जयपुर. राजस्थान में एक नारा हमेशा जोर-शोर से लगता रहा है कि 'जब-जब कर्मचारी बोला है, राज सिंहासन डोला है'. प्रदेश में पंचायत चुनाव से ठीक पहले एक बार इसी तरह के नारे की गूंज प्रदेश में सुनाई दे रही है. राज्य के साढ़े सात लाख से अधिक कर्मचारियों के सब्र का बांध अब टूटने लगा है. कर्मचारी दिवाली से ठीक पहले सरकार के खिलाफ आंदोलन करने को मजबूर हो गए हैं.
प्रदेश के कर्मचारी संगठन सरकार से बोनस नहीं मिलने और कोरोना काल में काटे जा रहे वेतन से नाराज हैं. इसके कारण वे अब सरकार के खिलाफ प्रदेश में लगी धारा 144 को तोड़ने की तैयारी कर रहे हैं. राज्य के लाखों कर्मचारी प्रदेश में लगी धारा 144 को तोड़ते हुए गिरफ्तारी देंगे.
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पहले गुर्जर आंदोलन, फिर बेरोजगार संगठन की चेतावनी और अब प्रदेश के साढ़े सात लाख कर्मचारियों की नाराजगी ने प्रदेश की गहलोत सरकार की पंचायत चुनाव से पहले मुश्किलें बढ़ा दी हैं. कर्मचारी पहले कोरोना काल में 15 दिन की सैलरी फ्रिज करने और उसके बाद कर्मचारियों की एक दिन और अधिकारियों की दो दिन की हर महीने हो रही वेतन कटौती से नाराज चल रहे थे. लेकिन अब दीपावली बोनस की घोषणा में हो रही देरी कर्मचारी संगठनों को आंदोलन की राह पर ले जा रही है.
आंदोलन का एलान...
अखिल राजस्थान राज्य कर्मचारी संयुक्त महासंघ और एकीकृत महासंघ ने आंदोलन का एलान कर दिया है. यह संगठन भले ही अलग-अलग हो, लेकिन दोनों संगठनों की नाराजगी का खामियाजा गहलोत सरकार को पंचायत चुनाव में उठाना पड़ सकता है. अखिल राजस्थान राज्य कर्मचारी संयुक्त महासंघ के प्रदेश महामंत्री तेज सिंह राठौड़ ने कहा कि गहलोत सरकार इस बार हठधर्मिता पर उतारू है.
8 नवंबर को विधायकों को सौंपेगी ज्ञापन
तेजसिंह राठौड़ ने बताया कि कोरोना काल में लगे लॉकडाउन के बाद अब सब सामान्य होने लगा है और सरकार की आर्थिक स्थति भी ठीक होने लगी है, लेकिन इसके बाद भी कर्मचारियों की वेतन में कटौती की जा रही है. साथ ही सरकार ने दीपावली पर मिलने वाला बोनस भी अभी तक नहीं दिया है, ऐसे में अब संयुक्त महासंघ ने 8 नवंबर को प्रदेश के सभी विधायकों को ज्ञापन सौंपेगी और बोनस की मांग करेगी.
11 नवंबर को धारा 144 को तोड़ते हुए देंगे गिरफ्तारी
राठौड़ ने बताया कि इसके बाद भी अगर सरकार हमारी मांगें नहीं मानी तो सभी कर्मचारी 11 नवंबर को प्रदेश में लगी धारा 144 को तोड़ते हुए गिरफ्तारी देंगे. उन्होंने बताया कि अगर इसके बाद भी सरकार नहीं जगती है तो 11 और 12 नवंबर को हड़ताल जैसे निर्णय पर जाने को मजबूर होना पड़ेगा.
केंद्र के बाद राज्य सरकार करती है घोषणा
दरअसल, केंद्रीय कर्मचारियों के लिए बोनस की घोषणा के बाद कर्मचारी संगठनों ने राज्य सरकार से भी बोनस की घोषणा करने की मांग करने लगे हैं. केंद्र सरकार की ओर से महंगाई भत्ता बढ़ाने और बोनस देने की घोषणा के बाद ही राज्यों में भी कर्मचारी के लिए बोनस की घोषणा होती है. लेकिन इस बार राज्य सरकार ने अब तक बोनस की घोषणा नहीं की है. यही वजह है कि संयुक्त महासंघ ही नहीं बल्कि एकीकृत महासंघ भी सरकार को आंदोलन की चेतावनी दे रहा है.
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एक तरफ केंद्र से आने वाले राज्यों के हिस्से की जीएसटी का पैसा नहीं आने से सरकार आर्थिक संकट से गुजर रही थी, उसके बाद रही सही कसर कोरोना काल ने पूरी कर दी. इस भारी आर्थिक संकट से गुजरने के लिए सरकार ने पहले तो अपने कर्मचारियों और अधिकारियों सहित मंत्री-विधायकों की 15 दिन की सैलरी को फ्रिज किया.
इसके बाद गहलोत सरकार ने कर्मचारियों की एक दिन और अधिकारियों की दो दिन की हर महीने सैलरी काटना शुरू कर दिया. इसी बिगड़े आर्थिक हालातों का हवाला देते हुए सरकार ने अभी तक राज्य के कर्मचारियों को दीपावली पर दिए जाने वाले बोनस की घोषणा नहीं की है.