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Snake rescue माफिया सक्रिय : सोशल मीडिया पर सांपों के साथ स्टंट के Video Viral...वन्यजीव प्रेमियों ने किया विरोध

राजस्थान में इन दिनों सांपों के साथ स्टंट के वीडियो और फोटो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहे हैं. इसको लेकर वन्य प्रेमी नाराजगी जता रहे हैं. सांपों की तस्करी करने वाले माफिया भी सक्रिय हो चुके हैं.

Snake smuggling wildlife lover protests
राजस्थान में Snake rescue माफिया सक्रिय
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Published : May 23, 2021, 9:38 PM IST

जयपुर. राजस्थान में सांपों के साथ स्टंट और अवैध रेस्क्यू को लेकर वन्यजीव प्रेमियों ने आक्रोश जताया है. वन्यजीव प्रेमियों का आरोप है कि रेस्क्यू की आड़ में तस्करी और सांप का वेनम निकालने का भी काम किया जा रहा है.

राजस्थान में Snake rescue माफिया सक्रिय

प्रदेश में स्नेक रेस्क्यू माफिया पनप रहा है. सोशल मीडिया पर सांपों के साथ स्टंट जान पर भारी पड़ जाता है. कई बार लोग सोशल मीडिया पर देखकर स्टंट को देखकर फॉलो करने का प्रयास करते हैं, जिससे उनकी जान पर खतरा बन जाता है. लगभग सभी सांप वाइल्डलाइफ प्रोटक्शन एक्ट 1972 के तहत संरक्षण श्रेणी में आते हैं. इस तरह सांपों की अवैध तस्करी और रेस्क्यू अपराध की श्रेणी में माना जाता है.

5-10 साल में पनपा स्नेक माफिया

वन्यजीव प्रेमियों की मानें तो राजस्थान में महज़ 5 से 10 सालों के अंदर एक ऐसा माफिया पनपा है जो आपकी आंखों के सामने से अवैध काम कर जाता है और आपको भनक भी नहीं लगती. और तो और आप इनाम के तौर पर इनको सर्टिफिकेट और पैसे तक दे रहे हैं. ये अवैध स्नेक रेस्क्यू माफ़िया है. स्नेक रेस्क्यू अब इनका धंधा बन चुका है. जिले वार गैंग्स पनप चुकी हैं, जो अब इस धंधे में शामिल हैं.

स्नेक रेस्क्यू के नाम पर धोखा

वाइल्डलाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो सदस्य अनिल रोजर्स के मुताबिक पहले या तो व्यक्तिगत रूप से स्नेक रेस्क्यु का काम शुरू करना, फिर संगठन बना लेना. इनकी मोडस ऑपरेण्डी ऐसी है कि शरुआत में लोगों की नज़रों में जमने के लिए सच्चाई से रेस्क्यू करते हैं, कभी कभी तो रेस्क्यु के पैसे भी नहीं लेते. इनका मकसद होता है सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों में अपनी पैठ जमाना. अधिकांश मामलों में सफल हो जाते हैं. इनके मोबाइल नंबर्स को सोशियल मीडिया के माध्यम से और स्नेक रेस्क्यू के नाम पर प्रचारित करते हैं.

पढ़ें-इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध से जुड़ा रहा है अलवर का इतिहास, आर्थिक मदद और हथियार कराए थे मुहैया...रियासत के सैनिकों ने भी लिया था हिस्सा

सांप के अंगों की तस्करी करते हैं ये माफिया

उधर वन विभाग और स्थानीय प्रशासन इस बात से अनजान की इन लोगों का असली काम क्या है इनको सार्वजनिक समारोह में सर्टिफिकेट प्रदान करते हैं. कुछ बड़े लोगों से ये उनके लेटर हेड पर प्रशस्ति पत्र भी लिखवा लेते हैं. अब जब रास्ता साफ हो जाता है, ये अपना असली काम शुरू करते हैं. ये है सांपों की तस्करी उनके अंगों का व्यापार एवं अवैध रूप से सांप का विष निकाल कर बेचान करना. जो ज्यादातर चाइनीज़ मेडिसिन में काम आता है. इस वजह से वैध रूप से बनने वाली एन्टी वेनम में भी कई बार कमी आ जाती है.

