जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) प्रशासन की ओर से डेजिग्नेट सीनियर अधिवक्ताओं की सूची जारी करने के बाद कुछ अनुभवी वकीलों का असंतोष सामने आया है. सूची में 50 साल से वकालत कर रहे अधिवक्ताओं के बजाए नए वकीलों को सीनियर अधिवक्ता घोषित करने के विरोध (Rajasthan High Court senior advocates list protest) में मंगलवार को वकीलों ने हाइकोर्ट स्थित गांधी प्रतिमा के सामने धरना दिया.
50 से ज्यादा सालों से वकालत कर रहे वकीलों ने किया विरोध
धरना दे रहे वकीलों का कहना है कि हाईकोर्ट प्रशासन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ताओं की वकालत अवधि और उनकी ओर से दी गई सार्वजनिक सेवाओं को दरकिनार कर उन्हें सीनियर अधिवक्ता डेजिग्नेट नहीं किया गया है. जिसके चलते सभी वरिष्ठ अधिवक्ता अपमानित महसूस कर रहे हैं. करीब दो साल से हाईकोर्ट में सीनियर अधिवक्ताओं को डेजिग्नेट करने की प्रक्रिया चल रही थी. इस दौरान समय-समय पर हाईकोर्ट प्रशासन की ओर से मांगी गई सूचनाओं की पालना पूरे दस्तावेजों के साथ की जाती रही है.
गत वर्ष 12 दिसंबर को हाईकोर्ट प्रशासन ने सभी आवेदनकर्ताओं को साक्षात्कार के लिए व्यक्तिगत रूप से बुलाया गया था. इसके बाद गत 21 जनवरी को हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ ने जयपुर बेंच से केवल 15 वकीलों को ही सीनियर डेजिग्नेट किया है. जबकि 50 साल से ज्यादा साल से वकालत कर रहे वकीलों को इस सूची से दूर रखा गया है.
हाईकोर्ट प्रशासन की ओर से सोमवार को जारी की गई अधिसूचना के तहत हाईकोर्ट की जोधपुर स्थित मुख्य पीठ में 11 और जयपुर पीठ में 15 वकीलों को सीनियर अधिवक्ता डेजिग्नेट किया गया है. इस सूची में सबसे वरिष्ठ वकील अरविन्द कुमार गुप्ता हैं, जो वर्ष 1972 से वकालत कर रहे हैं. वहीं सबसे युवा संजय झंवर हैं, जो वर्ष 2002 से प्रैक्टिस में हैं.
यह होती है प्रक्रिया
हाईकोर्ट प्रशासन ने वर्ष 2019 में इस संबंध में गाइड बनाई गई है. जिसके तहत सीजे की अध्यक्षता में स्थाई कमेटी का गठन किया गया है, जिसमें दो वरिष्ठतम न्यायाधीश, महाधिवक्ता और दो डेजिग्नेटेड अधिवक्ताओं को शामिल किया गया है. यह कमेटी वकीलों की ओर से पेश आवेदनों पर विचार कर उनके नामों की सिफारिश करती है. हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ तय प्रक्रिया के बाद डेजिग्नेटेड अधिवक्ता घोषित करती है.
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ऐसे अधिवक्ताओं की यूनिफॉर्म भी सामान्य वकीलों से कुछ अलग होती है. वहीं देशभर की किसी भी कोर्ट में डेजिग्नेटेड सीनियर अधिवक्ता बिना वकालतनामे के अपना पक्ष रखते हैं. वहीं अदालत में उनके साथ हमेशा जूनियर वकील भी पेश होता है. डेजिग्नेटेड सीनियर अधिवक्ता हमेशा जूनियर वकील के जरिए ही केस लेते हैं और उनकी फीस भी हर पेशी के हिसाब से तय होती है. इसके अलावा सुनवाई के दौरान वे मामले में तारीख भी नहीं मांग सकते हैं.