जयपुर. सरकारें भले ही बाल अधिकारों के अभियान चलाएं बावजूद इसके बच्चों का भविष्य अंधकार में है. शिक्षा के नाम पर मानों बचपन छिनने की कोशिश हो रही है. कुछ इसी तरह का मामला सामने आया राजधानी जयपुर से कुछ किलोमीटर की दूर चौमू तहसील के टाटियावास में. जहां बाहरी राज्यों के बच्चों को शिक्षा के नाम इस काल कोठरी में रखा जा रहा था. संस्था तो बिना पंजीयन के चल ही रही है साथ ही यहां बच्चों को बद से बदतर हालातों में रखा जा रहा था.
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राजस्थान राज्य बाल संरक्षण आयोग अध्यक्ष संगीत बेनीवाल, बाल कल्याण समिति और पुलिस की संयुक्त टीम ने सोमवार को चौमू के टाटियावास में भारतीय जन सेवा प्रतिष्ठान की ओर से संचालित बाल गृह छात्रावास का निरीक्षण किया. निरीक्षण के दौरान यह छात्रावास का पंजीयन नियमानुसार नहीं मिला. बच्चों ने बताया कि उन्हें छोटी-छोटी गलतियों पर पीटा जाता है. निरीक्षण के दौरान टीम को यहां अधिकांश बालक असम, मेघालय, यूपी के मिले.
जांच में पता चला कि संस्था का पंजीयन किशोर न्याय अधिनियम के तहत नहीं है. बालक अन्य राज्यों के हैं जो कि अपने घर जाना चाहते हैं. छात्रावास में इन बालकों के प्रवेश, दस्तावेज इत्यादि भी अस्पष्ट मिले. टीम की टीम को इस बाल गृह में भामाशाहों के सहयोग से उपलब्ध करवाई जाने वाली खाद्य सामग्री, कपड़े एवं अन्य सुविधाएं भी अपर्याप्त मिली. बालकों का कोई संतोषजनक रिकॉर्ड नहीं मिलने से बाल शोषण की बात भी अप्रत्यक्ष रूप से सामने आई है.
छात्रावास में 29 बालकों में से निरीक्षण के दौरान सिर्फ आठ ही मिले. टीम को बताया गया कि बच्चे स्कूल में पढ़ने गए हैं. जबकि निरीक्षण के दौरान कुछ बच्चे सिलेंडर लाते हुए दिखे. निरीक्षण में मैस के भोजन की गुणवत्ता भी अच्छी नहीं मिली. अब आयोग की ओर से इन बालकों का पुर्नवास करते हुए इनको घर भेजने की तैयारी की जा रही है.
निरीक्षण में मिली ये कमियां
- संस्था का पंजीयन किशोर न्याय अधिनियम के तहत नहीं है जो अधिनियम का स्पष्ट उल्लंघन है
- आवासीय समस्त बालक अन्य राज्य के हैं, इन छात्रों के प्रवेश की प्रक्रिया दस्तावेज उद्देश्य इत्यादि स्पष्ट हैं
- आवास के समस्त छात्रों का कहना है कि उन्हें घर जाना है, जिसका मतलब है कि उन्हें अच्छे से नहीं रखा जा रहा, साथ ही संस्था का उद्देश्य स्पष्ट नहीं है
- आवासीय बालकों को केवल भामाशाह के सहयोग से खाद्य सामग्री कपड़े व अन्य सुविधा उपलब्ध कराई जा रही जो बहुत अपर्याप्त है
- संस्था द्वारा बालकों के प्रवेश आवास इत्यादि के संबंध में कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जा रहा है, यह तथ्य बाल शोषण का अप्रत्यक्ष संकेत है
- संस्था के रसोईया, सफाईकर्मी, लिपिक, वार्डन से अध्यापक इत्यादि के बारे में पूछने पर बताया गया कि केवल एक वार्डन ही है जो सारे काम करता है
- संस्था में आवासीय विद्यालय के लिए आधारभूत सुविधाएं की नितांत कमी है