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बदले हालात के बीच होगा कांग्रेस का चिंतन, मंथन के लिए मुद्दों की भरमार...देश-प्रदेश में नेतृत्व का संशय

कांग्रेस का चिंतन शिविर उदयपुर (Congress chintan Shivir in Udaipur) में आयोजित होने जा रहा है. शिविर में कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ तमाम बड़े नेता शामिल होंगे. शिविर में कांग्रेस के देश और प्रदेश में मौजूदा हालातों पर चिंतन के साथ कई मुद्दों (Important issues will be discussed in Chintan Shivir) पर चर्चा की जाएगी. इसके साथ ही शिविर में इस बात पर मंथन होगा कि ऐसे क्या प्रयास किए जाएं कि सत्ता में दोबारा वापसी संभव हो सके.

Congress chintan Shivir in Udaipur
चिंतन शिविर में होगा मंथन
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Published : May 12, 2022, 8:35 PM IST

जयपुर. देश में मौजूदा परिस्थितियों के लिहाज से अगर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के हालात की बात की जाए तो चिंता लाजमी है. मौजूदा हाल में 13 तारीख से उदयपुर में नव संकल्प यानी चिंतन शिविर (Congress chintan Shivir in Udaipur) के जरिए कांग्रेस पार्टी के अंदरूनी हालात पर मंथन करने वाली है. इस वजह से यह भी जानना जरूरी हो जाता है कि कांग्रेस के लिए मंथन के मुद्दे (Important issues will be discussed in Chintan Shivir) क्या रहने वाले हैं. ऊपरी तौर पर छह मुद्दों की कमेटियां बनाकर कांग्रेस इस तस्वीर को साफ करने की कोशिश कर चुकी है. लेकिन भीतर के हालात और गहराई तक सोचने का संकेत दे रहे हैं.

यह इशारा है कि कांग्रेस को न सिर्फ हिलती हुई जड़ों को मजबूत करना है, बल्कि जिस वोट बैंक का आधार लेकर सालों तक कांग्रेस देश की सत्ता पर काबिज रही है, अब उसी वोट बैंक में अपनी जड़ों को मजबूती के साथ फिर से स्थापित करना है. अभी गुजरात, कर्नाटक में चुनाव होंगे और इसके बाद राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी चुनाव होने वाले हैं. फिलहाल राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है. अगर कांग्रेस को अपना आधार मजबूत करना है, तो शासन वाले राज्यों में सत्ता को रिपीट करना होगा. कर्नाटक और गुजरात में मजबूती के साथ वापसी करनी होगी, पर क्या मौजूदा हालात में यह संभव नजर आता है. कांग्रेस का असल मंथन इसी बात पर है कि लीक से हटकर अब क्या ऐसा किया जाए, कि सत्ता में वापसी संभव हो सके.

पढ़ें. Congress Nav Sankalp Shivir : सोनिया गांधी के संबोधन से होगा आगाज, 15 मई को डोटासरा का धन्यवाद भाषण सहित ये रहेगा पूरा कार्यक्रम

जयपुर से अलग है इस बार की परिस्थिति
उदयपुर में होने वाला चिंतन शिविर साल 2013 में जयपुर में हुए चिंतन शिविर से अगर तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो इस बार कांग्रेस के लिए परिस्थितियां काफी जुदा होने वाली है. उस वक्त देश में कांग्रेस सत्ता पर काबिज थी, लेकिन आज देश में कांग्रेस हाशिए पर खड़ी है. तब राष्ट्रीय नेतृत्व में परिवर्तन के लिए कांग्रेस के अंदर का मंथन था, आज देश के नेतृत्व में परिवर्तन के लिए कांग्रेस आत्ममंथन करेगी. तब राहुल गांधी को राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया था और अब के हालात में सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष के रूप में काम कर रही हैं, लेकिन कांग्रेस को एक मजबूत चेहरे की तलाश है.

साल 2013 में 9 साल पहले प्रियंका गांधी आज के हालात की तुलना में राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति में उतनी सक्रिय नहीं रही. मतलब यह है कि चेहरे और मोहरे इस बार बदले जा चुके हैं. वह दौर था जब पूरे देश से कांग्रेस ने प्रमुख नेताओं के साथ साथ सांसद, मंत्री और विधायकों को चिंतन शिविर में शामिल किया था, लेकिन इस बार के चिंतन शिविर में 422 के करीब चुनिंदा कांग्रेस नेताओं को ही शामिल करने की बात सामने आई है. इनमें से भी युवाओं का तब का अलग से पेश करने की कोशिश हो रही है. दावा किया जा रहा है कि इस बार के चिंतन शिविर में शामिल होने वाले नेताओं में 50 फीसदी की उम्र 40 साल के करीब है.

