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फुटपाथ पर चल रही 'दीदी' की अनूठी पाठशाला, भिक्षा मांगने वाले बच्चों का शिक्षा से संवार रहीं भविष्य - Nikita's school

कहते हैं जहां चाह है वहां राह है...मलिन बस्तियों में रहने वाले बच्चों की जिंदगी में शिक्षा की रोशनी लाने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता निकिता कुमावत ने झुग्गी-झोपड़ियों के पास ही पाठशाला लगानी शुरू कर दी. बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया जिससे आज उनकी पाठशाला में 50 से अधिक बच्चे रोजाना पढ़ने आते हैं. इससे उनके रहन-सहन के तरीके और सोच में भी बदलाव आया है. बच्चे अब जिंदगी में कुछ बनना चाहते हैं. कुछ बच्चे नशे के लती थे लेकिन रोजाना पाठशाला आने के बाद अब उन्हें सिर्फ एक नशा है पढ़ाई का. पढ़ें पूरी खबर

शिक्षक दिवस स्पेशल , फुटपाथ पर पाठशाला,  दीदी की पाठशाला , झुग्गी-झोपड़ी के बच्चे, teachers day special,  school on the footpath,  Didi ki pathshala , slum children
फुटपाथ पर पाठशाला
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Published : Sep 5, 2021, 8:12 PM IST

जयपुर. झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले गरीब बच्चों की जिंदगी में शिक्षा का उजाला बिखेर रहीं निकिता दीदी की फुटपाथ पर चलने वाली पाठशाला में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ रही हैं. जी हां, जयपुर में रहने वाली 23 वर्षीय निकिता कुमावत ने फुटपाथ पर अपनी अनूठी पाठशाला शुरू की है. झुग्गी झोपड़ियों के पास ही वे रोजाना अपनी क्लास चलाती हैं.

आज हाल ये है कि 'दीदी की पाठशाला' में मलिन बस्तियों में रहने वाले काफी बच्चे रोजाना पढ़ने आ रहे हैं. पहले जिन हाथों में भीख मांगने के लिए हाथ में कटोरा दिखाई देता था आज उन हाथों में कलम और कंधों पर बस्ता हुआ करता है. अनाथ और बेसहारा बच्चों को पढ़ाने का सपना देखने वाली निकिता ने इन बच्चों की आंखों में भी ढेरों सपने भर दिए हैं. यहां पढ़ने वाला हर बच्चा आज बड़ा होकर अफसर बनना चाहता है.

फुटपाथ पर पाठशाला

पढ़ें: शिक्षक दिवस विशेष : 75 साल पहले आदिवासी बालिका काली बाई ने अंग्रेजों की गोली खाकर जगाई थी शिक्षा की अलख

अपनी सास सामाजिक कार्यकर्ता चंदा कुमावत से प्रेरणा लेकर निकिता झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले गरीब बच्चों का भविष्य संवारने का काम कर रहीं हैं. बच्चों को पढ़ाने के लिए जगह नहीं मिलने पर निकिता ने मलिन बस्ती के पास फुटपाथ पर ही बच्चों की पाठशाला लगानी शुरू कर दी. आज वह 50 से ज्यादा गरीब बच्चों को शिक्षा दे रहीं हैं.

फुटपाथ पर ही बना डाली पाठशाला

निकिता कुमावत जब शादी कर अपने ससुराल आईं तो उसने अपने सपने के बारे में अपनी सास चंदा कुमावत को बताया. चंदा कुमावत एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं. उन्होंने अपनी बहू की सोच की सराहना करने के साथ उसका सहयोग भी किया. निकिता कुमावत विद्याधर नगर स्थित झुग्गी झोपड़ी में पहुंची और यहां रहने वाले बच्चों के गरीब मां-बाप को शिक्षा के महत्व के बारे में समझाया. यह बच्चे आस-पास के क्षेत्रों में भीख मांग कर दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करते थे.

