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महाशिवरात्रि स्पेशल: जयपुर का सबसे प्राचीन ताड़केश्वर महादेव मंदिर, जानिए कैसे हुई थी स्थापना - राजस्थान हिंदी समाचार

छोटी काशी जयपुर में कौने-कौने पर मंदिर स्थापित हैं, और यहां भोले नाथ सबके दिलों में विराजते हैं. यही वजह है कि महाशिवरात्रि पर छोटी काशी जय भोलेनाथ के जयकारों से गूंज उठता है. महाशिवरात्रि के पावन मौके पर जानिए जयपुर की स्थापना से भी पहले का स्थापित ताड़केश्वर महादेव मंदिर के बारे मेंं, जयपुर से स्पेशल रिपोर्ट...

ताड़केश्वर महादेव मंदिर, tarkeshwar mahadev temple
जयपुर का ताड़केश्वर महादेव मंदिर
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Published : Feb 20, 2020, 10:46 AM IST

जयपुर. राजधानी जयपुर को छोटी काशी कहा जाता है और ये उपाधि यहां भगवान भोलेनाथ के स्थापित मंदिरों से मिली है. जयपुर में महादेव के कई पुराने मंदिर है, लेकिन यहां ताड़केश्वर मंदिर, जयपुर की स्थापना से पहले का है. छोटी काशी जयपुर के चौड़ा रास्ता स्थिति जयपुर स्थापना से पहले का ऐतिहासिक स्वयंभू बाबा ताड़केश्वर नाथ मंदिर तांत्रिक विधि से वास्तुकला पर आधारित है. यह मंदिर सिटी पैलेस और जयपुर के दीवान व मंदिर के निर्माता विद्याधर चक्रवर्ती की हवेली से गोपनीय सुरंगों के जरिए जुड़ा हुआ है.

जयपुर का सबसे प्राचीन ताड़केश्वर महादेव मंदिर

राजतंत्र के समय जयपुर राजपरिवार के सदस्य सुरंग से ही मंदिर में दर्शन के लिए आया करते थे. करीब 5 बीघा में स्थापित इस मंदिर की स्थापना से अभिभूत महाराजा सवाई जयसिंह ने अपने दीवान को 12 गांव जागीर में दिए थे, बाद में दीवान विद्याधर ने मंदिर पूजा के लिए आमेर से बुलाए पुजारी व्यास परिवार को मंदिर की सेवा पूजा व जीवन यापन के लिए उस वक्त के पुजारी सोमेश्वर व्यास और गिरधारी व्यास को मंदिर की जिम्मेदारी सुपुर्द कर दी थी. इस मंदिर में आजादी के बाद तक राजपरिवार के सदस्य अशोक कार्य यही संपन्न करते थे.

पढ़ें: शिवरात्री स्पेशल: यहां खंडित शिवलिंग की होती है पूजा, कुंड में स्नान के बाद मिलता है पाप मुक्ति का सर्टिफिकेट

श्मशान भूमि पर बकरी से हारा शेर

मंदिर में आठवीं पीढ़ी के महंत दिनेश व्यास ने बताया कि आमेर राज्य के समय इस स्थान पर ढूंढाड़ गांव बसा हुआ था. जिसके तहत वर्तमान मंदिर के स्थान पर ताड़ वृक्षों के साथ बियाबान जंगल था. उस वक्त मंदिर पुजारी के पूर्वज आमेर से सांगानेर जाते वक्त इस स्थान पर विश्राम किया करते थे. एक बार उन्होंने देखा कि एक बकरी अपने दो बच्चों को बचाने के लिए हिंसक शेर से मुकाबला कर रही थी. कुछ समय बाद अजयभूमि माने जाने वाली इस भूमि पर शेर बकरी से हार गया और वहां से भाग गया.

जहां हुई लड़ाई वहां जमीन से आवाज आई

इस घटना के बाद उन्हें जमीन के नीचे से ईश्वर की गूंज सुनाई दी. जिसकी जानकारी उनके पूर्वजों ने जयपुर के महाराजा जयसिंह व दीवान विद्याधर को बताया, तब महाराज ने दीवान विद्याधर को वहां भेजा. खुदाई के दौरान जमीन में स्वयंभू शिवलिंग निकले, तब दीवान ने ताड़ वृक्षों से आच्छादित भूमि होने के कारण इसे ताड़केश्वर महादेव के नाम से पुकारा और इसी नाम से श्मशान स्थल पर स्वयं दीवान विद्याधर एवं मंत्री कृष्णा राम बंगाली के निर्देशन में ताड़केश्वर मंदिर का निर्माण करवाया.

पढ़ें: स्पेशल रिपोर्ट: राजस्थान का 'शापित' गांव, यहां दो मंजिला मकान बनाने में डरते हैं लोग

उसी वक्त उन्होंने मंदिर के दाईं और अपने नाम से फतहराम बंगाली के निर्देशन में विश्वेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना करवाई. जयपुर स्थापना के बाद दीवान विद्याधर ने आमेर स्थित अंबिकेश्वर महादेव मंदिर से व्यास पुजारी परिवार के सोमेश्वर व्यास पुजारी के साथ 6 परिवार को सेवा पूजा के लिए यहां भेजा. जब से व्यास परिवार ही मंदिर की सेवा पूजा करते आ रहे है.

