जयपुर. प्रदेश में बिजली का संकट जारी है. प्रदेश सरकार कोयले की कमी का हवाला देकर जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर डालती है तो वहीं मानसून की बेरुखी के चलते यह संकट और गहराने की बात भी कही जा रही है. हालांकि, केवल कोयले की कमी के कारण ही बिजली का संकट खड़ा नहीं हुआ बल्कि डिस्कॉम की खराब माली हालत भी इसका एक बड़ा कारण है.
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भुगतान के चलते बिगड़ी थी स्थिति जो अबतक नहीं सुधरी
दरअसल, कोयले की खरीद पहले भी जारी थी और अब भी जारी है, लेकिन पिछले दिनों समय पर भुगतान नहीं होने के चलते राजस्थान में कोयला नहीं आ पाया. जिससे बिजली उत्पादन गड़बड़ा भी गया. डिस्कॉम को ही राजस्थान उत्पादन निगम को बिजली खरीद का भुगतान करना है और यह भुगतान भी करोड़ों में है. वहीं, उत्पादन निगम को अपनी थर्मल इकाइयों में कोयले की खरीद को लेकर आगे भुगतान करना होता है, लेकिन पिछले दिनों भुगतान में देरी के ही चलते कोयले की आपूर्ति गड़बड़ा गई थी जो अब तक नहीं सुधर पाई.
सरकार के वादे डिस्कॉम पर आर्थिक बोझ
प्रदेश सरकार और ऊर्जा मंत्री डॉ. बीडी कल्ला डिस्कॉम की खराब माली हालत के पीछे पिछली भाजपा सरकार के प्रबंधन को जिम्मेदार ठहराते हैं. लेकिन वर्तमान में डिस्कॉम को सरकारी भवनों के बिजली के बिल के भुगतान और सरकार की घोषणा के अनुरूप बीपीएल कृषि व अन्य श्रेणी के उपभोक्ताओं को दी जाने वाली सब्सिडी का भुगतान सरकार की ओर से डिस्कॉम को नहीं हुआ है.
बताया जा रहा है कि करीब 2 हजार करोड़ सरकारी कार्यालयों और भवनों में बिजली का बिल बकाया है. सरकार को 18 हजार करोड़ रुपए का भुगतान डिस्कॉम को करना है. डिस्कॉम को अपने खर्चे चलाने के लिए लगातार लोन लेना पड़ रहा है और उसका ब्याज भी डिस्कॉम की आर्थिक स्थिति को और खराब कर रहा है. मतलब साफ है कि सरकार यदि अपनी जिम्मेदारी के अनुरूप समय पर भुगतान कर दें तो डिस्कॉम की माली हालत में थोड़ा बहुत सुधार हो सकता है. वहीं, डिस्कॉम के स्तर पर उत्पादन निगम को भी समय पर भुगतान मिलता रहे तो कोयले के भुगतान की समस्या नहीं आएगी. वर्तमान में जयपुर, अजमेर और जोधपुर डिस्कॉम पर 87 हजार करोड़ की देनदारी बाकी है.
3400 मेगावाट उत्पादन हुआ कम
प्रदेश में अगस्त में बिजली की खपत 20 करोड़ यूनिट प्रतिदिन रहती है. हालांकि इस बार 31 करोड़ यूनिट यह खपत पहुंच चुकी है. एकाएक बिजली की खपत बढ़ने के पीछे बड़ी वजह बरसात नहीं होना भी है. वहीं, कोयला नहीं होने से प्रदेश में 3400 मेगावाट के पावर प्लांट भी ठप पड़े हैं, जिनमें सूरतगढ़ की 250 मेगा वाट की 6 यूनिट, कालीसिंध की 600 मेगावाट की दो यूनिट और कवाई स्थित अदानी थर्मल प्लांट की 600 मेगावाट की यूनिट बंद है. वहीं, कोटा थर्मल प्लांट की कुछ यूनिट अपनी पूरी क्षमता से उत्पादन नहीं कर पा रही है. यही कारण है कि प्रदेश में बिजली का संकट लगातार गहराता जा रहा है.
मंत्री का दावा हर बार हुआ फेल
ऊर्जा मंत्री बीडी कल्ला पिछले एक पखवाड़े से लगातार बिजली का संकट जल्द दूर होने की बात करते आ रहे हैं. पहले 2 से 3 दिन में इस संकट से निजात मिलने की बात कहते रहे और फिर 1 सप्ताह में समस्या दूर होने का दावा करते रहे, लेकिन यह समय भी बीत गया और अब एक बार फिर ऊर्जा मंत्री अगले 1 सप्ताह तक इस समस्या के समाधान का वादा कर रहे हैं. हालांकि यदि इस दौरान बरसात नहीं हुई तो यह संकट और गहराने की बात भी वे कहते हैं.