काफी समझाने के बाद इन बच्चों के मां-बाप को शिक्षा का महत्व और उससे उनके उज्ज्वल भविष्य की बात समझ आई. बच्चों के बेहतर भविष्य की उम्मीद में उन्होंने निकिता के हाथों में अपने बच्चों को सौंप दिया. निकिता का कहना है कि जब भी वह किसी झुग्गी-झोपड़ी के पास से गुजरती थीं तो वहां बच्चों को भीख मांगते हुए देख कर बड़ा बुरा लगता है. उनके हालात देखकर बहुत दया भी आती थी.

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बच्चों को पढ़ातीं निकिता कुमावत

पढ़ें: शिक्षक दिवस विशेष: दोस्तों की अनूठी पहल, 'अपनी पाठशाला' से नौनिहालों का भविष्य कर रहे उज्जवल

निकिता ने कहा कि स्कूल खोलने के लिए इतने पैसे भी नहीं थे और यहां बच्चों से बात की तो वे पढ़ने के लिए इच्छुक भी दिखे. इसलिए निकिता ने झुग्गी झोपड़ी के पास स्थित फुटपाथ पर ही बच्चों की पाठशाला लगानी शुरू कर दी. शुरुआत में थोड़ी परेशानी जरूर हुई लेकिन धीरे-धीरे झोपड़ियों में रहने वाले गरीब मां-बाप को समझ आ गया कि शिक्षा से ही उनके बच्चों का भविष्य संवर सकता है. आज झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले करीब 50 से ज्यादा बच्चे निकिता की पाठशाला में पढ़ने आते हैं.

कोई कलेक्टर तो कोई बनना चाहता है फौजी

निकिता की अनूठी पाठशाला में पढ़ने वाले बच्चे भी अब अपने भविष्य को लेकर सपने बुनने लगे हैं. बच्चे अब कलेक्टर या फौजी बनकर अपने देश की सेवा करना चाहते हैं. जब ईटीवी भारत ने पाठशाला में पढ़ने वाले बच्चों से बात की तो पढ़ाई को लेकर उनके चेहरे पर अलग ही खुशी देखने को मिली. बच्चों ने बताया कि पहले वे चौराहों पर भीख मांग कर अपने और परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करते थे. भीख मांगना उन्हें अच्छा नहीं लगता था लेकिन मजबूरी में करना पड़ता था, लेकिन निकिता दीदी ने हम लोगों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया. अब हम रोज पढ़ने आते हैं और हमें अच्छा भी लगता है.

छात्रा किरण ने कहा कि मुझे पढ़ना लिखना अच्छा लगता है और बड़ी होकर कलेक्टर बनना चाहती हूं. इसी तरह दीपक ने कहा कि घर वाले पहले स्कूल नहीं भेजते थे. यूं ही सड़क पर घूमता फिरता रहता था. पढ़ाई करने की इच्छा थी, लेकिन नहीं कर पा रहे थे. घर के पास ही निकिता दीदी की पाठशाला लगने लगी तो पढ़ने आने लगा. पढ़-लिखकर मैं फौजी बनना चाहता हूं.

पढ़ें: शिक्षक दिवस: राज्यपाल मिश्र ने कहा- राजस्थान को देश का अग्रणी शिक्षा राज्य बनाने का लें संकल्प

पाठशाला में है संसाधनों की कमी

निकिता ने बताया कि जब उन्हें बच्चों को पढ़ाने के लिए कोई जगह नहीं मिली तो फुटपाथ पर ही पढ़ाना शुरू कर दिया. उसकी यह पाठशाला खुले आसमान के नीचे चल रही है, ऐसे में धूप और बारिश में काफी परेशानी होती है. निकिता सरकार, नेताओं और समाजसेवियों से उम्मीद कर रही हैं कि कोई आए और इन बच्चों की मदद के लिए हाथ बढ़ाए ताकि इनका भविष्य सुधर सके. अपने ही स्तर पर निकिता इन बच्चों को पढ़ने के लिए किताबें-कॉपी और पेंसिल उपलब्ध करवाती हैं. इन बच्चों को बैठाने के लिए दरी तक नहीं है. सीमेंट के कट्टे से बनाए हुए त्रिपाल पर ही बैठाकर यह बच्चों की पढ़ा हैं.

