जयपुर. देश में मौजूदा हालात के बीच 150 सौ करोड़ की आबादी में से महज पौने चार करोड़ के करीब लोग यानी 3 से साढ़े 3 फीसदी लोग ही RTI (RTI Reality In Rajasthan) यानी सूचना के अधिकार का इस्तेमाल कर रहे हैं. लिहाजा अगर लोकतांत्रिक देश में किसी भी सरकार को गुड गवर्नेंस की दिशा में काम करना है, तो सूचना के अधिकार कानून का प्रभावी रूप से इस्तेमाल और इस पर अमल की दिशा में और काम करना होगा. ऐसा राजस्थान के सूचना आयुक्त नारायण बारहठ भी मानते हैं.
उन्होंने बताया कि स्वीडन जैसे देश में हम से करीब दो सौ पचपन साल पहले सूचना का अधिकार लागू हो गया था, इसलिए उस देश में काम की रफ्तार तेज है और भ्रष्टाचार के मामले सिफर हैं. कहा जा सकता है कि स्वीडन में समाज की स्थिति और बेहतर है. बारहठ ने कहा कि इस दिशा में जागरूकता के लिए सूचना आयोग लगातार काम भी कर रहा है. जल्द उदयपुर में भी एक संभाग स्तरीय कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा, ताकी लोग ज्यादा से ज्यादा सूचना के अधिकार से लाभान्वित हो सकें.
पेंडिंग केस सबसे बड़ी चुनौती: सूचना आयुक्त नारायण बारेठ ( Information Commissioner Narayan Bareth) ने बताया कि राजस्थान में करीब 18 हजार पेंडिंग मामलों में से रिकॉर्ड पांच हजार केस का निपटारा हो चुका है, जबकि 13 हजार के करीब मामलों में अभी अपील पर काम होना बाकी है. उन्होंने बताया कि संसाधनों की कमी के बावजूद फिलहाल लोगों की अपील पर काम करने की कोशिश में प्रयोग हो रहे हैं. हालांकि, साफगोई के साथ उन्होंने यह भी माना कि किसी अपील के दायर होने से लेकर रिकॉर्ड में आकर नंबर अलॉट होने की प्रक्रिया काफी लंबी है. ऐसे में इस दिशा में सुधार की गुंजाइश है.
उन्होंने माना कि तीन से पांच साल की अवधि काफी लंबी होती है, लिहाजा इस दिशा में तरीके बदल कर भी काम किया जा रहा है. इसके लिए कैंप लगाने के साथ-साथ स्पीड पोस्ट से नोटिस भेजना शुरू किया गया है. बारहठ ने कहा कि जब सूचना आयोग की मुहिम ने राजस्थान की माटी से जोर पकड़ा है, तो सूचना आयोग की जिम्मेदारी और महत्वपूर्ण हो जाती है कि उनकी दहलीज पर हर किसी की समस्या का समाधान किया जाए. उन्होंने कहा कि सूचना के अधिकार कानून के अमल से ही समाज की स्थिति को बेहतर बनाया जा सकता है.
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ACT 4 के तहत काम करने की मंशा: सूचना के अधिकार कानून की धारा 4बी 1 के तहत सभी सरकारी महकमों को जनता से जुड़ी प्रमुख जानकारी को संबंधित महकमों को बोर्ड पर डिस्प्ले करनी होती है. ऐसे में शिक्षा, पंचायती राज, स्वायत्त शासन विभाग और पंचायती राज विभाग जैसे सीधे जनता से जुड़े विभागों पर इस एक्ट के तहत अहम जिम्मेदारी होती है. हाल ही में सूचना आयोग ने पंचायती राज महकमे को ताकीद भी किया और जरूरी सूचनाओं के डिस्प्ले करने का नोटिस दिया. उन्होंने यह भी कहा कि नगरीय विकास से जुड़ी संस्थाएं आज भी सूचनाएं देने में लेटलतीफी बरत रही है, जिसके कारण उन्हें जुर्माने लगाने पड़ते हैं. जब उनसे पूछा गया कि क्या वे मानते हैं कि ऐसे मामलों में बेहतर काम के लिए अनुशासनात्मक कार्यवाही होनी चाहिए. इस पर बारहठ ने कहा कि डिसीप्लिनरी एक्शन अंतिम विकल्प होता है.
देश के लिए राजनीतिक दल आएं RTI के दायरे में : नारायण बारहठ ने कहा कि देश के राजनीतिक दलों स्वयं प्रेरणा के साथ सूचना के अधिकार के कानून के दायरे में आकर काम करना चाहिए. बारहठ ने माना कि इस कदम के साथ समाज में पारदर्शिता का संदेश तो जाएगा ही, साथ ही जनप्रतिनिधियों में भी जवाबदेही बढ़ेगी. मौजूदा दौर में जनप्रतिनिधि प्रारंभिक स्तर पर सुनवाई नहीं करते हैं. ऐसे में आरटीआई कानून के दायरे में अगर राजनीतिक दल आएंगे, तो देश और तरक्की करेगा. उन्होंने कहा कि सूचना आयोग अपनी पहुंच लोगों तक बढ़ाने की कोशिश में जुटा हुआ है. धारा 18 के सवाल पर भी उन्होंने कहा कि हम इसका इस्तेमाल राज्य में नहीं कर रहे थे, क्योंकि यह सूचनाओं के सुपरविजन के लि होती है. इसके जरिए लोगों को इंफॉर्मेशन नहीं दी जा सकती है. यही वजह रही कि प्रदेश में धारा 19 अधिक प्रचलित है.