जयपुर. राजस्थान की राजनीति में सबसे वरिष्ठतम विधायकों में से एक और ब्राह्मण समाज के सबसे बड़े नेता के रूप में पहचान रखने वाले 'राजस्थान की राजनीति को दादो' भंवर लाल शर्मा का रविवार को 77 साल की उम्र में निधन हो गया. वे सरदार शहर की जनता की हमेशा पहली पसंद रहे. भंवर लाल शर्मा सरदार शहर से सात बार विधायक बने.
भंवर लाल शर्मा राजस्थान में तीन बार सरकार गिराने या बचाने की कोशिश में शामिल रहने वाले एकमात्र नेता थे. चाहे राजनीति के शुरुआती दौर में भैरों सिंह शेखावत की सरकार 1990 में बचाने या 1996 में गिराने का प्रयास हो या फिर 2020 में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के विरोध में सचिन पायलट की बगावत में (Sachin Pilot Supporter Bhanwar Lal) सहयोग करने वाले 19 नेताओं में शामिल होने की बात हो, भंवर लाल शर्मा को राजस्थान की राजनीति के चाणक्य से कम नहीं माना जाएगा. 1985 से लेकर 2018 तक भंवर लाल शर्मा निरंतर विधायक बने और जब देश में 2013 में मोदी लहर चल रही थी उस समय भी भंवर लाल शर्मा उन 21 विधायकों में शामिल थे, जिन्होंने मोदी लहर के बावजूद जीत दर्ज की.
1990 में भैरो सिंह सरकार बचाई : मार्च 1990 में भैरों सिंह शेखावत के नेतृत्व में भाजपा और जनता दल की संयुक्त मोर्चा सरकार बनी. जिसमें जनता दल के विधायक के तौर पर भंवरलाल शर्मा भी शामिल हुए. जिन्हें विधानसभा का उप मुख्य सचेतक भी बनाया गया. वहीं, वह 1990 से 92 तक वह इंदिरा गांधी नहर परियोजना महकमे के कैबिनेट मंत्री भी बने. साल 1990 में जब आडवाणी अपनी रथ यात्रा निकाल रहे थे तो उसके विरोध में जनता दल के सात मंत्रियों ने अपने इस्तीफा दिया और धर्म सिंह सरकार अल्प मत में आ गई. लेकिन नवंबर 1990 में दिग्विजय सिंह की अगुवाई में जनता दल के 22 विधायकों ने अलग होकर जनता दल दिग्विजय का गठन किया और भाजपा को समर्थन दे दिया, जिससे भैरों सिंह शेखावत की सरकार बच गई. इस पूरे मामले में भंवर लाल शर्मा की अहम भूमिका रही.
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1996 में भैरों सिंह शेखावत की सरकार गिराने के आरोप लगे : जहां 1990 के कालखंड में भंवर लाल शर्मा ने भैरों सिंह शेखावत की कुर्सी बचाने के लिए प्रयत्न किए, तो वहीं 1996 में उन पर उन्हीं भैरों सिंह शेखावत की सरकार गिराने के भी आरोप लगे. जब 1993 में भैरो सिंह के नेतृत्व में राजस्थान में भाजपा की सरकार बनी तो इसमें जनता दल के छह और अन्य निर्दलीय विधायकों ने भी समर्थन दिया. चुनाव से पहले भंवर लाल शर्मा भाजपा में शामिल हुए, लेकिन बाद भंवर लाल शर्मा पर भाजपा और अन्य विधायकों के साथ मिलकर भैरो सिंह सरकार को अस्थिर करने के आरोपों के चलते उन्हें पार्टी से बाहर किया गया. हालांकि, 1996 में उपचुनाव में भी जीते.
2018 में सातवीं बार विधायक बने भंवरलाल शर्मा : 2018 में भंवरलाल शर्मा सातवीं बार विधायक बनकर (Chanakya of Rajasthan Politics) पार्टी में शामिल हुए. लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उन्हें वरिष्ठता के बावजूद भी मंत्री पद नहीं दिया. पहले से गहलोत से नाराज चल रहे पंडित भंवर लाल शर्मा ने सचिन पायलट का हाथ थाम लिया और सचिन पायलट ने जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ 2020 में बगावत की तो उस बगावत में वह पायलट के उन 18 सहयोगी विधायकों में शामिल रहे, जो गहलोत सरकार से नाराज होकर मानेसर चले गए थे.
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2020 की सियासी उठापठक के अहम हिस्सा रहे भंवरलाल : 2020 में राजस्थान की राजनीतिक उठापटक के समय पायलट का साथ देने वाले 18 कांग्रेसी विधायकों में पंडित भंवर लाल शर्मा भी शामिल थे. 2020 के जुलाई महीने में इन सभी विधायकों को मानेसर में ले जाने के चलते 14 जुलाई को तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री रहे सचिन पायलट के साथ ही मंत्री विश्वेंद्र सिंह और रमेश मीणा को बर्खास्त किया गया. इसके बाद एक कथित ऑडियो टेप वायरल हुआ. जिसमें एक आवाज कथित रूप से पंडित भंवर लाल शर्मा की मानी जा रही थी.
यही कारण था कि सरकार को गिराने और कथित रूप से खरीद फरोख्त में शामिल होने के आरोपों चलते उन्हें पार्टी से 6 साल के लिए निलंबित किया गया. हालांकि, यह निलंबन बाद में वापस ले लिया गया, वहीं जब इस विवाद का अंत होने लगा तो 10 अगस्त को भंवर लाल शर्मा बिना किसी को बताए जयपुर पहुंच गए और उन्होंने सीधे मुख्यमंत्री से मुलाकात की और मुख्यमंत्री को अपना समर्थन दे दिया.