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पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता के रूप में रामपाल जाट ने बताए सदन के ये नियम, खुद सुनिए...

19 विधायकों को दल-बदल कानून के तहत जारी किए गए नोटिस को लेकर प्रदेश में सियासत गर्म है. इसे लेकर पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता और किसान नेता रामपाल जाट ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है.

Rajasthan Political Update,   Notice issued to 19 MLAs
रामपाल जाट ने बताए सदन के नियम
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Published : Jul 15, 2020, 5:53 PM IST

जयपुर. प्रदेश में आए सियासी उफान के बीच विधानसभा अध्यक्ष की ओर से 19 विधायकों को दल-बदल कानून (Anti-Defection law) के तहत जारी किए गए नोटिस को लेकर सियासत गर्म है. नोटिस जारी होने के बाद भाजपा से लेकर सियासत में दखल रखने वाला एक शख्स इससे जुड़े नियम और कानून को खंगालने में जुटा है. इस बीच पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता और किसान नेता रामपाल जाट से भी अपनी प्रतिक्रिया इस विषय पर दी.

रामपाल जाट ने बताए सदन के नियम

रामपाल जाट के अनुसार सदन में किसी भी राजनीतिक दल के प्राधिकृत व्यक्ति यदि मतदान नहीं करता या मतदान से विरत रहने की स्थिति में 15 दिन की अवधि में उस सदस्य को क्षमा नहीं किया जाता है, तो उसकी सदन से सदस्यता समाप्त समझी जाएगी. इसके निर्णय का अधिकार विधानसभा के अध्यक्ष को है और न्यायालयों की अधिकारिता से इसे बाहर रखा गया है.

पढ़ें- पायलट पर गहलोत का निशाना, कहा- सफाई वही लोग दे रहे हैं, जो खुद षड्यंत्र में शामिल थे

जाट के अनुसार 15 फरवरी 1985 को 52वें संविधान संशोधन को अनुमोदित किया गया था, जिसमें भारतीय संविधान की 10वीं अनुसूची के परिच्छेद 2 के (ख) के अनुसार यह व्यवस्था की गई है. रामपाल जाट के अनुसार कोई भी राजनीतिक दल अनुशासनहीनता के लिए दलीय स्तर पर कार्रवाई करने को स्वतंत्र है. दल की ओर से निष्कासित किए जाने पर सदन में वो सदस्य उस दल से असंबंध सदस्य के रूप में रहेगा.

मतलब जाट ने मौजूदा परिस्थितियों में जारी किए गए नोटिस के आधार पर मौजूदा विधायकों की सदस्यता विधानसभा से समाप्त नहीं होने की बात कही. वहीं, ये भी कहा कि राजनीतिक दल के रूप में कांग्रेस अपने स्तर पर पार्टी से उनकी सदस्यता समाप्त कर सकती हैं और उस स्थिति में इन विधायकों की विधायकी तो रहेगी लेकिन विधानसभा के भीतर कांग्रेस का प्रतिनिधित्व नहीं कर पाएंगे.

दल-बदल विरोधी कानून

  • वर्ष 1985 में 52वें संविधान संशोधन के माध्यम से देश में 'दल-बदल विरोधी कानून' पारित किया गया. साथ ही संविधान की 10वीं अनुसूची जिसमें दल-बदल विरोधी कानून शामिल है उसको संशोधन के माध्यम से भारतीय से संविधान जोड़ा गया.
  • इस कानून का मुख्य उद्देश्य भारतीय राजनीति में 'दल-बदल' की कुप्रथा को समाप्त करना था, जो कि 1970 के दशक से पूर्व भारतीय राजनीति में काफी प्रचलित थी.

जयपुर. प्रदेश में आए सियासी उफान के बीच विधानसभा अध्यक्ष की ओर से 19 विधायकों को दल-बदल कानून (Anti-Defection law) के तहत जारी किए गए नोटिस को लेकर सियासत गर्म है. नोटिस जारी होने के बाद भाजपा से लेकर सियासत में दखल रखने वाला एक शख्स इससे जुड़े नियम और कानून को खंगालने में जुटा है. इस बीच पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता और किसान नेता रामपाल जाट से भी अपनी प्रतिक्रिया इस विषय पर दी.

रामपाल जाट ने बताए सदन के नियम

रामपाल जाट के अनुसार सदन में किसी भी राजनीतिक दल के प्राधिकृत व्यक्ति यदि मतदान नहीं करता या मतदान से विरत रहने की स्थिति में 15 दिन की अवधि में उस सदस्य को क्षमा नहीं किया जाता है, तो उसकी सदन से सदस्यता समाप्त समझी जाएगी. इसके निर्णय का अधिकार विधानसभा के अध्यक्ष को है और न्यायालयों की अधिकारिता से इसे बाहर रखा गया है.

पढ़ें- पायलट पर गहलोत का निशाना, कहा- सफाई वही लोग दे रहे हैं, जो खुद षड्यंत्र में शामिल थे

जाट के अनुसार 15 फरवरी 1985 को 52वें संविधान संशोधन को अनुमोदित किया गया था, जिसमें भारतीय संविधान की 10वीं अनुसूची के परिच्छेद 2 के (ख) के अनुसार यह व्यवस्था की गई है. रामपाल जाट के अनुसार कोई भी राजनीतिक दल अनुशासनहीनता के लिए दलीय स्तर पर कार्रवाई करने को स्वतंत्र है. दल की ओर से निष्कासित किए जाने पर सदन में वो सदस्य उस दल से असंबंध सदस्य के रूप में रहेगा.

मतलब जाट ने मौजूदा परिस्थितियों में जारी किए गए नोटिस के आधार पर मौजूदा विधायकों की सदस्यता विधानसभा से समाप्त नहीं होने की बात कही. वहीं, ये भी कहा कि राजनीतिक दल के रूप में कांग्रेस अपने स्तर पर पार्टी से उनकी सदस्यता समाप्त कर सकती हैं और उस स्थिति में इन विधायकों की विधायकी तो रहेगी लेकिन विधानसभा के भीतर कांग्रेस का प्रतिनिधित्व नहीं कर पाएंगे.

दल-बदल विरोधी कानून

  • वर्ष 1985 में 52वें संविधान संशोधन के माध्यम से देश में 'दल-बदल विरोधी कानून' पारित किया गया. साथ ही संविधान की 10वीं अनुसूची जिसमें दल-बदल विरोधी कानून शामिल है उसको संशोधन के माध्यम से भारतीय से संविधान जोड़ा गया.
  • इस कानून का मुख्य उद्देश्य भारतीय राजनीति में 'दल-बदल' की कुप्रथा को समाप्त करना था, जो कि 1970 के दशक से पूर्व भारतीय राजनीति में काफी प्रचलित थी.
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