जयपुर. विलुप्त हो रही प्राचीन लोक परंपराओं के बीच जयपुर का लोकनाट्य तमाशा ने एक बार फिर अपने रंग बिखेरे. 300 सालों के लंबे सफर के बाद आज भी तमाशा जनमानस में अपनी पहचान और लोकप्रियता बनाए हुए हैं. होली के अवसर पर लोगों को रिझाने वाले इस लोकनाट्य में इस बार कोरोना और मोदी सरकार के फैसलों पर व्यंग्य के साथ-साथ दिल्ली चुनाव का भी जिक्र हुआ.
सवाई जयसिंह की बसाई नगरी जयपुर की पारंपरिक सभ्यता होली के मौके पर एक बार फिर मंच पर उकेरी गई. राजा-महाराजाओं के समय से जयपुर में प्रचलित लोकनाट्य तमाशा का मंचन राजधानी के ब्रह्मपुरी क्षेत्र में हुआ. यहां हीर रांझा, राजा गोपीचंद, जोगी जोगन, छैला पणिहारी और लैला मजनू सहित 52 तरह के तमाशे हर साल आयोजित होते आए हैं. जिसमें शास्त्रीय संगीत का तड़का भी लगाया जाता है. कलाकार भट्ट परिवार की सात पीढ़ियां और इसी तरह क्षेत्रीय दर्शकों की भी सात पीढ़ियां इस तमाशा कार्यक्रम से जुड़ी हुई हैं. जो जयपुर की सभ्यता और संस्कृति को आज भी जीवंत किए हुए है.
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बिना किसी तामझाम के, खुले मंच पर होने वाला जयपुर का पारंपरिक लोकनाट्य तमाशा में सिर पर कलंगी वाला मुकुट, भगवा वस्त्र धारण किए हुए, हाथ में मोर पंख, पैरों में घुंघरू बांधकर कलाकार ने एक बार फिर हारमोनियम और तबले की धुन पर स्वर छेड़े. हीर रांझा की कहानी को गीतों की माला में पिरोकर प्रस्तुत किया गया. इस नाट्य के दौरान ही केंद्र की मोदी सरकार के कुछ फैसलों की तारीफ, तो कुछ पर जमकर कटाक्ष भी किया.
वहीं कोरोना का भी जिक्र करते हुए देश में कोरोना से ज्यादा नफरत का वायरस फैलने पर चिंता व्यक्त की और देश में होने वाली वोटों की राजनीति पर भी तंज कसा. सदियों से चली आ रही जयपुर की तमाशा शैली मनोरंजन के बदलते आयामों के बावजूद अपनी आकर्षण शक्ति से जन जुड़ाव का एक सशक्त माध्यम बनी हुई है. जरूरत इस बात की है कि सरकार जयपुर की पहचान को संरक्षण दें.