जयपुर. तेलंगाना के सीएम के बयान पर किसान महापंचायत ने कड़ी नाराजगी जताई है. महापंचायत ने कहा कि तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव उपदेश नहीं देकर स्वयं के राज्य में न्यूनतम समर्थन मूल्य गारंटी का कानून (Rampal Jat Targets on KCR) बनाएं.
क्या है नाराजगी : रविवार को पंजाब में किसान आन्दोलन में शहीदों के आश्रितों को वित्तीय सहायता देने के लिए आयोजित कार्यक्रम में दिल्ली, पंजाब और तेलंगाना के मुख्यमंत्री शामिल थे. इस दौरान तेलंगाना के सीएम के. चंद्रशेखर राव ने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी के कानून बनाने के लिए किसानों को फिर से आन्दोलन शुरू कर केंद्र सरकार को उखाड़ फेंकने का आह्वान करना (Telangana CM statement on MSP guarantee) चाहिए. इस पर किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट का कहना है कि सीएम चंद्रशेखर राव यह बताएं कि वह अपने राज्य तेलंगाना में समर्थन मूल्य की खरीद की गारंटी का कानून क्यों नहीं लाते. जाट ने कहा कि दिल्ली, पंजाब और तेलंगाना तीनों राज्यों के पास अधिकार है कि वह इस कानून को लागू कर सकते हैं.
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राष्ट्रपति का अनुमोदन है प्राप्त : रामपाल जाट ने कहा कि तेलंगाना (कृषि उपज एवं पशुपालन) मंडी अधिनियम 1966, पंजाब कृषि उपज मंडी 1961 और दिल्ली कृषि उपज मंडी (विनियमन) अधिनियम 1998, अधिनियमों में संशोधन लाकर उपजों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दामों में क्रय-विक्रय को रोका जा सकता है. खास बात यह है कि इन अधिनियमों को राष्ट्रपति का अनुमोदन प्राप्त है. उपजों की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य से आरम्भ की जा सकती है. इसके लिए वर्ष 2000 से केंद्र और राज्यों ने विचार-विमर्श के उपरांत आदर्श कृषि उपज और पशु पालन (उन्नयन एवं सुविधा) मंडी अधिनियम 2017 तैयार किया था, जो वर्ष 2018 में सभी राज्यों को प्राप्त हो गया. लगभग 4 वर्ष व्यतीत होने के बाद भी इन राज्यों ने इस दिशा में सार्थक पहल नहीं की. इन राज्यों की ओर से पहल की जाती, तो घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य की प्राप्ति सुनिश्चित हो जाती. इसके लिए 6 माह पूर्व से देश के किसानों और किसान महापंचायत की ओर से समस्त राज्यों के साथ इन तीन राज्यों को भी ज्ञापन भेजकर आग्रह किया जा रहा है.
संविधान में अधिकार : जाट ने कहा कि कृषि एवं किसान कल्याण से संबंधित कानून बनाने के लिए भारतीय संविधान ने राज्यों को ही अधिकार सौपा है. तीनों मुख्यमंत्रियों की ओर से अपने-अपने राज्यों में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गारंटी का कानून बना कर किसानों को उनके उपजों के दाम दिलाने की घोषणा की जाती, तो देश के किसानो में प्रसन्नता की लहर के साथ अच्छा संदेश जाता. लेकिन यहां तो 'पर उपदेश कुशल बहुतेरे' के अनुसार ही गुड़ नहीं देकर गुड़ जैसे वक्तव्य दिए गए.
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किसानों को ठगने का काम होता रहा है : जाट ने कहा कि किसानों को ठगने के लिए इस प्रकार के छलावे स्वतंत्रता के पूर्व से चालू हैं. ऐसी ठगी से सावधान करने के लिये लगभग 90 वर्ष पूर्व पंजाब के कृषि एवं राजस्व मंत्री रहे सर छोटू राम ने उद्घोष किया था 'भोले किसान मेरी दो बात मान लें, बोलना लें सीख और दुश्मन पहचान लें'. इसी प्रेरणा से देश के किसानों की ओर से तीनों मुख्यमंत्रियों से अपने-अपने राज्यों में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी का कानून बनाने का आग्रह है. अभी तो इनके व्यवहार से 'मंतर (मंत्र) मेरा- बाम्बू में हाथ तेरा' की लोकउक्ति लोकोक्ति चरितार्थ हो रही है.
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इसी का उदाहरण है कि पश्चिमी बंगाल कृषि उपज मंडी (विनियमन) अधिनियम 1972 मौजूद होते हुए भी वहां के किसानों को घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य 1940 रुपए प्रति क्विंटल प्राप्त नहीं हो रहे. इसलिए एक क्विंटल पर 1000 रुपए तक का घाटा उठा कर अपना धान बेचना पड़ रहा है. वहां की सरकार समुचित संशोधन कर किसानों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित कर सकती है, लेकिन सरकार का तीसरा कार्यकाल आरम्भ होने के उपरांत भी किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य से वंचित हैं.
जाट ने कहा कि राजनीतिक दल और उनके नेताओं को किसानों को वोट बैंक नहीं समझना चाहिए. राज बदलने के लिये उपयोग करने की नीति छोड़ कर अपने राज्यों में किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का कानून बना कर अन्य राज्यों और केंद्र की सरकार के समक्ष उदाहरण पेश करें. सरकारों को किसानों की और से संघर्ष करने का विश्वास दिलाने की दिशा में चलना चाहिए.