जयपुर. राजस्थान में महिला थानों में आईपीसी की धारा 498-ए के तहत दर्ज होने वाले दहेज महिला उत्पीड़न के प्रकरणों में कानून का जमकर दुरुपयोग किया जा रहा (Misuse of IPC section 498 A in women harassment cases in Rajasthan) है. पति-पत्नी के बीच में होने वाले विवाद और धीरे-धीरे उनके बीच में बढ़ने वाली दूरियों के बाद ससुराल पक्ष के लोगों को सबक सिखाने के लिए आईपीसी की धारा 498-ए के तहत दर्ज होने वाले मुकदमों में पति के खिलाफ अननेचुरल सेक्स के आरोप लगाते हुए धारा 377 और ससुराल पक्ष के अन्य लोगों के खिलाफ दुष्कर्म का आरोप लगाते हुए धारा 376 का जमकर दुरुपयोग किया जा रहा है. यह धाराएं गैर जमानती हैं जिसके चलते इसका प्रयोग महज सबक सिखाने और पति व ससुराल के अन्य लोगों को जेल भिजवाने के लिए किया जा रहा है. इसे लेकर राजस्थान पुलिस भी काफी गंभीर नजर आ रही है.
इस तरह के प्रकरणों की गहराई से तफ्तीश करने के बाद ही प्रकरण में अग्रिम निर्णय लिया जा रहा है. यदि बात वर्ष 2022 में अप्रैल माह तक 498-ए के तहत दर्ज किए गए 6216 प्रकरणों की करें, तो इसमें से 1451 प्रकरणों में धारा 377 और 376 का दुरुपयोग होना पाया (Misuse of IPC section 377 and 376 in some cases in Rajasthan) गया. जिसमें पुलिस ने जांच करने के बाद कोर्ट में एफआर पेश की. वहीं अभी 2953 प्रकरण पेंडिंग चल रहे हैं जिनकी जांच की जा रही है, वहीं 1812 प्रकरणों में पुलिस ने कोर्ट में चालान पेश किया है.
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498-ए के तहत मामला दर्ज करने से पहले की जाती है काउंसलिंग: एडीजी क्राइम डॉ. रवि प्रकाश मेहरड़ा का कहना है कि राजस्थान में पुलिस 498-ए के तहत मुकदमा दर्ज करने से पहले दोनों पक्षों की काउंसलिंग करवाती है और काउंसलिंग में आपसी सहमति से यदि विवाद का हल हो जाता है तो फिर मामला दर्ज नहीं किया जाता. वही काउंसलिंग के बाद भी यदि महिला पक्ष संतुष्ट नहीं होता है और मुकदमा दर्ज करने के लिए कहता है तब महिला के ससुराल पक्ष के खिलाफ आईपीसी की धारा 498-ए के तहत मुकदमा दर्ज कर उसका अनुसंधान शुरू किया जाता है. वर्ष 2014 से पहले 498-ए में मुकदमा दर्ज होते ही पुलिस महिला के ससुराल पक्ष को गिरफ्तार कर लेती थी, लेकिन वर्ष 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने अर्नेश कुमार बनाम बिहार सरकार 498-ए मामले में कानून का गलत इस्तेमाल किए जाने पर जजमेंट सुनाते हुए 498-ए का मामला दर्ज होते ही ससुराल पक्ष के लोगों की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी.
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मामला दर्ज होने के बाद दिया जाता है नोटिस: मेहरड़ा ने बताया कि 498-ए के तहत मामला दर्ज होने के बाद सुप्रीम कोर्ट के अर्नेश कुमार जजमेंट के आधार महिला के ससुराल पक्ष के लोगों को सीआरपीसी की धारा 41-ए के तहत नोटिस देकर पूछताछ के लिए बुलाया जाता है. यदि ससुराल पक्ष पुलिस जांच में सहयोग करता है और जांच में केस बनना पाया जाता है तो ससुराल पक्ष के लोगों का जमानत मुचलके पर चालान कर दिया जाता है. यदि ससुराल पक्ष पुलिस जांच में सहयोग नहीं करता है तो फिर प्रकरण में उन्हें गिरफ्तार किया जाता है.
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पति और ससुराल पक्ष को फंसाने के लिए किया जा रहा धारा 377 और 376 का प्रयोग: मेहरड़ा ने बताया कि अर्नेश कुमार के जजमेंट के बाद ससुराल पक्ष के लोगों को राहत मिलने लगी तो अब उन्हें फंसाने और सबक सिखाने के लिए महिला पक्ष अन्य गैर जमानती धाराओं का प्रयोग करने लगे हैं. अब महिला पक्ष पति के खिलाफ अननेचुरल सेक्स के आरोप लगाते हुए धारा 377 और ससुर व देवर के खिलाफ दुष्कर्म के आरोप लगाते हुए धारा 376 के तहत मुकदमा दर्ज करवा रहे हैं. ऐसे में अनुसंधान के दौरान पुलिस के सामने भी कई तरह की समस्याएं उत्पन्न होने लगी है.
इसे देखते हुए पुलिस मुख्यालय से तमाम जांच अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए गए हैं कि इस तरह के प्रकरणों की गहनता से जांच की जाए. महज पति-पत्नी के झगड़े के प्रकरणों में इस तरह की धाराएं जुड़ने पर उसका गहराई से अनुसंधान किया जाए. अनुसंधान में यदि इस तरह की धाराएं नहीं बनती है तो उन्हें केस में से हटाने के निर्देश दिए गए हैं. बहुत ही कम प्रकरण ऐसे होते हैं जिनमें इस तरह की धाराओं में पुलिस कोर्ट में चालान पेश करती है.