जयपुर. राजस्थान विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त शिक्षकों की पदोन्नति के मामले को लेकर अब राजस्थान सरकार और शिक्षकों के बीच ठन गई है. ऑल राजस्थान विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (एरूटा) ने आज उच्च शिक्षा सचिव पर विश्वविद्यालय की स्वायत्तता पर हमले का आरोप लगते हुए मुख्यमंत्री से उन्हें हटाने की मांग की है.
दरअसल, यह पूरा मामला हाल ही हुई शिक्षकों की पदोन्नति प्रक्रिया से जुड़ा है. विश्वविद्यालय में पदोन्नति प्रक्रिया 2012 से पेंडिंग चल रही थी. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा सख्ती करने के बाद विश्वविद्यालय ने हाल ही में पदोन्नति प्रक्रिया पूरी की है. जिसमें सेवानिवृत्त शिक्षकों को भी पदोन्नति का लाभ दिया गया है.
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इसके बाद सरकार ने एक कमेटी का गठन किया है, जो यह जांच करेगी कि सेवानिवृत्त शिक्षकों को पदोन्नति का लाभ नियमानुसार दिया गया है या नहीं. लेकिन इस कमेटी की रिपोर्ट आने से पहले ही उच्च शिक्षा विभाग के सचिव ने एक पत्र लिखकर इस प्रक्रिया पर रोक लगाने की सिफारिश की है. इसी बात का शिक्षक विरोध कर रहे हैं.
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एरूटा (All Rajasthan University Teachers Association) के उपाध्यक्ष डॉ. राजीव शर्मा का कहना है कि विश्वविद्यालय स्वायत्त संस्था है. इसमें सरकार कोई भी निर्देश नहीं दे सकती है. शिक्षा सचिव का यह पत्र विश्वविद्यालय की स्वायत्तता पर बड़ा हमला है. हम सभी शिक्षक इसका प्रतिरोध करते हैं और मुख्यमंत्री से मांग करते हैं कि ऐसे शिक्षा सचिव जो विश्वविद्यालय की स्वायत्तता पर हमला कर रहे हैं. उन्हें तुरंत इस पद से हटाया जाए.
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उन्होंने साफ किया कि विश्वविद्यालय के नियमानुसार शिक्षकों को पदोन्नति का लाभ एलिजिबिलिटी की तारीख से दिया जाता है न कि साक्षात्कार की तारीख से. यानी जिस समय शिक्षक पात्रता रखता है. तभी से पदोन्नति का लाभ दिया जाता है. इस नियम के हिसाब से अभी जिन शिक्षकों को पदोन्नति का लाभ मिला है, वह सही है. क्योंकि वे 2012 में पदोन्नति की पात्रता हासिल कर चुके थे और उस समय नौकरी में थे. यदि विश्वविद्यालय में 9 साल तक साक्षात्कार नहीं होते हैं तो उसमें शिक्षक का कोई दोष नहीं है. इन 9 साल में जो शिक्षक सेवानिवृत्त हुए हैं, उन्हें इस आधार पर पदोन्नति से वंचित नहीं रखा जा सकता है कि वे सेवानिवृत्त हो चुके हैं. उनका कहना है कि यही प्रक्रिया अन्य विश्वविद्यालयों में पदोन्नति के दौरान भी अपनाई गई है.