पढ़ें. उदयपुर चिंतन शिविर में राहुल गांधी बन सकते हैं कांग्रेस के नए अध्यक्ष

राष्ट्रीय और प्रादेशिक स्तर पर नेतृत्व की उधेड़बुन
सोनिया गांधी मौजूदा दौर में कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में कांग्रेस के नेतृत्व को संभाल रही हैं. फिलहाल राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व करने के लिए कांग्रेस के सामने पूर्णकालिक चेहरे को लेकर तलाश जारी है. कांग्रेस के नेता कभी राहुल गांधी की तरफ तो कभी प्रियंका गांधी की ओर देखते हैं. यही हालात राजस्थान में हैं, अशोक गहलोत सरकार मजबूत नजर आती है, लेकिन खुद मुख्यमंत्री कई मर्तबा अपनी सरकार की हालत को बयान कर चुके हैं. विपक्ष अगर सरकार को गिराना चाहता है, मतलब कहीं कोई कमजोरी जरूर होगी. यहां भी दोहरे नेतृत्व को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं में पूरा पसोपेश नजर आता है. इन हालात में चाहे मिशन 2023 हो या फिर 2024, दोनों ही चुनौतियां कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब बन जाएंगी. जहां तक सवाल राष्ट्रीय स्तर का है तो जयपुर वाले चिंतन शिविर में वरिष्ठ नेताओं की बड़ी खोज और मनमोहन सिंह का चेहरा कांग्रेस के पास था, लेकिन इस बार गांधी परिवार ही मुख्यधारा में है और वरिष्ठ नेताओं के बीच मनभेद और मतभेद जगजाहिर है.

राजस्थान में विधायकों में असंतोष
राजस्थान में गहलोत सरकार के सामने मुश्किलों का दौर लगातार आता रहा है. वरिष्ठ विधायक लगातार सरकार के मंत्रियों के कामकाज पर सवाल खड़े करते रहते हैं. इन विधायकों की फेहरिस्त में वे लोग भी शुमार हैं जो गहलोत सरकार के पहले या दूसरे कार्यकाल के दौरान उनके सारथी के रूप में काम कर रहे थे और अब तीसरी पारी में उनके सामने बगावत का बिगुल फूंकने में लगे हैं. हालात विधायकों के स्तर पर भी बेहतर नहीं कहे जा सकते हैं. खुलेआम मीडिया में एक-दूसरे के खिलाफ बयान बाजी, मंत्रियों के कामकाज को निशाने पर रखा जाना और सरकारी कारिंदों की कार्यशैली किसी से छुपी हुई नहीं है. इन सब परिस्थितियों में राष्ट्रीय स्तर के चिंतन में स्थानीय मुद्दों को हल्की सी चिंगारी ही आलाकमान के सामने एक ज्वालामुखी के रूप में प्रस्फुटित कर सकती है.

पढ़ें. Politics on Pilot Poster: चिंतन शिविर से पहले उपजा विवाद, पायलट के पोस्टर हटाने से कार्यकर्ता नाराज

राजस्थान में सांप्रदायिक तनाव का मुद्दा अहम
कांग्रेस केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को देश में मौजूदा सांप्रदायिक तनाव के लिए जिम्मेदार मानती रही है. अशोक गहलोत ने हर बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और नरेंद्र मोदी सरकार को देश के लिए विभाजनकारी नीति का जिम्मेदार बताया है. राजस्थान में करौली, जोधपुर और भीलवाड़ा की परिस्थितियों को किसी भी लिहाज से बेहतर नहीं कहा जा सकता है. इस बीच में अलवर में मंदिर तोड़ने का मामला कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा रहा है. ऐसे में कांग्रेस को जरूरत है कि भाजपा की ओर से लगाए जा रहे एक के बाद एक आरोपों को किस तरह से नियंत्रित किया जाए. इस पर भी मंथन हो.

