जयपुर. छात्र राजनीति में 28 अगस्त को नया इतिहास लिखा गया, जब बड़े विश्वविद्यालयों में अध्यक्ष पद पर एनएसयूआई का एक भी उम्मीदवार नहीं जीत. वहीं पांच यूनिवर्सिटीज में निर्दलियों ने कब्जा जमाया. नतीजों के बाद सियासत की पहली सीढ़ी की चर्चा विधायक और सांसद तक भी हुई.
भाजपा ने इसे कांग्रेस को नकारने वाला बताया. इन नतीजों से एबीवीपी खुश तो है, लेकिन कई यूनिवर्सिटीज हारने का गम भी है. वहीं, अब अगले वर्ष होने वाले चुनावों को लेकर नई रणनीति बनाने में भी जुट गई है.
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विश्वविद्यालयों की तस्वीर तो साफ है, लेकिन इस बीच महाविद्यालयों में जीत का दंभ भी है. एबीवीपी का दावा है कि संगठन ने 252 महाविद्यालयों में से 208 पर संगठन से टिकट दिए, जिसमें उनको 138 पर जीत मिली. लेकिन उधर एनएसयूआई का दावा है कि 80 महाविद्यालयों में एनएसयूआई जीती और 63 पर निर्दलियों का कब्जा रहा. हालांकि, विश्वविद्यालय हारने पर अब संगठन में मंथन का दौर है.
अक्सर चुनावी हार के बाद मंथन का दौर छात्र राजनीति हो या फिर सियासत, दोनों में चलता है. लेकिन राजस्थान यूनिवर्सिटी में लगातार हार रहे संगठन ने इस मंथन पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं.