जयपुर. नटखट कान्हा के जन्मदिवस पर राजधानी जयपुर के आराध्य गोविंद देव जी मंदिर में जन्माष्टमी की तैयारियां जोरों पर है. प्रभु गोविंद देवजी श्री कृष्ण के साक्षात स्वरूप माने जाते है. पांच हजार साल पहले भगवान श्री कृष्ण के प्रपौत्र व मथुरा नरेश ब्रजनाथ की बनवाई गई गोविंद देव जी की मूर्ति ने जयपुर को भी वृंदावन बना दिया.
राधारानी और दो सखियों के संग विराजे गोविंद देव जी को कनक वृंदावन से सिटी पैलेस परिसर के सूरज महल में विराजमान किया गया. औरंगजेब के दौर में देवालय को तोड़ने के दौरान चैतन्य महाप्रभु के शिष्य शिवराम गोस्वामी, राधा गोविंद को वृंदावन से बैल गाड़ी में बैठाकर सबसे पहले सांगानेर के गोविंदपुरा पहुंचे थे.
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आमेर नरेश मानसिंह प्रथम ने वृंदावन में राधा गोविंद का भव्य मंदिर बनवाने के बाद गोविंदपुरा को गोविंद देव जी की जागीर में दे दिया था. जयसिंह द्वितीय ने जयपुर बसाया तब राधा गोविंद जी को सिटी पैलेस के सूरज महल में ले आए. राधा गोविंद देव जी के वृंदावन से जयपुर में विराजमान होने के बाद ब्रज क्षेत्र में राधा कृष्ण की भक्ति का प्रचार करने वाले कई संप्रदायों की पीठ भी यहां पर आ गई. आराध्य गोविंद देव जी मंदिर में ना केवल जयपुरवासी बल्कि देश विदेश से श्रदालु यहां श्रीजी के चरणों में नमन करते है.
गोविंद देव जी मंदिर महंत अंजन कुमार गोस्वामी ने बताया कि औरंगजेब के शासन काल में जब मूर्तियों को खंडित किया जा रहा था. तब आराध्य गोविंद देव जी के साथ सातों देवालय के देवता वृंदावन से रवना होकर जयपुर पधारे थे. राजधानी जयपुर में आज भी वृंदावन के चार ठाकुरजी विराजमान है. जिसमें से एक करौली के मदन मोहन जी मंदिर में है और बाकी दो ठाकुरजी वापस वृंदावन में विराजमान हो गए.
मानसिंह प्रथम ने वृंदावन में बनवाया मंदिर
करीब 5 हजार साल पहले बनी गोविंददेवजी और पुरानी बस्ती की गोपीनाथ जी की मूर्तियों को करीब 480 साल पहले चैतन्य महाप्रभु के शिष्य रूप गोस्वामी, सनातन गोस्वामी आदि ने वृंदावन के गोमा टीले में से निकाला था. आमेर नरेश मान सिंह प्रथम में वृंदावन में मंदिर बनवाया.