मुद्दा यह भी है कि मंत्री महेश जोशी के बेटे पर लगे संगीन आरोपों का जवाब उन्हें कुर्सी पर बिठा कर कांग्रेस कैसे जनता को देगी? गिर्राज सिंह मलिंगा की गिरफ्तारी हुई, लेकिन उनका मुख्यमंत्री के मशविरे पर सरेंडर किया जाना, कई सवाल खड़े कर रहा है. प्रदेश में बढ़ते महिला अत्याचारों पर उठ रही उंगलियां गहलोत सरकार को बार-बार कटघरे में खड़ा करती है. यह तस्वीर साफ है कि 9 साल पहले अशोक गहलोत के लिए चिंतन के बीच हालात भले ही हक में रहे होंगे, पर इस बार फिक्र और फिक्र का जिक्र होना है और इस पर नतीजे की तलाश की जारी रहेगी.

जयपुर. देश में मौजूदा परिस्थितियों के लिहाज से अगर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के हालात की बात की जाए तो चिंता लाजमी है. मौजूदा हाल में 13 तारीख से उदयपुर में नव संकल्प यानी चिंतन शिविर (Congress chintan Shivir in Udaipur) के जरिए कांग्रेस पार्टी के अंदरूनी हालात पर मंथन करने वाली है. इस वजह से यह भी जानना जरूरी हो जाता है कि कांग्रेस के लिए मंथन के मुद्दे (Important issues will be discussed in Chintan Shivir) क्या रहने वाले हैं. ऊपरी तौर पर छह मुद्दों की कमेटियां बनाकर कांग्रेस इस तस्वीर को साफ करने की कोशिश कर चुकी है. लेकिन भीतर के हालात और गहराई तक सोचने का संकेत दे रहे हैं.

यह इशारा है कि कांग्रेस को न सिर्फ हिलती हुई जड़ों को मजबूत करना है, बल्कि जिस वोट बैंक का आधार लेकर सालों तक कांग्रेस देश की सत्ता पर काबिज रही है, अब उसी वोट बैंक में अपनी जड़ों को मजबूती के साथ फिर से स्थापित करना है. अभी गुजरात, कर्नाटक में चुनाव होंगे और इसके बाद राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी चुनाव होने वाले हैं. फिलहाल राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है. अगर कांग्रेस को अपना आधार मजबूत करना है, तो शासन वाले राज्यों में सत्ता को रिपीट करना होगा. कर्नाटक और गुजरात में मजबूती के साथ वापसी करनी होगी, पर क्या मौजूदा हालात में यह संभव नजर आता है. कांग्रेस का असल मंथन इसी बात पर है कि लीक से हटकर अब क्या ऐसा किया जाए, कि सत्ता में वापसी संभव हो सके.

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जयपुर से अलग है इस बार की परिस्थिति
उदयपुर में होने वाला चिंतन शिविर साल 2013 में जयपुर में हुए चिंतन शिविर से अगर तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो इस बार कांग्रेस के लिए परिस्थितियां काफी जुदा होने वाली है. उस वक्त देश में कांग्रेस सत्ता पर काबिज थी, लेकिन आज देश में कांग्रेस हाशिए पर खड़ी है. तब राष्ट्रीय नेतृत्व में परिवर्तन के लिए कांग्रेस के अंदर का मंथन था, आज देश के नेतृत्व में परिवर्तन के लिए कांग्रेस आत्ममंथन करेगी. तब राहुल गांधी को राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया था और अब के हालात में सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष के रूप में काम कर रही हैं, लेकिन कांग्रेस को एक मजबूत चेहरे की तलाश है.

साल 2013 में 9 साल पहले प्रियंका गांधी आज के हालात की तुलना में राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति में उतनी सक्रिय नहीं रही. मतलब यह है कि चेहरे और मोहरे इस बार बदले जा चुके हैं. वह दौर था जब पूरे देश से कांग्रेस ने प्रमुख नेताओं के साथ साथ सांसद, मंत्री और विधायकों को चिंतन शिविर में शामिल किया था, लेकिन इस बार के चिंतन शिविर में 422 के करीब चुनिंदा कांग्रेस नेताओं को ही शामिल करने की बात सामने आई है. इनमें से भी युवाओं का तब का अलग से पेश करने की कोशिश हो रही है. दावा किया जा रहा है कि इस बार के चिंतन शिविर में शामिल होने वाले नेताओं में 50 फीसदी की उम्र 40 साल के करीब है.

