जयपुर. राजस्थान में जाहरवीर गोगाजी की आस्था अपरंपार है. प्रदेश में कोई इन्हें देवता मानकर पूजता है, तो कोई इन्हें पीर मानकर (Lok Devta Goga Ji) इबादत करता है. पांच पीरों में गोगाजी का महत्वपूर्ण स्थान है. गोगाजी को जाहरपीर (जिंदा पीर) के नाम के साथ ही इन्हें सांपों के देवता के रूप में पूजा जाता है.
राजस्थान का किसान वर्षा के बाद हल जोतने से पहले गोगाजी के नाम की राखी 'गोगा रांखडी' हल और हाली, दोनों को बांधता है. गोगाजी के 'थान' खेजड़ी के वृक्ष के नीचे होते है, जहां मूर्ति स्वरूप एक पत्थर पर सर्प की आकृति अंकित होती है. गोगाजी की मूर्ति गांव में खेजड़ी वृक्ष के नीचे मिलती है, इसलिए राजस्थान में यह कहावत प्रसिद्ध है गांव-गांव खेजड़ी ने, गांव-गांव गोगाजी. गोगाजी की घोड़ी का रंग नीला था. जालोर जिले के सांचौर में गोगाजी का मंदिर है, जिसे गोगाजी की ओल्डी कहा जाता है. इनकी स्मृति में भाद्रपद कृष्ण नवमी (गोगा नवमी) को गोगामेड़ी (नोहर, हनुमानगढ़) में गोगाजी का मेला भरता है.
गोगाजी और गोरक्षनाथ का संबंधः गोरखनाथ जी से सम्बंधित एक कथा राजस्थान में बहुत प्रचलित है. राजस्थान के महापुरुष गोगाजी का जन्म गुरु गोरखनाथ के वरदान से हुआ था. गोगाजी की मां बाछल देवी निःसंतान थीं. संतान प्राप्ति के सभी यत्न करने के बाद भी संतान सुख नहीं मिला. गुरु गोरखनाथ 'गोगामेड़ी' के टीले पर तपस्या कर रहे थे. बाछल देवी उनकी शरण में गईं और गुरु गोरखनाथ ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और एक गुगल नामक फल प्रसाद के रूप में दिया. प्रसाद खाकर बाछल देवी गर्भवती हो गईं और तदुपरांत गोगाजी का जन्म हुआ. गुगल फल के नाम से इनका नाम गोगाजी पड़ा.
इस तरह हुई पीर की पहचानः गोगाजी का अपने मौसेरे भाई अर्जन चौहान व सुर्जन चौहान के साथ कुछ जमीन के शासन को लेकर झगड़ा चल रहा था. अर्जन-सुर्जन इनके खिलाफ मुसलमानों की फौज चढ़ा लाए. इन आक्रामकों ने इनकी गायों को घेर लिया, जिसके प्रतिरोध में गोगाजी ने युद्ध किया. गोगाजी युद्ध में चपल और सिद्ध होने के कारण रणक्षेत्र में हर कहीं दिखाई देते थे. उनके इस रणकौशल को देखकर ही महमूद गजनवी ने कहा था कि यह तो 'जाहीरा पीर' है, अर्थात साक्षात देवता के समान प्रकट होता है. इसलिए ये 'जाहर पीर' के नाम से भी प्रसिद्ध हैं (कुछ लोग जाहर पीर का मतलब भगवान नरसिंह के वीर से जोड़ते हैं).
राजस्थानी लोक कथा अनुसार ये युद्ध भूमि में अपने 47 पुत्रों तथा 60 भतीजों के साथ वीरगति हुए. उत्तर प्रदेश में भी इन्हें 'जाहरपीर' के नाम से जाना जाता है. मुस्लिम इन्हें 'गोगापीर' कहते हैं. ऐसी मान्यता है कि युद्ध भूमि में लड़ते हुए गोगाजी का सिर चूरू जिले के जिस स्थान पर गिरा था वहां 'शीश मेड़ी' और युद्ध करते हुए जहां शरीर गिरा था उसे 'गोगामेड़ी' कहा गया. गोगाजी के जन्म स्थल ददरेवा को 'शीश मेड़ी' तथा समाधि स्थल 'गोगा मेड़ी' (नोहर-हनुमानगढ़) को 'धुरमेड़ी' भी कहते हैं.
यह लोक कथा भी है प्रचलितः हनुमानगढ़ जिले के नोहर के स्थानीय लोगों ने बताया कि गोगाजी के बारे में जो कथा है वह विभिन्न लोकगीतों और गोगाजी के जागरण में भगत समैया द्वारा गाई जाती है. कथा के अनुसार पांडवों में एक पांडव अर्जुन हुए अर्जुन के पुत्र का नाम परीक्षित था. एक बार राजा परीक्षित के सिर पर कलयुग सवार हो गया तब राजा ने कलयुग के प्रभाव में आकर एक ऋषि के गले में मरा हुआ सर्प डाल दिया. जब ऋषि के पुत्र को इस घटना का पता चला उसने राजा को श्राप दे दिया कि जिस किसी ने भी मेरे पिता के गले में मरा हुआ सर्प डाला है, उसको आज से सातवें दिन तक्षक नाग डसेगा.
