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Special: बंजर भूमि ही नहीं सतही जल पर भी बनेगी सौर ऊर्जा!

मरूभूमि के कई घर सौर ऊर्जा से रोशन हैं. खासतौर पर पश्चिमी राजस्थान की धरती पर सोलर प्लांट लगे हैं. अब सोलर पैनल्स को पानी पर तैराने की योजना है! कैसे? आइए जानते हैं इस खास रिपोर्ट में.

Solar Energy generation in Rajasthan
जल पर तैरते सोलर पैनल्स
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Published : Sep 2, 2022, 10:43 AM IST

जयपुर. प्रदेश में सौर ऊर्जा के सर्वाधिक प्लांट पश्चिमी राजस्थान की बंजर और मरुस्थली भूमि पर है लेकिन अब सतही जल के जरिए भी सौर ऊर्जा का उत्पादन संभव हो पाएगा (Solar Energy generation in Rajasthan). राजस्थान में जिन इलाकों में बांध,तालाब या प्रचुर मात्रा में सतही जल उपलब्ध है वहां पंप स्टोरेज व फ्लोटिंग तकनीक की मदद से यह संभव हो पाएगा. ऊर्जा विभाग ने प्रदेश में नई तकनीक इस संभावनाओं को जांचने के लिए एक एजेंसी को काम दिया है.

ये एजेंसी प्रदेश में उन इलाकों का सर्वे करेगी जहां सतही जल अधिक है. या फिर कहे बांध, झील या तालाबों की संख्या ज्यादा है,वहां पर पंप स्टोरेज और फ्लोटिंग तकनीक के जरिए बिजली उत्पादन की संभावनाएं और उसमें मिलने वाली संभावित सफलताओं का आकलन किया जाएगा. एजेंसी की रिपोर्ट ऊर्जा विभाग में आने के बाद विभाग के स्तर पर इन इलाकों में ऊर्जा के उत्पादन को लेकर प्लांट लगाने का काम होगा. संयुक्त उपक्रम के जरिए उत्पादन का काम किया जाएगा.

सतही जल पर भी बनेगी सौर ऊर्जा

क्या है पंप स्टोरेज तकनीक: राजस्थान अक्षय ऊर्जा निगम के प्रबंध निदेशक अनिल ढाका बताते हैं कि पंप स्टोरेज तकनीक उन इलाकों के लिए है जहां सतही जल अधिक है. मतलब बांध तालाब या झील अधिक है. वहां उस पानी का उपयोग करके बिजली का उत्पादन किया जा सकता है. इस तकनीक में दिन के समय बांध, तालाब या झील का पानी ऊपरी स्थान पर स्टोर किया जाता है. इसमें दिन के समय सौर ऊर्जा का इस्तेमाल होता है जो अपेक्षाकृत सस्ती और प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो जाती है. वहीं रात के समय जब प्रदेश में बिजली की डिमांड अधिक रहती है तब ऊपरी स्थान पर स्टोरेज किए गए पानी को नीचे उतारकर टरबाइन के जरिए बिजली उत्पादन किया जाता है. इससे पानी की बर्बादी भी नहीं होती और रात में बिजली का उत्पादन भी हो जाता है.

पढ़ें-THDC ने राजस्थान सरकार के साथ किया MOU साइन, 10 हजार मेगावाट सौर ऊर्जा का लगेगा प्लांट

फ्लोटिंग तकनीक: अनिल ढाका के अनुसार जिन इलाकों में सतही जल अधिक मात्रा में है (Floating technique for solar power), वहां सौर ऊर्जा जनरेट करने के बड़े-बड़े पैनल पानी की सतह पर बिछाए जाते हैं, जो पानी में ऊपरी सतह पर तैरते हैं और दिन के समय उस पर पड़ने वाली सूर्य की किरणों से बिजली भी बनती है. इस तकनीक के जरिए पानी की सतह का उपयोग भी सौर ऊर्जा बनाने के लिए आसानी से हो जाता है. भारत में अंडमान निकोबार समेत कुछ स्थानों पर इस तकनीक का उपयोग कर सौर ऊर्जा का उत्पादन किया जा रहा है.

जालोर में मॉडल प्रोजेक्ट के तहत चल रहा कार्य: अक्षय ऊर्जा निगम के प्रबंध निदेशक अनिल ढाका के अनुसार इस तकनीक की सफलता जांचने के लिए प्रायोगिक तौर पर मॉडल प्रोजेक्ट के रूप में जालोर को चुना गया है. जहां एक कंपनी की ओर से 4 से 5 मेगावाट का छोटा सा प्लांट लगाया गया है.

ये भी पढ़ें-Solar energy plant in Bikaner: बीकानेर के पुंगल में लगेगा सौर विद्युत उत्पादन प्लांट, मिलेगी 810 मेगावाट सौर बिजली...