बताती हैं कि जब इन बच्चों को नई किताबें, पेंसिल और कॉपी दी जाती है तो इनके चेहरे की खुशी देखते ही बनती है. इनमें पढ़ने की ललक भी दिखाई देती है. निकिता की सास अपनी बहू के सपने को पूरा करने के लिए उसकी पूरी मदद कर रहीं हैं और हर संभव सामान भी उपलब्ध करवाती हैं. वह चाहती हैं कि बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले और भविष्य में कुछ बनकर देश का नाम रोशन करें.

पढ़ें: मदरसा पैराटीचर्स में गहलोत सरकार और अल्पसंख्यक विधायकों के खिलाफ आक्रोश, कहा-मांग नहीं मानी तो विधानसभा चुनाव में होगा नुकसान

भिक्षा से नहीं शिक्षा से संवरेगा भविष्य

निकिता कुमावत ने बताया कि इन गरीब बच्चों को पढ़ा कर उन्हें बहुत सुकून मिलता है. उन्हें खुशी है कि उनकी पाठशाला में बच्चों की संख्या बढ़ रही है. जब शादी हुई तो लगा कि घर संभालने में उनका सपना अधूरा रह जाएगा, लेकिन अपनी सास और पति के सहयोग से वह गरीब बच्चों के भविष्य को सुधारने के लिए तत्पर हैं. निकिता बताती हैं कि वह प्रतिदिन पाठशाला पहुंचती है और इन बच्चों को पढ़ाती हैं. कोरोना काल में भी उनकी पाठशाला चलती रही. हालांकि थोड़ी परेशानी जरूर हुई, लेकिन मैनेज कर लीं. निकिता ने कहा कि जैसे-जैसे कोरोना संक्रमण कम हो रहा है, बच्चों की संख्या बढ़ रही है.

कुछ बेहतर करने के लिए अच्छी और पॉजिटिव सोच होना जरूरी है. माता-पिता को भी चाहिए कि भीख मांगकर रहने पर बच्चों का भविष्य क्या होगा. गरीब मां-बाप को भी अपने बच्चों को पढ़ने के लिए भेजना चाहिए. निकिता ने कहा कि शुरू में जब वे स्लम एरिया में बच्चों को पढ़ाने आती थीं तो उन्हें न रहने का सलीका था और न कपड़े पहनने का. बच्चे रोज नहाते तक नहीं थे लेकिन आज आलम यह है कि बच्चे रोज नहाकर पाठशाला आते हैं. उन्होंने बताया कि कुछ बच्चे पहले नशा भी करते थे, लेकिन आज उन्हें सिर्फ पढ़ने का नशा है.

जयपुर. झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले गरीब बच्चों की जिंदगी में शिक्षा का उजाला बिखेर रहीं निकिता दीदी की फुटपाथ पर चलने वाली पाठशाला में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ रही हैं. जी हां, जयपुर में रहने वाली 23 वर्षीय निकिता कुमावत ने फुटपाथ पर अपनी अनूठी पाठशाला शुरू की है. झुग्गी झोपड़ियों के पास ही वे रोजाना अपनी क्लास चलाती हैं.

आज हाल ये है कि 'दीदी की पाठशाला' में मलिन बस्तियों में रहने वाले काफी बच्चे रोजाना पढ़ने आ रहे हैं. पहले जिन हाथों में भीख मांगने के लिए हाथ में कटोरा दिखाई देता था आज उन हाथों में कलम और कंधों पर बस्ता हुआ करता है. अनाथ और बेसहारा बच्चों को पढ़ाने का सपना देखने वाली निकिता ने इन बच्चों की आंखों में भी ढेरों सपने भर दिए हैं. यहां पढ़ने वाला हर बच्चा आज बड़ा होकर अफसर बनना चाहता है.

