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धर्म और उससे जुड़े मूल्य कभी भी अप्रासंगिक नहीं हो सकते हैं: राज्यपाल मिश्र - Jaipur News

राज्यपाल कलराज मिश्र ने शनिवार को '21वीं सदी के विश्व में धार्मिक मूल्य' विषय पर ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित किया. उन्होंने कहा कि धर्म और उससे जुड़े मूल्य कभी भी अप्रासंगिक नहीं हो सकते हैं.

Governor Kalraj Mishra,  Jaipur News
राज्यपाल कलराज मिश्र
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Published : Mar 13, 2021, 10:53 PM IST

जयपुर. राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा है कि धर्म का संबंध केवल मंदिर और मस्जिद से नहीं है. उपासना व्यक्ति धर्म का एक अंग हो सकता है, लेकिन धर्म व्यापक शब्द है. जिन नियमों से, व्यवस्था से और जिस आदर्श आचार संहिता से सृष्टि निरंतर चलती है, वही धर्म है. उन्होंने विश्वभर के धर्मों की चर्चा करते हुए कहा कि कोई भी धर्म भाषा, मजहब, क्षेत्र के आधार पर भेद नहीं सिखाता. धर्म का अर्थ ही मानवता है.

पढ़ें- फोर्टी वुमेन्स की ओर से टॉक शो का आयोजन, शिक्षा पद्धति और नई शिक्षा नीति पर चर्चा

कलराज मिश्र शनिवार को राजभवन में ब्राह्मण महासंघ कनाडा की ओर से राजपूत एसोसिएशन ऑफ नॉर्थ अमेरिका के सहयोग से आयोजित '21वीं सदी के विश्व में धार्मिक मूल्य' विषय पर ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि धर्म और उससे जुड़े मूल्य कभी भी अप्रासंगिक नहीं हो सकते क्योंकि इनमें जीवन से जुड़ी नैतिकता का समावेश होता है.

मिश्र ने कहा कि मुनष्य की बेहतरी के लिए जो भी मानवीय कर्म किया जाए, वही धर्म है. धर्म सार्वभौम है, इसलिए वह कभी जड़ नहीं हो सकता. उन्होंने कहा कि 21वीं सदी में भी धार्मिक मूल्यों की जरूरत इसलिए है कि धर्म ही जीवन को उत्कृष्टता की राह पर ले जाने के लिए प्रेरित करता है.

कलराज मिश्र ने कहा कि भारतीय संस्कृति में तप और त्याग की भावना की प्रेरणा धार्मिक मूल्यों से ही रही है. उन्होंने 'रामचरितमानस' की चर्चा करते हुए कहा कि तुलसीदास ने इसमें राम के बहाने जीवन से जुड़े धार्मिक मूल्यों की ही व्याख्या की है. उन्होंने भारतीय संस्कृति को नैतिक मूल्यों से जुड़ा बताते हुए कहा कि यहां उपासना पद्धति और धर्म में भेद है. उपासना पद्धति धर्म का अंग हो सकता है, धर्म नहीं हो सकता. इसलिए धर्म को व्यापक अर्थों में देखे जाने की जरूरत है.

जयपुर. राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा है कि धर्म का संबंध केवल मंदिर और मस्जिद से नहीं है. उपासना व्यक्ति धर्म का एक अंग हो सकता है, लेकिन धर्म व्यापक शब्द है. जिन नियमों से, व्यवस्था से और जिस आदर्श आचार संहिता से सृष्टि निरंतर चलती है, वही धर्म है. उन्होंने विश्वभर के धर्मों की चर्चा करते हुए कहा कि कोई भी धर्म भाषा, मजहब, क्षेत्र के आधार पर भेद नहीं सिखाता. धर्म का अर्थ ही मानवता है.

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कलराज मिश्र शनिवार को राजभवन में ब्राह्मण महासंघ कनाडा की ओर से राजपूत एसोसिएशन ऑफ नॉर्थ अमेरिका के सहयोग से आयोजित '21वीं सदी के विश्व में धार्मिक मूल्य' विषय पर ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि धर्म और उससे जुड़े मूल्य कभी भी अप्रासंगिक नहीं हो सकते क्योंकि इनमें जीवन से जुड़ी नैतिकता का समावेश होता है.

मिश्र ने कहा कि मुनष्य की बेहतरी के लिए जो भी मानवीय कर्म किया जाए, वही धर्म है. धर्म सार्वभौम है, इसलिए वह कभी जड़ नहीं हो सकता. उन्होंने कहा कि 21वीं सदी में भी धार्मिक मूल्यों की जरूरत इसलिए है कि धर्म ही जीवन को उत्कृष्टता की राह पर ले जाने के लिए प्रेरित करता है.

कलराज मिश्र ने कहा कि भारतीय संस्कृति में तप और त्याग की भावना की प्रेरणा धार्मिक मूल्यों से ही रही है. उन्होंने 'रामचरितमानस' की चर्चा करते हुए कहा कि तुलसीदास ने इसमें राम के बहाने जीवन से जुड़े धार्मिक मूल्यों की ही व्याख्या की है. उन्होंने भारतीय संस्कृति को नैतिक मूल्यों से जुड़ा बताते हुए कहा कि यहां उपासना पद्धति और धर्म में भेद है. उपासना पद्धति धर्म का अंग हो सकता है, धर्म नहीं हो सकता. इसलिए धर्म को व्यापक अर्थों में देखे जाने की जरूरत है.

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