भोले करते हैं हर मुराद पूरी

ताड़केश्वर महादेव मंदिर में भगवान शिव के दर्शनों के लिए शहरभर से लोग पहुंचते हैं. शिवरात्रि के दिनों में यहां भक्तों का सैलाब उमड़ता है. भक्तों का कहना है कि वे यहां 40 से 50 साल से आ रहे है और जो मनोकामना मांगते है वो भोले के दरबार में पूरी होती है.

जयपुर. राजधानी जयपुर को छोटी काशी कहा जाता है और ये उपाधि यहां भगवान भोलेनाथ के स्थापित मंदिरों से मिली है. जयपुर में महादेव के कई पुराने मंदिर है, लेकिन यहां ताड़केश्वर मंदिर, जयपुर की स्थापना से पहले का है. छोटी काशी जयपुर के चौड़ा रास्ता स्थिति जयपुर स्थापना से पहले का ऐतिहासिक स्वयंभू बाबा ताड़केश्वर नाथ मंदिर तांत्रिक विधि से वास्तुकला पर आधारित है. यह मंदिर सिटी पैलेस और जयपुर के दीवान व मंदिर के निर्माता विद्याधर चक्रवर्ती की हवेली से गोपनीय सुरंगों के जरिए जुड़ा हुआ है.

जयपुर का सबसे प्राचीन ताड़केश्वर महादेव मंदिर

राजतंत्र के समय जयपुर राजपरिवार के सदस्य सुरंग से ही मंदिर में दर्शन के लिए आया करते थे. करीब 5 बीघा में स्थापित इस मंदिर की स्थापना से अभिभूत महाराजा सवाई जयसिंह ने अपने दीवान को 12 गांव जागीर में दिए थे, बाद में दीवान विद्याधर ने मंदिर पूजा के लिए आमेर से बुलाए पुजारी व्यास परिवार को मंदिर की सेवा पूजा व जीवन यापन के लिए उस वक्त के पुजारी सोमेश्वर व्यास और गिरधारी व्यास को मंदिर की जिम्मेदारी सुपुर्द कर दी थी. इस मंदिर में आजादी के बाद तक राजपरिवार के सदस्य अशोक कार्य यही संपन्न करते थे.

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श्मशान भूमि पर बकरी से हारा शेर

मंदिर में आठवीं पीढ़ी के महंत दिनेश व्यास ने बताया कि आमेर राज्य के समय इस स्थान पर ढूंढाड़ गांव बसा हुआ था. जिसके तहत वर्तमान मंदिर के स्थान पर ताड़ वृक्षों के साथ बियाबान जंगल था. उस वक्त मंदिर पुजारी के पूर्वज आमेर से सांगानेर जाते वक्त इस स्थान पर विश्राम किया करते थे. एक बार उन्होंने देखा कि एक बकरी अपने दो बच्चों को बचाने के लिए हिंसक शेर से मुकाबला कर रही थी. कुछ समय बाद अजयभूमि माने जाने वाली इस भूमि पर शेर बकरी से हार गया और वहां से भाग गया.

जहां हुई लड़ाई वहां जमीन से आवाज आई

इस घटना के बाद उन्हें जमीन के नीचे से ईश्वर की गूंज सुनाई दी. जिसकी जानकारी उनके पूर्वजों ने जयपुर के महाराजा जयसिंह व दीवान विद्याधर को बताया, तब महाराज ने दीवान विद्याधर को वहां भेजा. खुदाई के दौरान जमीन में स्वयंभू शिवलिंग निकले, तब दीवान ने ताड़ वृक्षों से आच्छादित भूमि होने के कारण इसे ताड़केश्वर महादेव के नाम से पुकारा और इसी नाम से श्मशान स्थल पर स्वयं दीवान विद्याधर एवं मंत्री कृष्णा राम बंगाली के निर्देशन में ताड़केश्वर मंदिर का निर्माण करवाया.

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उसी वक्त उन्होंने मंदिर के दाईं और अपने नाम से फतहराम बंगाली के निर्देशन में विश्वेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना करवाई. जयपुर स्थापना के बाद दीवान विद्याधर ने आमेर स्थित अंबिकेश्वर महादेव मंदिर से व्यास पुजारी परिवार के सोमेश्वर व्यास पुजारी के साथ 6 परिवार को सेवा पूजा के लिए यहां भेजा. जब से व्यास परिवार ही मंदिर की सेवा पूजा करते आ रहे है.

भोले करते हैं हर मुराद पूरी

ताड़केश्वर महादेव मंदिर में भगवान शिव के दर्शनों के लिए शहरभर से लोग पहुंचते हैं. शिवरात्रि के दिनों में यहां भक्तों का सैलाब उमड़ता है. भक्तों का कहना है कि वे यहां 40 से 50 साल से आ रहे है और जो मनोकामना मांगते है वो भोले के दरबार में पूरी होती है.

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