जयपुर. राजस्थान में इन दिनों सियासत परवान चढ़ रही है. जाहिर है कि कांग्रेस और बीजेपी के लिये ये राज्य हर लिहाज से खास है, लिहाजा दोनों ही राजनीतिक दल पुरजोर कोशिश कर रहे हैं कि किसी तरह 2023 के चुनाव में (BJP Mission 2023) सत्ता की चाबी हाथ लग जाए. राजस्थान में अगर सत्ता की चाबी की बात की जाए , तो ज्यादातर चुनावी नतीजों ने ये साबित भी किया है कि उदयपुर संभाग में बढ़त हासिल करने वाली पार्टी के सिर पर ही सेहरा बांधा जाता है. कांग्रेस फिलहाल सत्ता में है और उदयपुर में चिंतन शिविर करने वाली है वहीं बीजेपी ने एक कदम आगे जाकर उदयपुर संभाग के साथ ही पूरे सूबे में आदिवासी वोट बैंक (Rajasthan Adivasi Voters) में सेंध लगाने की कोशिशों को तेज कर दिया है.
चुनावी साल में इशारा मिल चुका है: राजनीतिक दौड़-भाग के इस दौर में जयपुर देश की सियासत का केन्द्र हाल के दिनों में बना रहने वाला ह.जल्द ही भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठक जयपुर में होने जा रही है. बीस साल पहले भी इसी तरह का मंथन प्रदेश में हुआ था. तब भी यहां कांग्रेस की सरकार थी और अब भी कांग्रेस का राज है, तब अशोक गहलोत मुख्यमंत्री हुआ करते थे और आज भी कमान गहलोत ही संभाले हुए हैं. पर इस बार देश में जब राजनीतिक मुद्दों का दौर बदला है ,तो लाजिमी है कि मसले भी जुदा होंगे. फिलहाल के कार्यक्रम के मुताबिक 20 और 21 मई को दिल्ली रोड पर एक होटल में अमित शाह और जेपी नड्डा चुनावी राज्यों के लिए बिगुल फूकेंगे. इसमें पीएम मोदी का फिलहाल वर्चुअली शामिल होने का कार्यक्रम बताया जा रहा है. देशभर के इन नेताओं के आने से ज्यादा खास बात ये है कि हालात किस तरफ इशारा कर रहे हैं? जब कांग्रेस अपनी दिशा तय कर चुकी होगी, तब बीजेपी कुछ जाहिर करेगी या फिर दबे अंदाज में गोटी सेट कर दी जाएगी! लेकिन राजनैतिक संकेतों के संदेश को पढ़ें तो कुछ चीजें स्पष्ट हो जाती हैं. अगर गौर करें , तो दौरों का दौर और बैठकों का सिलसिला तो भाजपा के कुनबे में जारी ही है. जेपी नड्डा सवाई माधोपुर आ चुके हैं और दिल्ली में भी बैठकों का दौर कई बार चल चुका है , लिहाजा कसरत मैदान पर ही नजर आएगी.
आदिवासी सीटों पर फोकस: आदिवासियों के लिहाज से (SC Majority Seats On cards) मेवाड़ को महत्वपूर्ण माना जाता है और संख्या बल के नजरिए से देखे तो ट्राइबल सीटों से फिलहाल विधानसभा में 33 विधायक पहुंचे हुए हैं, इनमें से सत्ताधारी पार्टी के 17 एमएलए हैं, तो बीजेपी की नुमाइंदगी 9 सीटों पर दिख रही है और पांच अन्य बाकी की सीटों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. जब सवाई माधोपुर में अनुसूचित जनजाति से जुड़े कार्यक्रम में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा आए , तो इसके बाद ही उदयपुर के लिए अमित शाह के कार्यक्रम की जमीन तैयार होने लग गई , पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने राष्ट्रीय महामंत्री विनोद तावड़े के साथ इन सीटों की नब्ज को टटोलने की कोशिश की . बीजेपी बीते चुनाव की शिकस्त को भूलकर 33 सीटों में से एसटी रिजर्व 25 सीटों पर मौके को भुनाने की कोशिश में जुट गई है. अगर पार्टी अपने मकसद में कामयाब हो जाती है , तो 2022 के आखिर तक गुजरात में होने वाले इलेक्शन में फायदा जाहिर तौर पर दिखेगा. यहां भारतीय ट्राइबल पार्टी ने पहले ही खुद के मजबूत आधार को साबित किया है , ऐसे में खास एजेंडे के तहत अब भाजपा इन सीटों पर फोकस करना चाहती है.
क्यों अहम है आदिवासी वोट बैंक: अगर साल 2018 के चुनाव नतीजों पर गौर किया जाए, तो 8 ऐसी जनरल सीटें थी , जहां से एसटी विधायकों (Tribal Seats Of Rajasthan) ने जीत हासिल की थी. इनमें दौसा से मुरारीलाल मीणा, महवा से ओमप्रकाश हुडला,थानागाजी से कांति मीणा , करौली से लाखन सिंह , देवली-उनियारा सीट से हरीश मीणा,गंगापुर से रामकेश मीणा और पीपल्दा के रामनारायण मीणा जीतकर पहुंचे , वहीं जहाजपुर से गोपीचंद मीणा को जीत मिली थी. इसी तरह से 25 आदिवासी बाहुल्य रिजर्व सीटों में से महज आठ पर फिलहाल कमल खिला हुआ है. अगर बहुमत के साथ मजबूत सरकार को राजस्थान के लिहाज से भाजपा आलाकमान देखता है , तो ये सारी सीटें और समीकरण जेपी नड्डा चाहेंगे कि उनके खाते में दर्ज हो. साथ ही आदिवासी वोट बैंक को आधार बना चुकी बीटीपी को भी बराबर की चुनौती पेश की जाए.
दंगों पर घिरती गहलोत सरकार: हाल के दौर में राजस्थान में हुई सांप्रदायिक घटनाओं पर बीजेपी ने पूरा फोकस किया हुआ है. मीणा वोट बैंक को साधने के लिहाज से पूर्वी राजस्थान भाजपा के लिए खासा अहम है , यही वजह है कि करौली के जरिए बीजेपी ने बीते दिनों किरोड़ीलाल मीणा को आगे करते हुए इस मसले को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने की कोशिश की. यूपी के कैराना की तर्ज पर राजस्थान के करौली से पलायन के मसले को हवा दी गई. ये जाहिर करने की कोशिश हुई कि अशोक गहलोत सरकार तुष्टिकरण कर रही है. राज्य में कानून व्यवस्था का हाल कमजोर है. ऐसा करके बीजेपी चाह रही थी कि इसी साल के आखिर तक गुजरात , हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में होने वाले चुनावों को साध ले और हिन्दुत्व के मसले पर मीणा वोट बैंक को शिफ्ट कर ले.