जयपुर. कोरोना संकट के बीच लोगों की सेहत से जुड़ी यह अहम खबर है. विकसित देशों की तर्ज पर अब देश में सभी अस्पतालों को क्लीनिकल फार्मासिस्ट (Clinical Pharmacist) रखना जरूरी होगा. इस संबंध में फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया (Pharmacy Council of India) ने गजट नोटिफिकेशन जारी किया है.
इसके अनुसार अब कोई भी दवा मरीज को देने से पहले डॉक्टर को क्लीनिकल फार्मासिस्ट (Clinical Pharmacist) से राय लेनी होगी. इसके साथ ही क्लीनिकल फार्मासिस्ट डॉक्टर के लिखे प्रिस्क्रिप्शन में बदलाव भी कर सकता है. इस नई व्यवस्था से एक तरफ जहां मरीजों को दवाओं की संपूर्ण जानकारी मिलेगी. वहीं, फार्मा डी का कोर्स करने वाले विद्यार्थियों को देश में ही रोजगार मिलने से उनका पलायन भी रुकेगा.
इंडियन फार्मासिस्ट एसोसिएशन, राजस्थान के प्रदेशाध्यक्ष सर्वेश्वर शर्मा का कहना है कि फार्मासिस्ट के अधिकार और अस्तित्व के लिए इंडियन फार्मासिस्ट एसोसिएशन लंबे समय से संघर्ष कर रहा है. फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया (Pharmacy Council of India) के इस फैसले से क्लीनिकल फार्मासिस्ट का सम्मान बढ़ेगा और उन्हें रोजगार मिलेगा. उनका कहना है कि क्लीनिकल फार्मासिस्ट अस्पतालों में अहम भूमिका निभाते हैं. वे दवा से संबंधित जरूरतों का आकलन करते हैं और दवा चिकित्सा का मूल्यांकन करते हैं.
बड़ी बात यह है कि पांच साल का फार्मा डी कोर्स करने के बाद कोई क्लीनिकल फार्मासिस्ट (Clinical Pharmacist) बन सकता है. अब तक देश में क्लीनिकल फार्मासिस्ट को रोजगार के पर्याप्त अवसर नहीं मिल पा रहे हैं. इसलिए बहुत कम युवा फार्मा डी कोर्स करते हैं. जो यह कोर्स करते हैं वे भी रोजगार के लिए विदेशों में जाने को मजबूर होते हैं. लेकिन अब नई व्यवस्था लागू होने से इन प्रतिभाओं का पलायन रुकने की भी उम्मीद बंधी है.
जानकारों का कहना है कि विकसित देशों में डॉक्टर मरीजों को डाइग्नोस करते हैं. जबकि दवा लिखने का काम क्लीनिकल फार्मासिस्ट (Clinical Pharmacist) का होता है. इसीलिए इन देशों में फार्मा डी की डिग्रीधारी युवाओं की काफी डिमांड भी रहती है.