सांपों की कालाबाजारी की संभावना

यहां यह बताना बेहद ज़रूरी है कि अंतरराष्ट्रीय ब्लैक मार्केट में कुछ सांपों की कीमत करोड़ों में है. अतः इनकी कालाबाज़ारी होना भी तय है. अनिल रोजर्स के अनुसार इन गैंग्स की दादागिरी और दहशत इतनी है कि कोई इनके आगे नहीं बोलता. यदि एक ही जगह दो गैंग के सदस्य पहुंच जाते हैं तो वो वहां झगड़े और हाथापाई पर उतारू हो जाते हैं. मामला सेटल नहीं होने पर सांप वहीं फेंक कर चले जाते हैं. जैसा सांप वैसा सांप पकड़ने वाले की पैसे की डिमांड. कई बार तो बिना ज़हर वाले साँप को बेहद दुर्लभ और ज़हरीला बता के हज़ारों रुपये ऐंठ लेते हैं.

नकल के चक्कर में युवा बन रहे दंश

स्नेक रेस्क्यु माफ़िया कई युवा लोगों की ज़िंदगी से खिलवाड़ कर रहा है. उन्हें जान के खतरे की तरफ धकेल रहा है. इसके पीछे कहीं न कहीं जल्दी फेमस होना और मोटी अवैध कामाई करना भी है. वहीं सोशियल मीडिया पर स्टंट कर फ़ोटो वीडियो डालना इनके शगल में शामिल हो चुका है, जिसकी वजह से जो बच्चे इनको सोशल मीडिया पर फॉलो करते हैं स्नेक बाइट की वजह से अपनी जान तक गंवा चुके हैं. कुछ स्नेक रेस्क्युर्स बिना वेटनरी नॉलेज के वाहवाही के चक्कर में सांपों के इलाज भी करने लगे हैं. पूछने पर इनका तर्क होता है कि हम यह दूसरे राज्य के सर्प मित्र से सीखकर आए हैं.

आज कल कुछ पुलिस मित्र भी सांप पकड़ने का काम करने लगे हैं. जबकि इनका काम पुलिस की सहायता करना होता है. सांप को पकड़ने का काम फारेस्ट डिपार्टमेंट का एवं प्रशिक्षित एनजीओ एवं प्रशिक्षित निजी व्यक्ति का होता है. सांप पकड़ने का काम सिविल डिफेंस वाले भी तभी कर सकते हैं जब वो इस काम के लिए प्रशिक्षित हों.

प्रोटोकॉल तय होना चाहिए

अजमेर के महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं प्रोफेसर कृष्ण कुमार शर्मा ने बताया कि स्नेक को पकड़ने और छोड़ने का कोई प्रोटोकॉल नहीं है. जिसने मर्जी आया स्नेक पकड़ लिया और छोड़ दिया. यह भी पता नहीं रहता है कि कब तक अपने घर में रखा और कहां पर छोड़ा. देशभर में इस तरह का अवैध काम चल रहा है. क्योंकि इन पर कोई नियंत्रण नहीं है.

स्नेक रेस्क्यू का निश्चित प्रोटोकॉल होना चाहिए. कौन इन्हें पकड़ सकता है और कौन नहीं पकड़ सकता. कौन पकड़ सकता है और कहां पर छोड़ सकता है. स्नेक पकड़ने वालों पर निगरानी होनी चाहिए. निश्चित लोगों को ही स्नेक रेस्क्यू की ट्रेनिंग देनी चाहिए, ताकि सांपों की तस्करी नहीं हो. कई बार इनका वेनम भी निकाल लिया जाता है. जिसकी वजह से गवर्नमेंट ऑफ इंडिया के वेनम एक्सचेंज सेंटर को पर्याप्त साथ नहीं मिल पाते हैं. ऐसे में सरकार और विभाग को इस पर ध्यान देने की जरूरत है.

