जयपुर. बच्चों और बालिकाओं के यौन शोषण के मामलों में त्वरित सुनवाई के लिए हर जिले में अलग से पॉक्सो कोर्ट खोली गई हैं. इन अदालतों को खोलने का मकसद ट्रायल के दौरान पीड़ितों को सहज माहौल भी उपलब्ध कराना था. लेकिन पॉक्सो कानून की मंशा के विपरीत इन अदालतों में संसाधनों का अभाव है. देखिये यह रिपोर्ट...
इन अदालतों में अलग से कक्ष न होने के चलते बयानों के लिए आने वाली पीड़िताओं के लिए अलग से कक्ष की व्यवस्था तक नहीं है. ऐसे में उन्हें सबके सामने खुले में अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है. इससे न केवल उनमें डर पैदा होता है, बल्कि उनकी पहचान भी सार्वजनिक हो जाती है.
57 अदालतों में 6800 मामले लंबित
प्रदेश में पॉक्सो कोर्ट्स की बात की जाए तो यहां कुल 57 विशेष न्यायालय हैं. मुकदमों की संख्या को देखते हुए जयपुर शहर में 6 और जिले में 1 पॉक्सो कोर्ट है. इन अदालतों में करीब 6800 मुकदमे लंबित चल रहे हैं. इनमें से कई जगह को ये नाम के विशेष न्यायालय हैं. इनमें पॉक्सो के साथ-साथ आईपीसी और किशोर न्याय अधिनियम के मुकदमों की ट्रायल भी हो रही है.
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कई प्रावधान, लेकिन सिर्फ कागजों में
पॉक्सो अधिनियम के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए विशेष लोक अभियोजनक ललिता संजीव महरवाल ने बताया कि अधिनियम के तहत पीडिता से जिरह नहीं की जा सकती. यदि अभियोजन पक्ष या बचाव पक्ष का अधिवक्ता पीड़ित से कोई सवाल करना चाहता है तो वह अपने प्रश्न कोर्ट को लिखित में देगा.
वहीं पीठासीन अधिकारी पीड़ित से दोस्ताना व्यवहार करते हुए इनका जवाब लेंगे. लेकिन वास्तव में ऐसा कुछ नहीं है. बचाव पक्ष के अधिवक्ता सीधे पीड़ित से जिरह करते हैं. जिससे अधिकांश बार पीड़ित सहम कर रह जाती हैं.
प्रावधान तो यहां तक हैं कि इन विशेष न्यायालयों को मुख्य कोर्ट परिसर से दूर बनाया जाए. लेकिन सभी प्रावधान कागजों तक ही सीमित हैं. इसके साथ ही इन कोर्ट्स के सरकारी वकीलों को कोई खास सुविधा नहीं दी जाती. जयपुर शहर की बात की जाए तो न्याय विभाग से सरकारी वकीलों को फर्नीचर आवंटित हुआ था. लेकिन अलग से जगह नहीं होने के कारण सरकारी वकीलों ने फर्नीचर लिया ही नहीं.
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न पुलिस का सहयोग, न एफएसएल रिपोर्ट समय पर
पॉक्सो मामलों में पैरवी करने वाली शिल्पा शर्मा का कहना है कि पॉक्सो के मामलों में अनुसंधान अधिकारी सक्रिय भूमिका में नहीं रहते हैं. कई मामलों में तो अभियोजन पक्ष को पूरे दस्तावेज भी नहीं दिए जाते. वहीं तय समय में एफएसएल रिपोर्ट नहीं मिलने के कारण आरोपी पक्ष को जमानत मिलने में आसानी हो जाती है.