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पायलट के खिलाफ गहलोत की असंसदीय भाषा से गिरी मुख्यमंत्री पद की गरिमा : राठौड़ - सचिन पायलट

प्रदेश में सियासी घमासान के बीच उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने एक वक्तव्य जारी किया है. जिसमें उन्होंने मुख्यमंत्री पर गंभीर आरोप लगाए हैं. राठौड़ ने कहा है कि सीएम ने अपनी ही पार्टी के 7 साल तक प्रदेश अध्यक्ष रहे पायलट के विरुद्ध असंसदीय शब्दों का इस्तेमाल किया है.

rajasthan news, जयपुर न्यूज
गहलोत की भाषा को लेकर बोले उपनेता राजेंद्र राठौड़
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Published : Jul 21, 2020, 12:50 PM IST

जयपुर. प्रदेश में चल रहे सियासी घमासान के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है. उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने एक वक्तव्य जारी कर राज्य के मुख्यमंत्री पर चुने हुए विधायकों में दहशतगर्दी का वातावरण बनाने और पुलिस एजेंसियों का गलत इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है.

गहलोत की भाषा को लेकर बोले राजेंद्र राठौड़...

राठौड़ ने कहा कि बौखलाए हुए मुख्यमंत्री अपनी ही पार्टी के 7 साल तक प्रदेश अध्यक्ष रहे सचिन पायलट के विरुद्ध निकम्मा और नकारा जैसे असंसदीय शब्दों का इस्तेमाल और प्रतिपक्ष के नेताओं के लिए बेशर्म और तिकड़मबाज जैसे असंसदीय शब्दों का प्रयोग कर मुख्यमंत्री पद की गरिमा को गिराने का काम किया है. उन्होंने कहा कि चुने हुए जन प्रतिनिधियों जैसे विधायक, सांसद के विरुद्ध पुलिस में किसी भी प्रकरण के दर्ज होने पर गृह विभाग की ओर से जारी परिपत्र संख्या 7778-7827 दिनांक 23.04.2015 के अनुसार सीआईडी-सीबी की ओर से ही जांच किए जाने के स्पष्ट प्रावधान है. इसके बावजूद एसओजी और एसीबी से अनुसंधान कराए जाने के तथ्य से ये साबित है कि चुनिंदा पुलिस अधिकारियों के जरिए विधि विरुद्ध अनुसंधान कराकर निशाने पर लिए गए विधायकों का चरित्र हनन किया जाए और उन्हें हैरान परेशान कर जबरन गिरफ्तार किया जाए.

बीटीपी के विधायकों के साथ पुलिस की ओर से किया गया दुर्व्यवहार जो सार्वजनिक हुआ है इसका ताजा नमूना है. राठौड़ ने ये भी कहा कि राजनैतिक आदेशों के बावजूद पुलिस अधिकारियों का ये कर्तव्य है कि वे विधि विरुद्ध आदेशों की पालना नहीं करें. राठौड़ की ओर से जारी बयान में कहा गया कि ये अपेक्षित था कि एफआईआर के पठन मात्र से धारा 124-ए आईपीसी जैसे जघन्य अपराध का एक भी अवयव प्रकट नहीं होने के बावजूद जिस प्रकार से अलग-अलग तीन प्रकरण दर्ज किए गए हैं, वे विधि के निर्देशों के उल्लंघन में हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी The State of Maharashtra, AIR 2018 SC 4067 में ये निर्देशित किया है कि उच्च अधिकारियों के आदेशों की वैधानिकता भी जांचकर्ता अधिकारी को विधि अनुसार परीक्षित (Examine) करनी आवश्यक है.

राठौड़ ने आगे कहा कि ये हैरत अंगेज स्थिति है कि कथित ऑडियो टेप्स की शुद्धता सुनिश्चित किए बगैर और उसके सोर्स को हासिल किए बिना ही अनुसंधान आगे बढ़ाना दुर्भाग्यपूर्ण और विधि विरुद्ध है. क्योंकि माननीय उच्चतम न्यायालय ने Sanjay singh Ramrao Chavan v. Dattatray Gulabrao Phalke, (2015) 3 SCC 123, at page 135 प्रकरण में यह निर्धारित किया है कि आवाज टेप करने वाले वॉइस रिकार्डर का परीक्षण तभी किया जाएगा जब टेलीफोन टेप करने वाले सोर्स का चिन्हीकरण होगा. जिसकी अनुपस्थिति में ऐसे टेप्स के ऊपर भरोसा किया जाना विधि विरुद्ध है.

पढ़ें- CBI पर भरोसा नहीं, इसलिए SOG से करवा रहे जांचः खाचरियावास

राठौड़ ने मांग की कि पहले सरकार स्पष्ट करे कि किस अधिकारी के आदेश से टेलीफोन टेप करने के आदेश कब और क्यों दिए गए. फर्जी तौर पर तैयार किए गए ऑडियो रिकॉर्ड के आधार पर जन प्रतिनिधियों में दहशतगर्दी का वातावरण बनाना लोकतंत्र का अपमान है.

