जयपुर. प्रदेश में लगातार स्कूली वाहनों को लापरवाही से चलाने और पुराने वाहनों को स्कूली वाहन के रूप में उपयोग में लेने से लगातार दुर्घटनाएं हो रही है. इन दुर्घटनाओं में स्कूल में पढ़ने वाले मासूम बच्चे जान तक गंवा देते हैं. स्कूली वाहनों के लगातार दुर्घटनाग्रस्त होने को लेकर राज्य मानवाधिकार आयोग (State Human Rights Commission) ने प्रसंज्ञान लिया है. परिवहन विभाग और पुलिस को नोटिस जारी कर कई सवालों के जवाब मांगे गए हैं.
राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस जी.के. व्यास ने नोटिस में बताया कि प्रदेश में लगातार स्कूली वाहन दुर्घटनाग्रस्त (School buses Accidents in Rajasthan) हो रहे हैं और उसमें बच्चों की मौत भी हो रही है. 2 दिन पहले पोकरण के करीब गांव में जैतपुरा फांटा के पास बिना फिटनेस और परमिट के दौड़ रही स्कूल की बस पलट गई. हादसे में 2 बच्चों की मौत हो गई और 30 से अधिक बच्चे घायल हो गए. इनमें से 20 से अधिक गंभीर घायल बच्चों को जोधपुर हॉस्पिटल भेजा गया था.
इसी तरह का एक हादसा शुक्रवार को सीकर जिले के गांव रानोली में भी हुआ, इसमें एक स्कूल बस को लोक परिवहन वाहन ने टक्कर मारी और इस हादसे में 2 बच्चों की मौत हो गई. राज्य मानवाधिकार आयोग ने कहा कि वाहनों और स्कूल बसों को लापरवाही से चलाने और पुराने वाहनों को स्कूली वाहन के रूप में उपयोग में लेने के कई मामले लगातार सामने आ रहे हैं.
राज्य के परिवहन विभाग को सुप्रीम कोर्ट और राजस्थान उच्च न्यायालय ने समय-समय पर निर्देश दिए हैं कि वाहनों की नियमित फिटनेस चैकिंग होनी चाहिए. बिना फिटनेस चेकिंग के वाहनों का संचालन नहीं होना चाहिए और पुराने वाहनों को चलाने की अनुमति नहीं देनी चाहिए. विभाग की ओर से लापरवाही बरतने और वाहनों की निरंतर चेकिंग नहीं होने से वाहनों पर विभाग की ओर से कार्रवाई नहीं की जाती, जिससे दुर्घटना होती है और मानव जीवन संकट में पड़ जाता है.
राज्य मानवाधिकार आयोग अध्यक्ष ने कहा कि राज्य सरकार की ओर से परिवहन एवं यातायात की व्यवस्था के लिए मात्र वित्तीय स्वीकृति दी जाती है. इसलिए परिवहन विभाग एवं ट्रैफिक पुलिस का कर्तव्य है कि यह नियमों की सख्ती से पालना करवाएं. परिवहन विभाग और ट्रैफिक पुलिस के अधिकारियों का कर्तव्य है कि वे अपने-अपने क्षेत्र में समय-समय पर वाहनों की चेकिंग और नियमों का पालन करने के लिए कार्रवाई करें, लेकिन अक्सर यह बड़े अधिकारी मात्र के कार्यालय में बैठकर अपने अधीनस्थों को निर्देश देकर इतिश्री कर लेते हैं. आदेश एवं निर्देश जारी करने के बाद नियमों का पालन हो रहा है या नहीं इसको गंभीरता से नहीं देखा जाता जिससे दुर्घटनाएं होती है.
राज्य मानवाधिकार आयोग ने नोटिस में कहा कि स्कूलों में जो वाहन उपयोग में लिए जाते हैं, वह वाहन चलने योग्य है अथवा नहीं इस संबंध में निश्चित रूप से समय-समय पर निरीक्षण करना जरूरी है. लेकिन प्रशासनिक ढिलाई के कारण बच्चे और युवाओं का जीवन संकट में पड़ जाता है. राज्य मानवाधिकार आयोग ने परिवहन विभाग के सचिव और महानिदेशक पुलिस राजस्थान, अतिरिक्त महानिदेशक पुलिस ट्रैफिक को नोटिस जारी कर मानव के अधिकारों की रक्षा के लिए कुछ बिंदुओं पर जवाब मांगे हैं और अपना जवाब 15 मार्च तक देने के निर्देश दिये हैं
वे सवाल जिनके जवाब राज्य मानवाधिकार आयोग ने मांगे :
- नियमानुसार स्कूल में बच्चों की कितनी संख्या के लिए कितने वर्षों तक वाहन उपयोग में लाये जा सकते है?
- क्या परिवहन विभाग एवं ट्रैफिक पुलिस के उच्चाधिकारी नियमित रूप से जिलों में जाकर यायातात संबंधी आवश्यक दिशा-निर्देश देते हैं या नहीं ?
- पिछले एक वर्ष में राज्य में स्कूली वाहनों से कितनी दुर्घटनाऐं हुई है, जिलेवार सूची उपलब्ध कराई जाए.
- क्या वाहन खरीदते समय जो शपथ पत्र परिवहन विभाग की ओर से वाहनों को पार्क करने के संबंध में लिया जाता है, परिवहन विभाग उस स्थान के निरीक्षण के संबंध में क्या कोई रिपोर्ट बनाता है या नहीं ?
- शपथ पत्र झूठा पाये जाने पर अब तक कितने वाहन मालिकों के खिलाफ परिवहन विभाग ने कार्यवाही की है ?
- निरीक्षकों की ओर से अपने-अपने क्षेत्राधिकार में वाहनों से होने वाले प्रदूषण के संबंध में कार्यवाही की जाती है और उसकी रिपोर्ट परिवहन विभाग को नियमित रूप से दी जाती है या नहीं ?
- दुर्घटना में मृत बच्चों के परिवारों को किसी प्रकार की तुरंत क्षतिपूर्ति वाहन मालिकों की ओर से देने के प्रावधान है या नहीं?
- शिक्षण संस्थाओं के जो वाहन उपयोग में लिए जा रहे हैं वे नियमानुसार चलने लायक है या नहीं ? जिनका परिवहन वर्जित है उन्हें शीघ्र रोकने की कार्यवाही परिवहन विभाग एक अभियान चला कर की गई है या नहीं, यदि की गई हो तो कब-कब की गई और राज्य के किन जिलों में की गई है, यह स्पष्ट किया जाये.