जयपुर. लॉकडाउन को 87 दिन हो चुके है और स्कूल करीब 3 माह से बंद है. बच्चों को रोज औसतन पांच घंटे ऑनलाइन क्लास लेनी पड़ी रही है. जिसके बाद अब इसके दुष्परिणाम भी सामने आने लगे है. लगातार मोबाइल स्क्रीन पर रहने के कारण बच्चों में कई बदलाव आ गए है. डॉक्टरों की स्टडी में चौंकाने वाले खुलासे हुए है, कि 71% बच्चे चिड़चिड़े, जिद्दी, मूडी, मोटे होने लगे है. साथ ही काम के प्रति लापरवाह हो गए. ऐसे में अब बच्चे आधे घंटे भी मोबाइल से दूर नहीं रहे पाते है, जो बहुत घातक है.
जेके लोन अस्पताल अधीक्षक डॉ. अशोक गुप्ता में बताया कि, देश के 20 और राजस्थान के 13 शहरों के 209 बच्चों और अभिभावकों ने इसमें भाग लिया. रिसर्च में शामिल 89% माताएं और 93% पिता पढ़ें लिखे भी है. 95% बच्चे अंग्रेजी माध्यम के निजी स्कूलों से और 5% सरकारी स्कूलों के थे. जिसमें पेरेंट्स ने बताया कि 65% बच्चों में मोबाइल या लैपटॉप के नशे की हद तक तलब हो गई है, वहीं 50% बच्चों में यह समस्या हाल ही में लॉकडाउन लागू होने के बाद शुरू हुई है.
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डॉ. गुप्ता का कहना है कि, बच्चों में सुबह उठने के 1 घंटे के अंदर मोबाइल प्रयोग करने की आदत बढ़ना चिंताजनक है. लॉकडाउन से मोबाइल और लैपटॉप स्क्रीन पर बच्चों का समय बढ़ा है, जिससे दिमाग में मैलेटोनिन कम हो जाता है. इससे बच्चों को नींद आने में दिक्कत होती हैं. हमने गूगल फॉमर्स में सवाल तैयार कर ऑनलाइन डाले थे और 20 शहरों के बच्चों और अभिभावकों से जवाब दोनों भाषाओं में मांगे थे. जिसमें बच्चों पर ऑनलाइन क्लासेज के असर का पता पड़ा. वहीं डॉक्टरों के अनुसार इस लत को नोमोफोबिया कहते है.
नोमोफोबिया क्या है
नोमोफोबिया यानी मोबाइल फोबिया, जिसे मोबाइल की आदत लग जाती है और वह मोबाइल के बिना नहीं रह सकता है. साथ ही मोबाइल के खो जाने का डर भी ऐसे लोगों को सताता रहता है. ऐसे फोबिया को ही नोमोफोबिया कहते है. वहीं नोमोफोबिया की शिकार युवक अगर 2 मिनट भी मोबाइल से दूर हो जाते है तो उनको चिंता होने लगती है और वो परेशान होने लगते है. सीधे शब्दों में कहे तो स्मार्टफोन की लत को नोमोफोबिया कहते हैं.