जयपुर. महिला प्रताड़ना के मामलों में विपक्ष के निशाने पर रही प्रदेश की गहलोत सरकार अब निशक्तजन के साथ घट रही घटनाओं को लेकर भी सामाजिक संगठनों के निशाने पर आ गई है. अलवर, भीलवाड़ा और जयपुर में जिस तरह से मूक बधिर बच्चे और बच्चियों के साथ घटनाएं घटी उसके बाद अब सवाल उठ रहे हैं कि आखिर सरकार आयोग की नियुक्ति में देरी क्यों कर रही है. हालांकि ऐसा भी नहीं हैं कि विशेष योग्यजन आयोग में ही अध्यक्ष की नियुक्ति का इंतजार है, बल्कि महिला आयोग भी तीन साल से अध्यक्ष (Rajasthan Women Commission) की राह देख रहा है.
प्रदेश में जनवरी 2022 के महज 28 दिन के आंकड़े बताते हैं कि तीन से ज्यादा निशक्तजन के साथ क्रूरता के मामले सामने आए हैं. इसी तरह से महिलाओं के प्रति हो रही हिंसा के आंकड़ों को देखें तो सामने आता है कि 2022 के इन्ही दिनों में शायद ही कोई जिला ऐसा हो जिसमें महिलाओं के साथ दुष्कर्म जैसी घटना न हुई हो. पीड़ित महिलाएं भी महिला आयोग नहीं होने से परेशान रही. बधिर बच्चों पर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता मनोज भारद्वाज कहते हैं कि विशेष योग्यजन आयोग का पद संवैधानिक पद माना जाता है, जो काफी समय से खाली है.
हालांकि वर्तमान में आईएएस को इसका चार्ज दिया हुआ है. लेकिन इसमें संवैधानिक नियुक्ति होती तो शायद जिस तरह से अलवर में निशक्त बच्ची के साथ जो कुछ हुआ उसमें इतने सवाल नहीं उठते और न ही सीबीआई जांच की मांग होती. आयुक्त के पद पर कोई भी जनप्रतिनिधि होता तो शायद उस मामले में संज्ञान लेता और किसी भी तरह की प्रशासनिक स्तर पर लीपापोती नहीं होती.
मनोज कहते हैं कि अलवर में ही क्यों भीलवाड़ा में बधिर बच्ची के साथ दुष्कर्म हुआ और तीन महीने बाद जब वो गर्भवती हुई तब दुष्कर्म का पता लगता है. इसी तरह से राजधानी जयपुर में विमंदित बच्चे को नग्न करके घुमाया जाता है, उसे सिर्फ इसलिए प्रताड़ित किया जाता है कि उसकी बात समझने वाला कोई नहीं हैं. जब इस तरह की घटनाएं सामने आती है और निशक्तजन की कोई सुनवाई नहीं होती, तब आयोग की भूमिका की कमी अखरती है. ऐसे में सरकार को चाहिए की संवेदनशील पदों पर बिना राजनीतिक लाभ के तत्काल नियुक्ति हो.
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आयोग होता तो जिम्मेदारों से सवाल पूछता उनसे रिपोर्ट मांगता, न्याय के लिए किसी ओर दरवाजे की तरफ नही देखना पड़ता. हालांकि ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ विशेष योग्यजन आयोग का ही पद खाली हो, महिला आयोग में भी गहलोत सरकार बनने के बाद अभी तक नियुक्ति नहीं हुई, फोर्टी महिला विंग की वाइस प्रेसिडेंट और सामाजिक कार्यकर्ता ललिता कुच्छल कहती है कि यह बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बने तीन साल से ज्यादा का वक्त हो गया, लेकिन गहलोत सरकार ने महिला आयोग के पद पर नियुक्ति नहीं की.
हर सरकार ने गठन में लिया समय : प्रदेश में विशेष योग्यजन आयोग हो या राज्य महिला आयोग (Women Commission and Special Personnel Commission) इनका गठन कांग्रेस शासन में ही हुआ और वो भी अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री कार्यकाल में ही हुआ है. विशेष योग्यजन आयोग के आयुक्त पद पर सबसे पहले गैर सरकारी व्यक्ति को जिम्मेदारी मार्च 2000 में दी गई, जब प्रदेश के पहले विशेष योग्यजन आयोग का आयुक्त दामोदर थानवी को बनाया गया. इसी तरह से महिला आयोग का गठन भी 15 मई 1999 में हुआ. तब पहली आयोग की अध्यक्ष कांता कथूरिया को बनाया गया था.
इसके इतिहास को देखें तो यह साफ दिखाई देता है कि सरकार बदलने के साथ ही हर बार नई सरकार ने नए सिरे से आयोग के गठन में 5 से 6 महीने का वक्त लिया है. जानकार मानते हैं कि राजनीतिक लोगों को साधने के लिए राजनीतिक नियुक्तियों में देरी होती है. लेकिन जनता की समस्याओं से जुड़े हुए विभागों में सरकार को तुरंत नियुक्ति करने की जरूरत है.