जयपुर. प्रदेश में हर साल दिव्यांगों के लिए कई बड़े-बड़े ऐलान किए जाते हैं. साथ ही उम्मीदें दिखाई और जगाई जाती हैं. लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही नजर आती है. शायद इसलिए कोर्ट ने सरकारी सिस्टम को एक बार फिर नींद से जगाने की कोशिश की है. विशेष योग्यजन अदालत ने आदेश में राजस्थान के सभी जिलों में दिव्यांगजनों के लिए सभी धार्मिक स्थलों पर रैम्प बनवाने का फैसला सुनाया है. इस संबंध में न्यायालय ने देवस्थान सचिव गृह विभाग सचिव को नोटिस थमा कर रिपोर्ट मांगी.
बता दें कि प्रदेश में दिव्यांग जनों की संख्या 16 लाख है, लेकिन अभी भी अधिकतर धार्मिक स्थलों पर रैम्प की कोई व्यवस्था नहीं हुई है. जयपुर के भी अधिकतर प्रमुख मंदिर प्रथम पूज्य मोती डूंगरी गणेश मंदिर, आराध्य देव गोविंददेव जी मंदिर सहित कई मंदिरों में दिव्यांग जनों के लिए विशेष रैंप की सुविधा नहीं है. जिससे दिव्यांगजन भगवान के दरबार में तो पहुंचते हैं लेकिन दर्शन के लिए भीड़ में जद्दोजहद करनी पड़ती है. जबकि नियमों के अनुसार सभी धार्मिक स्थलों पर रैंप होने चाहिए थे.
कोर्ट ने यह फैसला दिव्यांग अधिकार महासंघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हेमंत भाई गोयल की याचिका पर लिया है. दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 की धारा 45 में धार्मिक स्थलों और सिनेमा हॉल को दिव्यांग फ्रेंडली बनाने के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए कहा गया था. लेकिन हालात इसके बिल्कुल विपरीत और उलट नजर आ रहे हैं.
वहीं, इसके अलावा केंद्र सरकार के सुगम्य भारत अभियान तहत जयपुर के 100 प्रमुख सरकारी भवनों को दिव्यांगजनों के लिए फ्रेंडली बनाने का काम किया गया. उधर, राज्य सरकार ने सभी पंचायतों और आंगनबाड़ी केंद्रों में रैम्प बनाने का फैसला लिया. ऐसे में मंदिर, मस्जिद और गिरजाघर में क्यों दिव्यांग फ्रेंडली नहीं हो सकते हैं.