जयपुर. प्लास्टिक वर्तमान में प्रकृति का सबसे बड़ा शत्रु बनकर उसे प्रदूषित कर रहा है और इससे प्रदूषण दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है. वहीं नवीन शोधों में पर्यावरण और मानव जीवन को प्लास्टिक से होने वाले हानिकारक प्रभावों के सामने आने के बाद आज विश्व का लगभग हर देश इसके इस्तेमाल को सीमित करने की दिशा में कदम उठाने लगा है. आइए जानते हैं प्लास्टिक के बारे में कुछ बातें...
क्या है पॉलिथीन और इसके नुकसान...
- पॉलिथीन पेट्रो-केमिकल से बना होता है, जो पर्यावरण से लेकर इनसान और मवेशियों सभी के लिए बहुत नुकसानदायक है. पॉलिथीन हमारे स्वास्थ्य के लिए भी बहुत खतरनाक है. पॉलिथीन का प्रयोग सांस और स्किन संबंधी रोगों तथा कैंसर का खतरा बढ़ाता है.
- पॉलिथीन की थैलियां जहां हमारी मिट्टी की उपजाऊ क्षमता को नष्ट कर इसे जहरीला बना रही हैं, वहीं मिट्टी में इनके दबे रहने के कारण मिट्टी की पानी सोखने की क्षमता भी कम होती जा रही है, जिससे भूजल के स्तर पर असर पड़ा है.
- सफाई व्यवस्था और सीवरेज व्यवस्था के बिगड़ने का एक कारण ये पॉलिथीन की थैलियां हैं, जो उड़ कर नालियों और सीवरों को जाम कर रही हैं.
- ये थैलियां जमीन और जल में रहने वाले जीव-जंतुओं के जीवन को भी खतरे में डाल रहीं है. पशु बेचारे जानते नहीं कि वे क्या खा रहे हैं, पर उनके द्वारा इन्हें खा लेने पर यह उनके पेट में जमा हो रही हैं और उनकी जान के लिए खतरा बन रही हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक हर हफ्ते दर्जनों गाय पॉलिथीन की थैलियों को खा कर बीमारी का शिकार हो रही हैं.
कैसे रोकें यह खतरा...
- पॉलिथीन की थैलियों की जगह कपड़े या जूट की थैलियां इस्तेमाल में लाएं. स्थानीय प्रशासन भी पॉलिथीन के उपयोग पर रोक लगाएं और इसका कड़ाई से पालन करें. पॉलिथीन देने वालों और लेने वालों दोनों पर जुर्माना किया जाए, जैसा कि कुछ राज्यों में किया भी जा रहा है.
- अपने शहर में लोगों को पोलिथिन के इस्तेमाल के नुकसान के बारे में बताएं और उन्हें जूट के बैग इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित करें. हम स्वस्थ्य होंगे, तभी हम अपने पर्यावरण को भी स्वस्थ्य रख पायेंगे.
क्या है प्लास्टिक का इतिहास...
1907 में जब पहली बार प्रयोगशाला में कृत्रिम "प्लास्टिक" की खोज हुई तो इसके आविष्कारक बकलैंड ने कहा था, "अगर मैं गलत नहीं हूँ तो मेरा ये अविष्कार एक नए भविष्य की रचना करेगा." और ऐसा हुआ भी, उस वक्त प्रसिद्ध पत्रिका टाइम ने अपने मुख्य पृष्ठ पर लियो बकलैंड की तसवीर छापी थी और उनकी फोटो के साथ लिखा था, "ये ना जलेगा और ना पिघलेगा."
जब 80 के दशक में धीरे धीरे पॉलीथिन की थैलियों ने कपड़े के थैलों, जूट के बैग, कागज के लिफाफों की जगह लेनी शुरू की हर आदमी मंत्र मुग्ध था. हर रंग में, हर नाप में, इससे बनी थैलियों में चाहे जितने वजन का सामान डाल लो फटने का टेंशन नहीं इनसे बने कप कटोरियों में जितनी गरम चाय कॉफी या सब्जी डाल लो हाथ जलने या फैलने का डर नहीं. बिजली के तार को छूना है लेकिन बिजली के झटके से बचना है प्लास्टिक की इंसुलेशन है. लेकिन किसे पता था कि आधुनिक विज्ञान के एक वरदान के रूप में हमारे जीवन का हिस्सा बन जाने वाला यह प्लास्टिक एक दिन मानव जीवन ही नहीं सम्पूर्ण पर्यावरण के लिए भी बहुत बड़ा अभिशाप बन जाएगा.
प्लास्टिक का अवगुण...
"ये ना जलेगा, ना पिघलेगा" जो इसका सबसे बड़ा गुण था, वही इसका सबसे बड़ा अवगुण बन जाएगा. जी हां, आज जिन प्लास्टिक की थैलियों में हम बाजार से सामान लाकर आधे घंटे के इस्तेमाल के बाद ही फेंक देते हैं. उन्हें नष्ट होने में हजारों साल लग जाते हैं. इतना ही नहीं इस दौरान वो जहां भी रहें मिट्टी में या पानी में अपने विषैले तत्व आस पास के वातावरण में छोड़ते हैं.
सिंगल यूज प्लास्टिक बैन...
भारत सरकार ने भी देशवासियों से सिंगल यूड प्लास्टिक यानी एक बार प्रयोग किए जाने वाले प्लास्टिक का उपयोग बन्द करने का आह्वान किया है. इससे पहले 2018 विश्व पर्यावरण दिवस की थीम " बीट प्लास्टिक पॉल्युशन" की मेजबानी करते हुए भी भारत ने विश्व समुदाय से सिंगल यूज प्लास्टिक से मुक्त होने की अपील की थी. लेकिन जिस प्रकार से आज प्लास्टिक हमारी दैनिक दिनचर्या का ही हिस्सा बन गया है. सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग पूर्णतः बन्द हो जाना तब तक संभव नहीं है जब तक इसमें हम सभी मिलकर पहल नहीं करेंगे.