अक्षय ऊर्जा में प्रदेश नंबर वन: राजस्थान सौर ऊर्जा के क्षेत्र में ही नए कीर्तिमान नहीं बना रहा बल्कि अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता विकसित करने में भी राजस्थान देश के टॉप राज्यों में शामिल है. केंद्र सरकार के मंत्रालय ने इस साल मार्च में जो आंकड़े जारी किए वो तो यही बताते हैं. आंकड़ों के अनुसार 17040.62 मेगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता विकसित कर राजस्थान अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में टॉप पर पहुंच गया.

जयपुर. प्रदेश में सौर ऊर्जा के सर्वाधिक प्लांट पश्चिमी राजस्थान की बंजर और मरुस्थली भूमि पर है लेकिन अब सतही जल के जरिए भी सौर ऊर्जा का उत्पादन संभव हो पाएगा (Solar Energy generation in Rajasthan). राजस्थान में जिन इलाकों में बांध,तालाब या प्रचुर मात्रा में सतही जल उपलब्ध है वहां पंप स्टोरेज व फ्लोटिंग तकनीक की मदद से यह संभव हो पाएगा. ऊर्जा विभाग ने प्रदेश में नई तकनीक इस संभावनाओं को जांचने के लिए एक एजेंसी को काम दिया है.

ये एजेंसी प्रदेश में उन इलाकों का सर्वे करेगी जहां सतही जल अधिक है. या फिर कहे बांध, झील या तालाबों की संख्या ज्यादा है,वहां पर पंप स्टोरेज और फ्लोटिंग तकनीक के जरिए बिजली उत्पादन की संभावनाएं और उसमें मिलने वाली संभावित सफलताओं का आकलन किया जाएगा. एजेंसी की रिपोर्ट ऊर्जा विभाग में आने के बाद विभाग के स्तर पर इन इलाकों में ऊर्जा के उत्पादन को लेकर प्लांट लगाने का काम होगा. संयुक्त उपक्रम के जरिए उत्पादन का काम किया जाएगा.

सतही जल पर भी बनेगी सौर ऊर्जा

क्या है पंप स्टोरेज तकनीक: राजस्थान अक्षय ऊर्जा निगम के प्रबंध निदेशक अनिल ढाका बताते हैं कि पंप स्टोरेज तकनीक उन इलाकों के लिए है जहां सतही जल अधिक है. मतलब बांध तालाब या झील अधिक है. वहां उस पानी का उपयोग करके बिजली का उत्पादन किया जा सकता है. इस तकनीक में दिन के समय बांध, तालाब या झील का पानी ऊपरी स्थान पर स्टोर किया जाता है. इसमें दिन के समय सौर ऊर्जा का इस्तेमाल होता है जो अपेक्षाकृत सस्ती और प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो जाती है. वहीं रात के समय जब प्रदेश में बिजली की डिमांड अधिक रहती है तब ऊपरी स्थान पर स्टोरेज किए गए पानी को नीचे उतारकर टरबाइन के जरिए बिजली उत्पादन किया जाता है. इससे पानी की बर्बादी भी नहीं होती और रात में बिजली का उत्पादन भी हो जाता है.

पढ़ें-THDC ने राजस्थान सरकार के साथ किया MOU साइन, 10 हजार मेगावाट सौर ऊर्जा का लगेगा प्लांट

फ्लोटिंग तकनीक: अनिल ढाका के अनुसार जिन इलाकों में सतही जल अधिक मात्रा में है (Floating technique for solar power), वहां सौर ऊर्जा जनरेट करने के बड़े-बड़े पैनल पानी की सतह पर बिछाए जाते हैं, जो पानी में ऊपरी सतह पर तैरते हैं और दिन के समय उस पर पड़ने वाली सूर्य की किरणों से बिजली भी बनती है. इस तकनीक के जरिए पानी की सतह का उपयोग भी सौर ऊर्जा बनाने के लिए आसानी से हो जाता है. भारत में अंडमान निकोबार समेत कुछ स्थानों पर इस तकनीक का उपयोग कर सौर ऊर्जा का उत्पादन किया जा रहा है.

जालोर में मॉडल प्रोजेक्ट के तहत चल रहा कार्य: अक्षय ऊर्जा निगम के प्रबंध निदेशक अनिल ढाका के अनुसार इस तकनीक की सफलता जांचने के लिए प्रायोगिक तौर पर मॉडल प्रोजेक्ट के रूप में जालोर को चुना गया है. जहां एक कंपनी की ओर से 4 से 5 मेगावाट का छोटा सा प्लांट लगाया गया है.

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अक्षय ऊर्जा में प्रदेश नंबर वन: राजस्थान सौर ऊर्जा के क्षेत्र में ही नए कीर्तिमान नहीं बना रहा बल्कि अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता विकसित करने में भी राजस्थान देश के टॉप राज्यों में शामिल है. केंद्र सरकार के मंत्रालय ने इस साल मार्च में जो आंकड़े जारी किए वो तो यही बताते हैं. आंकड़ों के अनुसार 17040.62 मेगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता विकसित कर राजस्थान अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में टॉप पर पहुंच गया.

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