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राष्ट्रीय और प्रादेशिक स्तर पर नेतृत्व की उधेड़बुन
सोनिया गांधी मौजूदा दौर में कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में कांग्रेस के नेतृत्व को संभाल रही हैं. फिलहाल राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व करने के लिए कांग्रेस के सामने पूर्णकालिक चेहरे को लेकर तलाश जारी है. कांग्रेस के नेता कभी राहुल गांधी की तरफ तो कभी प्रियंका गांधी की ओर देखते हैं. यही हालात राजस्थान में हैं, अशोक गहलोत सरकार मजबूत नजर आती है, लेकिन खुद मुख्यमंत्री कई मर्तबा अपनी सरकार की हालत को बयान कर चुके हैं. विपक्ष अगर सरकार को गिराना चाहता है, मतलब कहीं कोई कमजोरी जरूर होगी. यहां भी दोहरे नेतृत्व को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं में पूरा पसोपेश नजर आता है. इन हालात में चाहे मिशन 2023 हो या फिर 2024, दोनों ही चुनौतियां कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब बन जाएंगी. जहां तक सवाल राष्ट्रीय स्तर का है तो जयपुर वाले चिंतन शिविर में वरिष्ठ नेताओं की बड़ी खोज और मनमोहन सिंह का चेहरा कांग्रेस के पास था, लेकिन इस बार गांधी परिवार ही मुख्यधारा में है और वरिष्ठ नेताओं के बीच मनभेद और मतभेद जगजाहिर है.

राजस्थान में विधायकों में असंतोष
राजस्थान में गहलोत सरकार के सामने मुश्किलों का दौर लगातार आता रहा है. वरिष्ठ विधायक लगातार सरकार के मंत्रियों के कामकाज पर सवाल खड़े करते रहते हैं. इन विधायकों की फेहरिस्त में वे लोग भी शुमार हैं जो गहलोत सरकार के पहले या दूसरे कार्यकाल के दौरान उनके सारथी के रूप में काम कर रहे थे और अब तीसरी पारी में उनके सामने बगावत का बिगुल फूंकने में लगे हैं. हालात विधायकों के स्तर पर भी बेहतर नहीं कहे जा सकते हैं. खुलेआम मीडिया में एक-दूसरे के खिलाफ बयान बाजी, मंत्रियों के कामकाज को निशाने पर रखा जाना और सरकारी कारिंदों की कार्यशैली किसी से छुपी हुई नहीं है. इन सब परिस्थितियों में राष्ट्रीय स्तर के चिंतन में स्थानीय मुद्दों को हल्की सी चिंगारी ही आलाकमान के सामने एक ज्वालामुखी के रूप में प्रस्फुटित कर सकती है.

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राजस्थान में सांप्रदायिक तनाव का मुद्दा अहम
कांग्रेस केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को देश में मौजूदा सांप्रदायिक तनाव के लिए जिम्मेदार मानती रही है. अशोक गहलोत ने हर बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और नरेंद्र मोदी सरकार को देश के लिए विभाजनकारी नीति का जिम्मेदार बताया है. राजस्थान में करौली, जोधपुर और भीलवाड़ा की परिस्थितियों को किसी भी लिहाज से बेहतर नहीं कहा जा सकता है. इस बीच में अलवर में मंदिर तोड़ने का मामला कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा रहा है. ऐसे में कांग्रेस को जरूरत है कि भाजपा की ओर से लगाए जा रहे एक के बाद एक आरोपों को किस तरह से नियंत्रित किया जाए. इस पर भी मंथन हो.

मुद्दा यह भी है कि मंत्री महेश जोशी के बेटे पर लगे संगीन आरोपों का जवाब उन्हें कुर्सी पर बिठा कर कांग्रेस कैसे जनता को देगी? गिर्राज सिंह मलिंगा की गिरफ्तारी हुई, लेकिन उनका मुख्यमंत्री के मशविरे पर सरेंडर किया जाना, कई सवाल खड़े कर रहा है. प्रदेश में बढ़ते महिला अत्याचारों पर उठ रही उंगलियां गहलोत सरकार को बार-बार कटघरे में खड़ा करती है. यह तस्वीर साफ है कि 9 साल पहले अशोक गहलोत के लिए चिंतन के बीच हालात भले ही हक में रहे होंगे, पर इस बार फिक्र और फिक्र का जिक्र होना है और इस पर नतीजे की तलाश की जारी रहेगी.

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