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महाशिवरात्रि विशेष: इस कारण भगवान शिव को अति प्रिय है 'बेलपत्र'

भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाना बेहद शुभ और फलदायी माना जाता है. इसके पीछे समुद्र मंथन से जुड़ी पौराणिक मान्यता है. आखिर क्यों भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाया जाता है, देखिये विशेष रिपोर्ट.

mahashivratri belpatra special, महाशिवरात्रि में बेलपत्र का महत्व
भगवान शिव को अति प्रिय है 'बेलपत्र'
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Published : Feb 21, 2020, 10:50 AM IST

जयपुर: महादेव शिव शंभू और बेलपत्र का एक दूजे से गहरा नाता है. माना जाता है कि बेलपत्र शिवजी को चढ़ाने से दरिद्रता दूर होती है और व्यक्ति सौभाग्यशाली होता है. पौराणिक मान्यता के मुताबिक भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाने के विश्वास को समुद्र मंथन से जोड़ती है.

भगवान शिव ने जब समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष का पान किया तो विष पीने से उनके गले यानी कंठ में जलन होने लगी. इस जलन को दूर करने के लिए उनका जलाभिषेक किया गया और उनके मस्तक को ठंडक प्रदान करने के लिए उन्हें बेलपत्र चढ़ाया गया. यही वजह है कि भगवान नीलकंठ को बेलपत्र चढ़ाने का विशेष महत्व है और महाशिवरात्रि के दिन उनका जलाभिषेक किया जाता है.

भगवान शिव को अति प्रिय है 'बेलपत्र'

ऐसे चढ़ाएं भगवान शिव को बेलपत्र

भगवान शिव को बेलपत्र किस तरह से चढ़ाया उसे भी जानना बेहद जरूरी है. बेलपत्र की साथ में तीन पत्तियों वाले भाग को ही भोलेनाथ पर चढ़ाया जाता है. भगवान शिव को हमेशा उल्टा बेलपत्र यानी चिकनी सतह की तरफ वाला वाला भाग स्पर्श कराते हुए ही बेलपत्र चढ़ाएं. बेलपत्र को हमेशा अनामिका, अंगूठे और मध्यमा अंगुली की मदद से चढ़ाएं. शिव जी को बिल्वपत्र अर्पण करने के साथ-साथ जल की धारा जरूर चढ़ाएं.

देखें- महाशिवरात्रि: 59 साल बाद बन रहा है ये शुभ संयोग, जानें पूजा और व्रत विधि

बेलपत्र के मूलभाग में सभी तीर्थों का वास

माना जाता है कि साथ में तीन पत्तियों वाले बेलपत्र के मूलभाग में सभी तीर्थों का वास होता है. कहते हैं जिस घर में बेल का वृक्ष होता है वहां धन-धान्य की कभी कोई कमी नहीं होती. बेलपत्र कभी अशुद्ध नहीं होता. पहले से चढ़ाया हुआ बेलपत्र भी फिर से धोकर चढ़ाया जा सकता है. जो भक्त भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाता है उसके सारे दुख दूर हो जाते हैं और भोलेनाथ उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं.

जयपुर: महादेव शिव शंभू और बेलपत्र का एक दूजे से गहरा नाता है. माना जाता है कि बेलपत्र शिवजी को चढ़ाने से दरिद्रता दूर होती है और व्यक्ति सौभाग्यशाली होता है. पौराणिक मान्यता के मुताबिक भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाने के विश्वास को समुद्र मंथन से जोड़ती है.

भगवान शिव ने जब समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष का पान किया तो विष पीने से उनके गले यानी कंठ में जलन होने लगी. इस जलन को दूर करने के लिए उनका जलाभिषेक किया गया और उनके मस्तक को ठंडक प्रदान करने के लिए उन्हें बेलपत्र चढ़ाया गया. यही वजह है कि भगवान नीलकंठ को बेलपत्र चढ़ाने का विशेष महत्व है और महाशिवरात्रि के दिन उनका जलाभिषेक किया जाता है.

भगवान शिव को अति प्रिय है 'बेलपत्र'

ऐसे चढ़ाएं भगवान शिव को बेलपत्र

भगवान शिव को बेलपत्र किस तरह से चढ़ाया उसे भी जानना बेहद जरूरी है. बेलपत्र की साथ में तीन पत्तियों वाले भाग को ही भोलेनाथ पर चढ़ाया जाता है. भगवान शिव को हमेशा उल्टा बेलपत्र यानी चिकनी सतह की तरफ वाला वाला भाग स्पर्श कराते हुए ही बेलपत्र चढ़ाएं. बेलपत्र को हमेशा अनामिका, अंगूठे और मध्यमा अंगुली की मदद से चढ़ाएं. शिव जी को बिल्वपत्र अर्पण करने के साथ-साथ जल की धारा जरूर चढ़ाएं.

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बेलपत्र के मूलभाग में सभी तीर्थों का वास

माना जाता है कि साथ में तीन पत्तियों वाले बेलपत्र के मूलभाग में सभी तीर्थों का वास होता है. कहते हैं जिस घर में बेल का वृक्ष होता है वहां धन-धान्य की कभी कोई कमी नहीं होती. बेलपत्र कभी अशुद्ध नहीं होता. पहले से चढ़ाया हुआ बेलपत्र भी फिर से धोकर चढ़ाया जा सकता है. जो भक्त भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाता है उसके सारे दुख दूर हो जाते हैं और भोलेनाथ उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं.

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