फुटपाथ पर पाठशाला

पढ़ें: शिक्षक दिवस विशेष : 75 साल पहले आदिवासी बालिका काली बाई ने अंग्रेजों की गोली खाकर जगाई थी शिक्षा की अलख

अपनी सास सामाजिक कार्यकर्ता चंदा कुमावत से प्रेरणा लेकर निकिता झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले गरीब बच्चों का भविष्य संवारने का काम कर रहीं हैं. बच्चों को पढ़ाने के लिए जगह नहीं मिलने पर निकिता ने मलिन बस्ती के पास फुटपाथ पर ही बच्चों की पाठशाला लगानी शुरू कर दी. आज वह 50 से ज्यादा गरीब बच्चों को शिक्षा दे रहीं हैं.

फुटपाथ पर ही बना डाली पाठशाला

निकिता कुमावत जब शादी कर अपने ससुराल आईं तो उसने अपने सपने के बारे में अपनी सास चंदा कुमावत को बताया. चंदा कुमावत एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं. उन्होंने अपनी बहू की सोच की सराहना करने के साथ उसका सहयोग भी किया. निकिता कुमावत विद्याधर नगर स्थित झुग्गी झोपड़ी में पहुंची और यहां रहने वाले बच्चों के गरीब मां-बाप को शिक्षा के महत्व के बारे में समझाया. यह बच्चे आस-पास के क्षेत्रों में भीख मांग कर दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करते थे.

काफी समझाने के बाद इन बच्चों के मां-बाप को शिक्षा का महत्व और उससे उनके उज्ज्वल भविष्य की बात समझ आई. बच्चों के बेहतर भविष्य की उम्मीद में उन्होंने निकिता के हाथों में अपने बच्चों को सौंप दिया. निकिता का कहना है कि जब भी वह किसी झुग्गी-झोपड़ी के पास से गुजरती थीं तो वहां बच्चों को भीख मांगते हुए देख कर बड़ा बुरा लगता है. उनके हालात देखकर बहुत दया भी आती थी.

शिक्षक दिवस स्पेशल , फुटपाथ पर पाठशाला,  दीदी की पाठशाला , झुग्गी-झोपड़ी के बच्चे, teachers day special,  school on the footpath,  Didi ki pathshala , slum children
बच्चों को पढ़ातीं निकिता कुमावत

पढ़ें: शिक्षक दिवस विशेष: दोस्तों की अनूठी पहल, 'अपनी पाठशाला' से नौनिहालों का भविष्य कर रहे उज्जवल

निकिता ने कहा कि स्कूल खोलने के लिए इतने पैसे भी नहीं थे और यहां बच्चों से बात की तो वे पढ़ने के लिए इच्छुक भी दिखे. इसलिए निकिता ने झुग्गी झोपड़ी के पास स्थित फुटपाथ पर ही बच्चों की पाठशाला लगानी शुरू कर दी. शुरुआत में थोड़ी परेशानी जरूर हुई लेकिन धीरे-धीरे झोपड़ियों में रहने वाले गरीब मां-बाप को समझ आ गया कि शिक्षा से ही उनके बच्चों का भविष्य संवर सकता है. आज झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले करीब 50 से ज्यादा बच्चे निकिता की पाठशाला में पढ़ने आते हैं.

कोई कलेक्टर तो कोई बनना चाहता है फौजी

निकिता की अनूठी पाठशाला में पढ़ने वाले बच्चे भी अब अपने भविष्य को लेकर सपने बुनने लगे हैं. बच्चे अब कलेक्टर या फौजी बनकर अपने देश की सेवा करना चाहते हैं. जब ईटीवी भारत ने पाठशाला में पढ़ने वाले बच्चों से बात की तो पढ़ाई को लेकर उनके चेहरे पर अलग ही खुशी देखने को मिली. बच्चों ने बताया कि पहले वे चौराहों पर भीख मांग कर अपने और परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करते थे. भीख मांगना उन्हें अच्छा नहीं लगता था लेकिन मजबूरी में करना पड़ता था, लेकिन निकिता दीदी ने हम लोगों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया. अब हम रोज पढ़ने आते हैं और हमें अच्छा भी लगता है.