वन विभाग इनपर कोई कार्रवाई नहीं करता. जिसके चलते ये रेस्क्यु माफ़िया फल फूल रहा है. वहीं कई व्यक्तिगत लोग एवं संगठन अच्छा काम भी कर रहे हैं. वन विभाग के साथ-साथ अब जनता को भी जागरूक होने की जरूरत है. वहीं अवैध रूप से सांप पकड़ने वालों के खिलाफ उचित कार्यवाई करने की और स्नेक रेस्क्यु प्रोटोकॉल के लिखित आदेश ज़ारी करने की आवश्यकता है.

जयपुर. राजस्थान में सांपों के साथ स्टंट और अवैध रेस्क्यू को लेकर वन्यजीव प्रेमियों ने आक्रोश जताया है. वन्यजीव प्रेमियों का आरोप है कि रेस्क्यू की आड़ में तस्करी और सांप का वेनम निकालने का भी काम किया जा रहा है.

राजस्थान में Snake rescue माफिया सक्रिय

प्रदेश में स्नेक रेस्क्यू माफिया पनप रहा है. सोशल मीडिया पर सांपों के साथ स्टंट जान पर भारी पड़ जाता है. कई बार लोग सोशल मीडिया पर देखकर स्टंट को देखकर फॉलो करने का प्रयास करते हैं, जिससे उनकी जान पर खतरा बन जाता है. लगभग सभी सांप वाइल्डलाइफ प्रोटक्शन एक्ट 1972 के तहत संरक्षण श्रेणी में आते हैं. इस तरह सांपों की अवैध तस्करी और रेस्क्यू अपराध की श्रेणी में माना जाता है.

5-10 साल में पनपा स्नेक माफिया

वन्यजीव प्रेमियों की मानें तो राजस्थान में महज़ 5 से 10 सालों के अंदर एक ऐसा माफिया पनपा है जो आपकी आंखों के सामने से अवैध काम कर जाता है और आपको भनक भी नहीं लगती. और तो और आप इनाम के तौर पर इनको सर्टिफिकेट और पैसे तक दे रहे हैं. ये अवैध स्नेक रेस्क्यू माफ़िया है. स्नेक रेस्क्यू अब इनका धंधा बन चुका है. जिले वार गैंग्स पनप चुकी हैं, जो अब इस धंधे में शामिल हैं.

स्नेक रेस्क्यू के नाम पर धोखा

वाइल्डलाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो सदस्य अनिल रोजर्स के मुताबिक पहले या तो व्यक्तिगत रूप से स्नेक रेस्क्यु का काम शुरू करना, फिर संगठन बना लेना. इनकी मोडस ऑपरेण्डी ऐसी है कि शरुआत में लोगों की नज़रों में जमने के लिए सच्चाई से रेस्क्यू करते हैं, कभी कभी तो रेस्क्यु के पैसे भी नहीं लेते. इनका मकसद होता है सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों में अपनी पैठ जमाना. अधिकांश मामलों में सफल हो जाते हैं. इनके मोबाइल नंबर्स को सोशियल मीडिया के माध्यम से और स्नेक रेस्क्यू के नाम पर प्रचारित करते हैं.

पढ़ें-इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध से जुड़ा रहा है अलवर का इतिहास, आर्थिक मदद और हथियार कराए थे मुहैया...रियासत के सैनिकों ने भी लिया था हिस्सा

सांप के अंगों की तस्करी करते हैं ये माफिया

उधर वन विभाग और स्थानीय प्रशासन इस बात से अनजान की इन लोगों का असली काम क्या है इनको सार्वजनिक समारोह में सर्टिफिकेट प्रदान करते हैं. कुछ बड़े लोगों से ये उनके लेटर हेड पर प्रशस्ति पत्र भी लिखवा लेते हैं. अब जब रास्ता साफ हो जाता है, ये अपना असली काम शुरू करते हैं. ये है सांपों की तस्करी उनके अंगों का व्यापार एवं अवैध रूप से सांप का विष निकाल कर बेचान करना. जो ज्यादातर चाइनीज़ मेडिसिन में काम आता है. इस वजह से वैध रूप से बनने वाली एन्टी वेनम में भी कई बार कमी आ जाती है.