राठौड़ ने कहा कि पुलिस अधिकारियों की ओर से अनुसंधान के दौरान मीडिया ब्रीफिंग किए जाने को ही सुप्रीम कोर्ट ने प्रकरण Romila Thapar v. Union of India, (2018) 10 SCC 753, at page 793 में वर्जित घोषित किया है. इसके बावजूद मात्र विधायकों और चुने हुए जन प्रतिनिधियों की छवि धूमिल करने और जनता में भ्रम पैदा करने के लिए पुलिस अधिकारियों से प्रेस ब्रिफिंग करवाने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है, जो निंदनीय है.

जयपुर. प्रदेश में चल रहे सियासी घमासान के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है. उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने एक वक्तव्य जारी कर राज्य के मुख्यमंत्री पर चुने हुए विधायकों में दहशतगर्दी का वातावरण बनाने और पुलिस एजेंसियों का गलत इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है.

गहलोत की भाषा को लेकर बोले राजेंद्र राठौड़...

राठौड़ ने कहा कि बौखलाए हुए मुख्यमंत्री अपनी ही पार्टी के 7 साल तक प्रदेश अध्यक्ष रहे सचिन पायलट के विरुद्ध निकम्मा और नकारा जैसे असंसदीय शब्दों का इस्तेमाल और प्रतिपक्ष के नेताओं के लिए बेशर्म और तिकड़मबाज जैसे असंसदीय शब्दों का प्रयोग कर मुख्यमंत्री पद की गरिमा को गिराने का काम किया है. उन्होंने कहा कि चुने हुए जन प्रतिनिधियों जैसे विधायक, सांसद के विरुद्ध पुलिस में किसी भी प्रकरण के दर्ज होने पर गृह विभाग की ओर से जारी परिपत्र संख्या 7778-7827 दिनांक 23.04.2015 के अनुसार सीआईडी-सीबी की ओर से ही जांच किए जाने के स्पष्ट प्रावधान है. इसके बावजूद एसओजी और एसीबी से अनुसंधान कराए जाने के तथ्य से ये साबित है कि चुनिंदा पुलिस अधिकारियों के जरिए विधि विरुद्ध अनुसंधान कराकर निशाने पर लिए गए विधायकों का चरित्र हनन किया जाए और उन्हें हैरान परेशान कर जबरन गिरफ्तार किया जाए.

बीटीपी के विधायकों के साथ पुलिस की ओर से किया गया दुर्व्यवहार जो सार्वजनिक हुआ है इसका ताजा नमूना है. राठौड़ ने ये भी कहा कि राजनैतिक आदेशों के बावजूद पुलिस अधिकारियों का ये कर्तव्य है कि वे विधि विरुद्ध आदेशों की पालना नहीं करें. राठौड़ की ओर से जारी बयान में कहा गया कि ये अपेक्षित था कि एफआईआर के पठन मात्र से धारा 124-ए आईपीसी जैसे जघन्य अपराध का एक भी अवयव प्रकट नहीं होने के बावजूद जिस प्रकार से अलग-अलग तीन प्रकरण दर्ज किए गए हैं, वे विधि के निर्देशों के उल्लंघन में हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी The State of Maharashtra, AIR 2018 SC 4067 में ये निर्देशित किया है कि उच्च अधिकारियों के आदेशों की वैधानिकता भी जांचकर्ता अधिकारी को विधि अनुसार परीक्षित (Examine) करनी आवश्यक है.

राठौड़ ने आगे कहा कि ये हैरत अंगेज स्थिति है कि कथित ऑडियो टेप्स की शुद्धता सुनिश्चित किए बगैर और उसके सोर्स को हासिल किए बिना ही अनुसंधान आगे बढ़ाना दुर्भाग्यपूर्ण और विधि विरुद्ध है. क्योंकि माननीय उच्चतम न्यायालय ने Sanjay singh Ramrao Chavan v. Dattatray Gulabrao Phalke, (2015) 3 SCC 123, at page 135 प्रकरण में यह निर्धारित किया है कि आवाज टेप करने वाले वॉइस रिकार्डर का परीक्षण तभी किया जाएगा जब टेलीफोन टेप करने वाले सोर्स का चिन्हीकरण होगा. जिसकी अनुपस्थिति में ऐसे टेप्स के ऊपर भरोसा किया जाना विधि विरुद्ध है.

पढ़ें- CBI पर भरोसा नहीं, इसलिए SOG से करवा रहे जांचः खाचरियावास

राठौड़ ने मांग की कि पहले सरकार स्पष्ट करे कि किस अधिकारी के आदेश से टेलीफोन टेप करने के आदेश कब और क्यों दिए गए. फर्जी तौर पर तैयार किए गए ऑडियो रिकॉर्ड के आधार पर जन प्रतिनिधियों में दहशतगर्दी का वातावरण बनाना लोकतंत्र का अपमान है.

राठौड़ ने कहा कि पुलिस अधिकारियों की ओर से अनुसंधान के दौरान मीडिया ब्रीफिंग किए जाने को ही सुप्रीम कोर्ट ने प्रकरण Romila Thapar v. Union of India, (2018) 10 SCC 753, at page 793 में वर्जित घोषित किया है. इसके बावजूद मात्र विधायकों और चुने हुए जन प्रतिनिधियों की छवि धूमिल करने और जनता में भ्रम पैदा करने के लिए पुलिस अधिकारियों से प्रेस ब्रिफिंग करवाने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है, जो निंदनीय है.

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