छात्रा किरण ने कहा कि मुझे पढ़ना लिखना अच्छा लगता है और बड़ी होकर कलेक्टर बनना चाहती हूं. इसी तरह दीपक ने कहा कि घर वाले पहले स्कूल नहीं भेजते थे. यूं ही सड़क पर घूमता फिरता रहता था. पढ़ाई करने की इच्छा थी, लेकिन नहीं कर पा रहे थे. घर के पास ही निकिता दीदी की पाठशाला लगने लगी तो पढ़ने आने लगा. पढ़-लिखकर मैं फौजी बनना चाहता हूं.

पढ़ें: शिक्षक दिवस: राज्यपाल मिश्र ने कहा- राजस्थान को देश का अग्रणी शिक्षा राज्य बनाने का लें संकल्प

पाठशाला में है संसाधनों की कमी

निकिता ने बताया कि जब उन्हें बच्चों को पढ़ाने के लिए कोई जगह नहीं मिली तो फुटपाथ पर ही पढ़ाना शुरू कर दिया. उसकी यह पाठशाला खुले आसमान के नीचे चल रही है, ऐसे में धूप और बारिश में काफी परेशानी होती है. निकिता सरकार, नेताओं और समाजसेवियों से उम्मीद कर रही हैं कि कोई आए और इन बच्चों की मदद के लिए हाथ बढ़ाए ताकि इनका भविष्य सुधर सके. अपने ही स्तर पर निकिता इन बच्चों को पढ़ने के लिए किताबें-कॉपी और पेंसिल उपलब्ध करवाती हैं. इन बच्चों को बैठाने के लिए दरी तक नहीं है. सीमेंट के कट्टे से बनाए हुए त्रिपाल पर ही बैठाकर यह बच्चों की पढ़ा हैं.

बताती हैं कि जब इन बच्चों को नई किताबें, पेंसिल और कॉपी दी जाती है तो इनके चेहरे की खुशी देखते ही बनती है. इनमें पढ़ने की ललक भी दिखाई देती है. निकिता की सास अपनी बहू के सपने को पूरा करने के लिए उसकी पूरी मदद कर रहीं हैं और हर संभव सामान भी उपलब्ध करवाती हैं. वह चाहती हैं कि बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले और भविष्य में कुछ बनकर देश का नाम रोशन करें.

पढ़ें: मदरसा पैराटीचर्स में गहलोत सरकार और अल्पसंख्यक विधायकों के खिलाफ आक्रोश, कहा-मांग नहीं मानी तो विधानसभा चुनाव में होगा नुकसान

भिक्षा से नहीं शिक्षा से संवरेगा भविष्य

निकिता कुमावत ने बताया कि इन गरीब बच्चों को पढ़ा कर उन्हें बहुत सुकून मिलता है. उन्हें खुशी है कि उनकी पाठशाला में बच्चों की संख्या बढ़ रही है. जब शादी हुई तो लगा कि घर संभालने में उनका सपना अधूरा रह जाएगा, लेकिन अपनी सास और पति के सहयोग से वह गरीब बच्चों के भविष्य को सुधारने के लिए तत्पर हैं. निकिता बताती हैं कि वह प्रतिदिन पाठशाला पहुंचती है और इन बच्चों को पढ़ाती हैं. कोरोना काल में भी उनकी पाठशाला चलती रही. हालांकि थोड़ी परेशानी जरूर हुई, लेकिन मैनेज कर लीं. निकिता ने कहा कि जैसे-जैसे कोरोना संक्रमण कम हो रहा है, बच्चों की संख्या बढ़ रही है.

कुछ बेहतर करने के लिए अच्छी और पॉजिटिव सोच होना जरूरी है. माता-पिता को भी चाहिए कि भीख मांगकर रहने पर बच्चों का भविष्य क्या होगा. गरीब मां-बाप को भी अपने बच्चों को पढ़ने के लिए भेजना चाहिए. निकिता ने कहा कि शुरू में जब वे स्लम एरिया में बच्चों को पढ़ाने आती थीं तो उन्हें न रहने का सलीका था और न कपड़े पहनने का. बच्चे रोज नहाते तक नहीं थे लेकिन आज आलम यह है कि बच्चे रोज नहाकर पाठशाला आते हैं. उन्होंने बताया कि कुछ बच्चे पहले नशा भी करते थे, लेकिन आज उन्हें सिर्फ पढ़ने का नशा है.

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