जयपुर: साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक (Triple Talaq) को गैरकानूनी बताया. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को कानून लाने के निर्देश दिए. 25 जुलाई 2019 को लोकसभा (Lok Sabha) में बिल पास हुआ. 30 जुलाई को बिल राज्यसभा (Rajya Sabha) में पारित होने के साथ कानून बन गया. 19 सितंबर 2018 से यह लागू हुआ.
ट्रिपल तलाक कानून (Triple Talaq law) बनने के बाद यही सोच थी कि मुस्लिम महिलाओं की जिंदगी में नए और उजले दौर की शुरुआत होगी. आज भी महिला MCom, BEd हो या आर्थिक रूप से संपन्न, लेकिन ट्रिपल तलाक के जहर के सामने ना तो उनकी शिक्षा आड़े आई, ना पैसा. आलम ये है कि कसूरवारों को इस कानून का डर तक नहीं है और कानून के रखवाले चांदी कूटने में लगे हैं.
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एक पीड़ित ने बताया कि साल 2019 में जब कानून बना तो ससुराल वालों में डर था. ऐसे में सिर्फ उन्हें धमकी दी गई. लेकिन अगस्त 2020 में उनके शौहर ने तीन तलाक देकर घर से निकाल दिया. उसके बाद जब कानून का दरवाजा खटखटाया तो वहां भी सुनवाई नहीं हुई. दो बार काउंसलिंग (Counseling) जरूर हुई, लेकिन उस काउंसलिंग में बयान तक पूरी तरह नहीं लिखे गए. जब इसकी शिकायत महिला थाना उत्तर एसएचओ सीमा पठान को की गई तो रिकाउंसलिंग जरूर हुई, लेकिन बयान तब भी पूरे दर्ज नहीं हुए. यही नहीं सीमा पठान के कमरे में ही उनके शौहर ने हाथ तक उठाया.
दूसरी पीड़ित की हालत इतनी नाजुक है कि फिलहाल पूरी तरह बेड रेस्ट पर है. पीड़ित की मां ने बताया कि 9 महीने पहले शादी हुई. करीब डेढ़ महीने बाद से ही शौहर सहित ससुराल पक्ष मारपीट करने लगा. 10 दिन तक खाना भी नहीं दिया गया. जब वो खुद बेटी के संबंध में ससुराल में बात करने गई तो उनके सामने ही सास ने बेटी के साथ मारपीट की. दामाद ने तलाक देने की बात कहते हुए घर से निकाल दिया. मारपीट का कारण पैसे और दहेज बताते हुए महिला ने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई. वहां से मामला रामगंज थाने में आ गया, लेकिन अबतक सुनवाई नहीं हुई.
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ट्रिपल तलाक कानून बनने के बाद राजस्थान की बात करें तो जयपुर में 5 केस, जोधपुर में 4 केस, कोटा में 2 केस, अजमेर में 2 केस, बांसवाड़ा में 1 केस सामने आया है.
ट्रिपल तलाक़ कानून तो बन गया लेकिन न्याय अब भी दूर है. हालांकि पीड़ित महिलाएं लगातार आवाज उठा रही हैं, लेकिन उस आवाज को दबाने की कोशिश की जा रही है. जयपुर की पहली महिला काजी और इस कानून के लिए संघर्ष करने वाली निशात हुसैन ने बताया कि भारतीय महिला मुस्लिम आंदोलन 2005 से लड़ाई लड़ रहा है. कानून बनना इस संघर्ष का परिणाम है. लेकिन कानून बनने के बाद भी जब तक ईमानदारी और सच्चाई से लागू नहीं हो जाता, तब तक कानून की यूं ही धज्जियां उड़ती रहेंगी.
आलम ये है कि कानून बनने के बावजूद इसका डर किसी को नहीं है. यही वजह है कि छोटे-छोटे मासूम बच्चों वाली युवा महिलाओं तक को तलाक का दंश झेल अपने पीहर में रहना पड़ रहा है. इन महिलाओं को कानून पर ऐतबार जरूर है, लेकिन कागजों की फाइल लेकर चक्कर काटती रह जाती हैं और न्याय नहीं मिल रहा. निशात हुसैन ने कहा कि कानून बनने के बाद 82 फीसदी मामलों में कमी जरूर आई है. लेकिन ये तय है कि बहुत से मामलों में महिलाएं थाने और कोर्ट तक नहीं जातीं. जिनका कोई डाटा भी उपलब्ध नहीं है.
ट्रिपल तलाक कानून में स्पष्ट लिखा है कि जो कुरान में तरीका है, यदि उसका इस्तेमाल नहीं करेंगे तो इसकी सजा आपको भुगतनी पड़ेगी. इंसटेंट तलाक देने की स्थिति में 3 साल सजा का प्रावधान है. इस दौरान संबंधित महिला ससुराल में ही रहेगी और खर्चा भी ससुराल वाले ही उठाएंगे. लेकिन कानून बनने और प्रावधान तय होने के बावजूद भी लागू नहीं हो रहे.
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हालांकि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (Muslim Personal Law Board) का कहना है कि कानून बनने के बाद अबतक ट्रिपल तलाक का कोई मामला सामने नहीं आया. इस पर निशात हुसैन ने कहा कि कम से कम मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ट्रिपल तलाक कानून को एक्सेप्ट करते हुए ये बात बोल तो रहे हैं. लेकिन आंकड़े वस्तुस्थिति स्पष्ट कर रहे हैं. राजस्थान में तो ये आंकड़ा बहुत कम है. यूपी में तो ये आंकड़ा हजार को पार कर चुका है. इनमें 250 मामलों में गिरफ्तारी भी हुई है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का दावा सरासर गलत है. यदि बोर्ड महिलाओं के हित में ही बात करता तो इस कानून की जरूरत ही नहीं पड़ती.
पुलिस थानों में महिलाओं को न्याय नहीं मिलने के सवाल पर निशात हुसैन ने कहा कि महिलाओं को लेकर जो भी पुराने कानून हैं, उन्हीं की जानकारी पुलिस थानों में नहीं है. ये तो अभी नया कानून आया है. जब जानकारी बढ़ेगी, तब शायद कुछ अच्छा कर सकें. लेकिन इसकी उम्मीद कम ही है, क्योंकि महिला पहली हिंसा घर में, फिर थाने में और उसके बाद कोर्ट में बर्दाश्त करेगी. सालों पैसे, समय और जिंदगी की बर्बादी भुगतेगी.
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ऐसे में सवाल उठ रहा है कि फिर इस तरह के कानून का क्या फायदा? इस पर उन्होंने कहा कि कानून पर एतबार सबका है, लेकिन उसकी लगातार धज्जियां उड़ रही हैं. आलम यह है कि हर मामले में राजनीतिक दखलअंदाजी रहती है. पूरा सिस्टम डूबा हुआ है. यहां न्याय की उम्मीद नहीं होते हुए भी मुस्लिम महिलाएं आशावादी रहती हैं. इसलिए ये लड़ाई लड़ रही हैं. पहले लड़ाई लड़ी तो कानून बना. अब लड़ाई लड़ेंगे कि कानून का सदुपयोग हो.
कहते हैं देर है, अंधेर नहीं. कानून बना है तो न्याय भी मिलेगा. इसमें देर जरूर हो सकती है. फिलहाल ये देरी उन महिलाओं पर भारी पड़ रही है, जो ट्रिपल तलाक से पीड़ित हैं और न्याय की आस में भटक रही हैं.