जयपुर. चुनावों का नाम आए और ये कहा जाए कि बिना पैसे चुनाव लड़ा जा रहा है तो शायद आप इसको मजाक ही नहीं समझोगे. बल्कि इस पर विश्वास भी कम ही करोगे. छात्रसंघ चुनावों में भी यह हाल है. जहां पर चुनाव लाखों तक पहुंचते हैं. गाड़ियों का लवाजमा, चुनावी दिनों में चलता भंडारा और चुनावी टीम के लिए प्रत्याशी को लाखों खर्च करने पड़ते हैं. जोकि एक विधायक के चुनाव से कम नहीं पड़ता. लेकिन इसके विपरीत एक कॉलेज की तस्वीर आपको दिखाते हैं जो कि इन सब के विपरीत तो हैं ही साथ ही दूसरे चुनावों के लिए एक सबक भी है.
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यह मिसाल पेश की है जयपुर की कनोडिया कॉलेज ने. जहां चुनाव तो हो रहे हैं लेकिन ना कैंपस बदरंग है और ना ही गाड़ियों का लवाजमा और नहीं कोई प्रत्याशी और उनके समर्थकों का हंगामा. लेकिन फिर भी यहां हर साल बेहद शांतिपूर्ण तरीके से छात्र संघ के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव, संयुक्त सचिव के पदों के चुनाव होते है. यहां चुनाव के कारण कॉलेज में पढ़ाई भी बाधित नहीं होती और इसकी वजह से यहां पर लिंगदोह की सिफारिशों के तहत प्रत्याशी हैंडमेड पोस्टर से प्रचार कर रहे है. निर्धारित जगह पर पोस्टर लगाए हैं और स्टूडेंट तक पहुंचकर कैंपस के मुद्दे भी बता रहे है.
दरअसल, छात्र संघ चुनाव में पैसे की बर्बादी को लेकर लिंग दोह सिफारिशों को लाया गया. जिसमें चुनाव लड़ने के लिए 5 हजार रुपए तक की लिमिट की गई. लेकिन इन दिनों राजस्थान यूनिवर्सिटी के छात्र संघ चुनावों को देखा जाए तो यहां पर चुनाव लाखों से नीचे नहीं जाता. कहीं चुनाव की गणित तो 50 लाख से भी ज्यादा है. लेकिन प्रशासन भी इन पर आंखें मूंदकर चलने देते है. चुनाव बाद 5 हजार रुपए की राशि में ही चुनाव लड़ने की गणित के कागज को सही भी माना जाता है. लेकिन इस बीच सवाल यह है कि क्या एक स्टूडेंट इस तरह से चुनाव में 5 हजार में 50 गाड़ियों का लवाजमा, टीम का भंडारा, बैनर पोस्टर के खर्च के साथ-साथ कई खर्चे कैसे करता है. यहां तक मानते हैं कि 5 हजार रुपए में चुनावों की चाय तक संभव नहीं है.
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लेकिन कॉलेज प्राचार्य ने बताया कि उनकी कॉलेज में 100 रुपए में नामांकन लिए जाते हैं. जिसमें ही चुनाव होते है. स्टूडेंट तो 50 रुपए की सामग्री में ही चुनाव लड़ लेते है. कॉलेज में 6300 स्टूडेंट है. जिनमें कक्षा प्रतिनिधि चुनाव होते हैं और फिर वह अपनी टीम में से ही अपैक्स पदों के लिए चयन करते है. कॉलेज प्रशासन की मानें तो इस तरह के चुनाव कराने के बाद ना तो कागज की बर्बादी हुई और ना ही पर्यावरण को कोई नुकसान हुआ. हालांकि चुनावी मुद्दा एक बड़ी बहस का विषय रह चुका है लेकिन इसमें छात्र संघ चुनाव में हो रहे धनबल के प्रयोग को रोकने पर प्रशासन को जरूर विचार करना होगा.