सांपों की कालाबाजारी की संभावना

यहां यह बताना बेहद ज़रूरी है कि अंतरराष्ट्रीय ब्लैक मार्केट में कुछ सांपों की कीमत करोड़ों में है. अतः इनकी कालाबाज़ारी होना भी तय है. अनिल रोजर्स के अनुसार इन गैंग्स की दादागिरी और दहशत इतनी है कि कोई इनके आगे नहीं बोलता. यदि एक ही जगह दो गैंग के सदस्य पहुंच जाते हैं तो वो वहां झगड़े और हाथापाई पर उतारू हो जाते हैं. मामला सेटल नहीं होने पर सांप वहीं फेंक कर चले जाते हैं. जैसा सांप वैसा सांप पकड़ने वाले की पैसे की डिमांड. कई बार तो बिना ज़हर वाले साँप को बेहद दुर्लभ और ज़हरीला बता के हज़ारों रुपये ऐंठ लेते हैं.

नकल के चक्कर में युवा बन रहे दंश

स्नेक रेस्क्यु माफ़िया कई युवा लोगों की ज़िंदगी से खिलवाड़ कर रहा है. उन्हें जान के खतरे की तरफ धकेल रहा है. इसके पीछे कहीं न कहीं जल्दी फेमस होना और मोटी अवैध कामाई करना भी है. वहीं सोशियल मीडिया पर स्टंट कर फ़ोटो वीडियो डालना इनके शगल में शामिल हो चुका है, जिसकी वजह से जो बच्चे इनको सोशल मीडिया पर फॉलो करते हैं स्नेक बाइट की वजह से अपनी जान तक गंवा चुके हैं. कुछ स्नेक रेस्क्युर्स बिना वेटनरी नॉलेज के वाहवाही के चक्कर में सांपों के इलाज भी करने लगे हैं. पूछने पर इनका तर्क होता है कि हम यह दूसरे राज्य के सर्प मित्र से सीखकर आए हैं.

आज कल कुछ पुलिस मित्र भी सांप पकड़ने का काम करने लगे हैं. जबकि इनका काम पुलिस की सहायता करना होता है. सांप को पकड़ने का काम फारेस्ट डिपार्टमेंट का एवं प्रशिक्षित एनजीओ एवं प्रशिक्षित निजी व्यक्ति का होता है. सांप पकड़ने का काम सिविल डिफेंस वाले भी तभी कर सकते हैं जब वो इस काम के लिए प्रशिक्षित हों.

प्रोटोकॉल तय होना चाहिए

अजमेर के महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं प्रोफेसर कृष्ण कुमार शर्मा ने बताया कि स्नेक को पकड़ने और छोड़ने का कोई प्रोटोकॉल नहीं है. जिसने मर्जी आया स्नेक पकड़ लिया और छोड़ दिया. यह भी पता नहीं रहता है कि कब तक अपने घर में रखा और कहां पर छोड़ा. देशभर में इस तरह का अवैध काम चल रहा है. क्योंकि इन पर कोई नियंत्रण नहीं है.

स्नेक रेस्क्यू का निश्चित प्रोटोकॉल होना चाहिए. कौन इन्हें पकड़ सकता है और कौन नहीं पकड़ सकता. कौन पकड़ सकता है और कहां पर छोड़ सकता है. स्नेक पकड़ने वालों पर निगरानी होनी चाहिए. निश्चित लोगों को ही स्नेक रेस्क्यू की ट्रेनिंग देनी चाहिए, ताकि सांपों की तस्करी नहीं हो. कई बार इनका वेनम भी निकाल लिया जाता है. जिसकी वजह से गवर्नमेंट ऑफ इंडिया के वेनम एक्सचेंज सेंटर को पर्याप्त साथ नहीं मिल पाते हैं. ऐसे में सरकार और विभाग को इस पर ध्यान देने की जरूरत है.

वन विभाग इनपर कोई कार्रवाई नहीं करता. जिसके चलते ये रेस्क्यु माफ़िया फल फूल रहा है. वहीं कई व्यक्तिगत लोग एवं संगठन अच्छा काम भी कर रहे हैं. वन विभाग के साथ-साथ अब जनता को भी जागरूक होने की जरूरत है. वहीं अवैध रूप से सांप पकड़ने वालों के खिलाफ उचित कार्यवाई करने की और स्नेक रेस्क्यु प्रोटोकॉल के लिखित आदेश ज़ारी करने की आवश्यकता है.

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