जब इस बात का पता चला तब राजा परीक्षित ने अपने लिए सात मंजिला महल तैयार करवाया. लेकिन कड़े पहरे के बावजूद भी तक्षक नाग महल में पहुंच गया और राजा को सातवें दिन काट कर आसमान में उड़ गया. जब राजा परीक्षित का पुत्र जन्मेजय राज गद्दी पर बैठा तो उसको पता चला कि उसके पिता को तक्षक ने मारा था. तब उसने सर्पदमन यज्ञ का आयोजन किया. जिसके कारण सारे सांप यज्ञ मे जलकर मरने लगे. बाद में माता मनसा देवी के पुत्र आस्तीक के सतप्रयत्नों से नागों के प्राणों की रक्षा हुई.
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कहते हैं कि जब राजा जन्मेजय की मृत्यु हुई तब नागों ने जनमेजय की आत्मा को पाताल लोक में कैद कर लिया था. कलयुग में जब माता बाछल ने गुरु गोरखनाथ की सेवा की, तब उनकी सेवा से प्रसन्न होकर गुरु गोरखनाथ ने उनको तेजस्वी पुत्र का वरदान देने के लिए पाताल लोक की ओर प्रस्थान किया. जहां से राजा जन्मेजय की आत्मा को गूगल में छुपा कर जाने लगे. कहते हैं तब नाग भी उनका पीछा कर रहे थे, जब गोगा जी धरती पर आए तब भी तक्षक नाग ने उनका पीछा नहीं छोड़ा और उनके हाथ से गूगल छीन कर निगल गया.
कथा के मुताबिक सौभाग्य से वहां पर एक झाड़ू मारने वाला युवक साफ सफाई कर रहा था. जब उसने देखा कि किसी साधु के हाथ से (God of Snakes) नाग ने कुछ वस्तु निगल ली है, तब उसने नाग पर झाड़ू के डंडे से प्रहार किया. जिसके कारण गूगल तक्षक के मुख से नीचे गिर पड़ी. गुरु गोरखनाथ ने गूगल उठाई और और झाड़ू मारने वाले को वरदान भी दिया कि इस गूगल से उत्पन्न बालक बड़ा ही सिद्ध पुरुष होगा, जिसके भजनों को तुम लोग गाया करोगे. ऐसा कहकर गुरु गोरखनाथ वहां से अंतर्ध्यान हो गए. तक्षक नाग भी निराश होकर पाताल को लौट गया. इस प्रकार राजा जन्मेजय ही गोगाजी के नाम से विख्यात हुए.
लोक देवता गोगाजी का विवाहः गोगाजी की पत्नी का नाम कैलमदे (मेनल) था. कैलमदे बूडोजी की लड़की व कोलूमंड की राजकुमारी थी. लेकिन विवाह से पूर्व (History of Goga Medi Rajasthan) कैलमदे को सांप ने डंस लिया. तब गोगाजी ने मंत्र पढे़ व नाग कढ़ाई में आकर मरने लगा, तब स्वयं नाग देवता प्रकट हुए और कैलमदे के जहर को निकाला. साथ ही गोगाजी को नागों का देवता होने का वरदान दे गए. इसलिए सर्प दंश के लिए गोगाजी का आह्वान किया जाता है.
गोगाजी का गजनवी से युद्ध : कर्नल जेम्स टॉड की ओर से लिखी किताब के मुताबिक गोगाजी ने अपने 47 पुत्रों के साथ सतलज नदी पार करते हुए महमूद गजनवी से युद्ध किया था. गोगाजी महमूद गजनवी के साथ युद्ध करते हुए अपने 47 पुत्र और 60 भतीजों के साथ सारे परिवार ने प्राणों की आहुति दी. गोगामेड़ी (धूरमेड़ी) जहां वीर गोगाजी का शरीर युद्ध करते हुए गिरा था, वहां आज भी इनकी समाधि स्थित है. यह स्थान राजस्थान के हनुमानगढ जिले के नोहर तहसील में है. यहां पर प्रसिद्ध 'गोरख तालाब' भी स्थित है.
लोक देवता गोगाजी समाधी स्थल गोगामेड़ी :
- राजस्थान के हनुमानगढ जिले के नोहर तहसील में गोगामेड़ी स्थित है.
- हिन्दू-मुस्लिम एकता एवं संस्कृतियों के आपसी-समन्वय की दृष्टि से गोगाजी का विशेष महत्व है.
- ददरेवा (चूरू) में स्थित गोगाजी की मेड़ी को सिद्धमेड़ी (शीशमेड़ी) कहा जाता है.
- उत्तर प्रदेश में मुस्लिम समुदाय गोगाजी को (जाहर पीर) के रूप में पूजते हैं.
- गोगाजी (गुगो) के प्रचलित नाम का शाब्दिक अर्थ है. गुगो का प्रथम अक्षर गु-गुरू का तथा गो अक्षर गोरखनाथ का द्योतक है.
- गोगाजी की घोड़ी नीली घोड़ी जिसे 'गोगा बापा' कहते हैं.
- गोगामेड़ी के चारों तरफ जंगल को गोगाजी की 'मणी रोपण' एवं 'जोड़' के नाम से पुकारा जाता है.
- गोगाजी की ओल्डी (झोपड़ी) की स्थापना पाटम के दो भाइयों की ओर से की गई. केरियां गांव के राजाराम कुम्हार ने यहां मंदिर का निर्माण किया.
- गोगाजी के भोपे डेरू वाद्ययन्त्र का प्रयोग करते हैं.
- गोगामेड़ी में भाद्रपद मास में हिन्दु पुजारी पूजा करते हैं तथा अन्य महीनों में मुस्लिम पुजारी पूजा करते हैं. मुस्लिम पुजारी को क्रो चायल कहा जाता है.