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30 सालों में कितना बदला पोलो का खेल, सुनिए- समीर सुहाग की जु़बानी... - समीर सुहाग

अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी समीर सुहाग का कहना है, कि पोलो के खेल में पिछले कुछ सालों में काफी बदलाव आया है. अब विदेशी नस्ल के घोड़े और नई तकनीकी इस खेल में अपनाई जाने लगी है. पढ़ें विस्तृत खबर...

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30 सालों में इतना बदल गया पोलो
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Published : Jan 24, 2020, 12:32 PM IST

जयपुर. समीर सुहाग पिछले 30 साल से पोलो खेल रहे हैं. अपने दमदार खेल से उन्होंने देश और दुनिया में अपनी एक अलग पहचान कायम की है. समीर इन दिनों जयपुर में हैं, और जयपुर पोलो सीजन में भाग ले रहे हैं.

30 सालों में इतना बदल गया पोलो

इस दौरान जब समीर से बातचीत हुई तो उन्होंने पोलो से जुड़े बदलाव और तकनीक के बारे में खुलकर काफी कुछ बताया. समीर सुहाग ने कहा, कि पहले यह गेम हिट एंड रन का होता था, लेकिन अब फुटबॉल की तरह इस गेम में भी तकनीक अपनाई जाने लगी है. समीर के मुताबिक, पोलो में फुटबॉल की तरह मैन टू मैन मार्किंग, पासिंग और डिफेंस पर ध्यान दिया जाता है.

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समीर कहते हैं, कि सबसे बड़ा बदलाव घोड़ों की नस्ल में देखने को मिला है. जहां पहले देसी नस्ल के घोड़े इस खेल में उपयोग में लाए जाते थे, वहीं अब धीरे-धीरे विदेशी नस्ल के घोड़े इसमें अपनी पकड़ बना रहे हैं. विदेशी नस्ल के घोड़े काफी तेज और चुस्त होते हैं, खासकर अर्जेंटीना, इंग्लैंड और न्यूजीलैंड के घोड़े इस खेल का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए हैं. हालांकि, कुछ देसी नस्ल के घोड़े अब भी उपयोग में लाए जा रहे हैं. कुछ मामलों में तो वे विदेशी घोड़ों पर भी भारी पड़ते हैं.

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जयपुर. समीर सुहाग पिछले 30 साल से पोलो खेल रहे हैं. अपने दमदार खेल से उन्होंने देश और दुनिया में अपनी एक अलग पहचान कायम की है. समीर इन दिनों जयपुर में हैं, और जयपुर पोलो सीजन में भाग ले रहे हैं.

30 सालों में इतना बदल गया पोलो

इस दौरान जब समीर से बातचीत हुई तो उन्होंने पोलो से जुड़े बदलाव और तकनीक के बारे में खुलकर काफी कुछ बताया. समीर सुहाग ने कहा, कि पहले यह गेम हिट एंड रन का होता था, लेकिन अब फुटबॉल की तरह इस गेम में भी तकनीक अपनाई जाने लगी है. समीर के मुताबिक, पोलो में फुटबॉल की तरह मैन टू मैन मार्किंग, पासिंग और डिफेंस पर ध्यान दिया जाता है.

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समीर कहते हैं, कि सबसे बड़ा बदलाव घोड़ों की नस्ल में देखने को मिला है. जहां पहले देसी नस्ल के घोड़े इस खेल में उपयोग में लाए जाते थे, वहीं अब धीरे-धीरे विदेशी नस्ल के घोड़े इसमें अपनी पकड़ बना रहे हैं. विदेशी नस्ल के घोड़े काफी तेज और चुस्त होते हैं, खासकर अर्जेंटीना, इंग्लैंड और न्यूजीलैंड के घोड़े इस खेल का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए हैं. हालांकि, कुछ देसी नस्ल के घोड़े अब भी उपयोग में लाए जा रहे हैं. कुछ मामलों में तो वे विदेशी घोड़ों पर भी भारी पड़ते हैं.

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Intro:जयपुर- करीब 30 साल से पोलो खेल रहे अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी समीर सुहाग का कहना है कि पोलो के खेल में पिछले कुछ सालों में काफी बदलाव आया है और अब विदेशी नस्ल के घोड़े और तकनीकी इस खेल में अपनाई जाने लगी है


Body:समीर सुहाग पिछले 30 साल से पोलो खेल रहे हैं और हाल ही में जयपुर में आयोजित हो रहे पोलो सीजन में भी भाग ले रहे हैं इस दौरान जब उनसे पूछा गया कि पिछले 30 साल में किस तरह के बदलाव उन्हें पोलो मैं देखने को मिले हैं तो उन्होंने कहा कि पहले यह गेम हिट एंड रन का होता था लेकिन अब फुटबॉल की तरह इस गेम में भी तकनीकी अपनाई जाने लगी है और अब मैन टू मैन मार्किंग ,पासिंग और डिफेंस इस खेल में देखने को मिल रहा है। लेकिन सबसे बड़ा बदलाव घोड़ों की नस्ल में देखने को मिला है जहां पहले देसी नस्ल के घोड़े इस खेल में उपयोग में लाए जाते थे वहीं अब धीरे-धीरे विदेशी नस्ल के घोड़े इसमें अपनी पकड़ बना रहे हैं क्योंकि विदेशी नस्ल के घोड़े काफी तेज चुस्त होते हैं और खासकर अर्जेंटीना इंग्लैंड और न्यूजीलैंड के घोड़े इस खेल में अपनाए जाने लगे हैं हालांकि कुछ देसी नस्ल के घोड़े अभी भी उपयोग में लाए जा रहे हैं और कुछ मामलों में वे विदेशी नस्ल पर भारी पड़ते हैं।
बाईट- समीर सुहाग अंतरराष्ट्रीय पोलो खिलाड़ी


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