हुआ.
एनपीईपी : भाजपा से नाराज होकर राजस्थान में किरोड़ी लाल मीणा नए राजस्थान में नेशनल पीपल पार्टी बनाई और 4 सीटें भी जीती. लेकिन किरोड़ी लाल मीणा राज्यसभा सांसद बन वापस भाजपा में चले गए, जिससे राजस्थान में एनपीईपी का अस्तित्व समाप्त हो गया.
भारत वाहिनी : भाजपा से नाराज होकर वरिष्ठ भाजपा के नेता घनश्याम तिवाड़ी ने अपनी पार्टी भारत वाहिनी बनाई, लेकिन 2018 के चुनाव में भारत वाहिनी विफल हुई और खुद घनश्याम तिवाड़ी ही चुनाव हार गए. इसके बाद घनश्याम तिवाड़ी कांग्रेस में शामिल हुए, जिससे भारत वाहिनी का राजनीतिक अस्तित्व राजस्थान में समाप्त हो गया. अब घनश्याम तिवाड़ी कांग्रेस को छोड़ वापस भाजपा में शामिल हो गए हैं और भाजपा के राज्यसभा सांसद भी बन गए.
जमींदार पार्टी : 2013 में राजस्थान में जमींदारा पार्टी का उदय हुआ. दो विधायक भी जीते, लेकिन 2018 में जमींदारा पार्टी की एक विधायक कांग्रेस में शामिल हुईं तो दूसरी विधायक चुनाव हार गईं. ऐसे में अब जमीदारा पार्टी का भी अस्तित्व राजस्थान में खतरे में है.
ये पार्टियां ले रही हैं टक्कर : राजस्थान में आने वाली ज्यादातर पार्टियां या तो भाजपा में समाहित हो गईं या फिर कांग्रेस में और राजनीतिक तौर पर समाप्त हो गईं. लेकिन राजस्थान में कुछ दल ऐसे हैं जो आज भी इन दोनों पार्टियों के सामने संघर्ष करते हुए अपनी पहचान बनाए हुए हैं. 1957 में पहली बार चुनाव में 1 सीट जीतने वाली कम्युनिस्ट पार्टी की भले ही राजस्थान में दो से 3 सीटें आती हैं, लेकिन यह सिलसिला आज भी जारी है. इस बार भी कम्युनिस्ट पार्टी के राजस्थान में 2 विधायक हैं.
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इसी तरह हनुमान बेनीवाल ने जो आरएलपी बनाई वह भी राजस्थान में अभी दोनों पार्टियों से टक्कर ले रही है. जिसके हनुमान बेनीवाल के तौर पर एक सांसद और तीन विधायक भी हैं. इसी तरह भारतीय ट्राइबल पार्टी भी भाजपा और कांग्रेस के बीच अपना अस्तित्व बढ़ा रही है. बीटीपी के राजस्थान में 2 विधायक हैं. वहीं, कांग्रेस सरकार बनने के साथ ही भले ही (BSP Effect in Rajasthan) बसपा को 2 बार कांग्रेस पार्टी ने विधायक विहीन कर दिया हो, लेकिन बसपा का राजस्थान में अभी संगठन मजबूत है और आज भी बसपा राजस्थान में अपने दम पर कुछ सीटें जीतने का दम रखती है.