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छात्र संघ चुनाव 2019: जयपुर के इस कॉलेज में 100 रुपए में लड़ा जा रहा चुनाव

छात्रसंघ चुनावों का शोर कैंपस और शहरों में सुनने को मिल रहा है. विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में चुनाव की गर्मजोशी खूब दिख रही है. नारेबाजी के हंगामे, प्रचार का शोरगुल, बैनर पोस्टर से बदरंग होते कैंपस, ऐसी तस्वीरें हर जगह देखने को मिलेगी. लेकिन इन तस्वीरों से ठीक उलट राजधानी में एक कॉलेज ऐसा भी है. जहां चुनाव तो है लेकिन हंगामा शोर-शराबा और नारेबाजी गायब है. यहां पर 100 रुपए में पूरा चुनाव लड़ा जा रहा है. देखिए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.

Kanodia College jaipur,कनोडिया कॉलेज जयपुर
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Published : Aug 24, 2019, 10:39 PM IST

जयपुर. चुनावों का नाम आए और ये कहा जाए कि बिना पैसे चुनाव लड़ा जा रहा है तो शायद आप इसको मजाक ही नहीं समझोगे. बल्कि इस पर विश्वास भी कम ही करोगे. छात्रसंघ चुनावों में भी यह हाल है. जहां पर चुनाव लाखों तक पहुंचते हैं. गाड़ियों का लवाजमा, चुनावी दिनों में चलता भंडारा और चुनावी टीम के लिए प्रत्याशी को लाखों खर्च करने पड़ते हैं. जोकि एक विधायक के चुनाव से कम नहीं पड़ता. लेकिन इसके विपरीत एक कॉलेज की तस्वीर आपको दिखाते हैं जो कि इन सब के विपरीत तो हैं ही साथ ही दूसरे चुनावों के लिए एक सबक भी है.

पढ़ें- छात्र संघ चुनाव 2019: जोधपुर में अनुच्छेद 370 को लेकर वोट मांग रहे ABVP प्रत्याशी

यह मिसाल पेश की है जयपुर की कनोडिया कॉलेज ने. जहां चुनाव तो हो रहे हैं लेकिन ना कैंपस बदरंग है और ना ही गाड़ियों का लवाजमा और नहीं कोई प्रत्याशी और उनके समर्थकों का हंगामा. लेकिन फिर भी यहां हर साल बेहद शांतिपूर्ण तरीके से छात्र संघ के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव, संयुक्त सचिव के पदों के चुनाव होते है. यहां चुनाव के कारण कॉलेज में पढ़ाई भी बाधित नहीं होती और इसकी वजह से यहां पर लिंगदोह की सिफारिशों के तहत प्रत्याशी हैंडमेड पोस्टर से प्रचार कर रहे है. निर्धारित जगह पर पोस्टर लगाए हैं और स्टूडेंट तक पहुंचकर कैंपस के मुद्दे भी बता रहे है.

जयपुर के इस कॉलेज में 100 रुपए में लड़ा जा रहा चुनाव

दरअसल, छात्र संघ चुनाव में पैसे की बर्बादी को लेकर लिंग दोह सिफारिशों को लाया गया. जिसमें चुनाव लड़ने के लिए 5 हजार रुपए तक की लिमिट की गई. लेकिन इन दिनों राजस्थान यूनिवर्सिटी के छात्र संघ चुनावों को देखा जाए तो यहां पर चुनाव लाखों से नीचे नहीं जाता. कहीं चुनाव की गणित तो 50 लाख से भी ज्यादा है. लेकिन प्रशासन भी इन पर आंखें मूंदकर चलने देते है. चुनाव बाद 5 हजार रुपए की राशि में ही चुनाव लड़ने की गणित के कागज को सही भी माना जाता है. लेकिन इस बीच सवाल यह है कि क्या एक स्टूडेंट इस तरह से चुनाव में 5 हजार में 50 गाड़ियों का लवाजमा, टीम का भंडारा, बैनर पोस्टर के खर्च के साथ-साथ कई खर्चे कैसे करता है. यहां तक मानते हैं कि 5 हजार रुपए में चुनावों की चाय तक संभव नहीं है.

पढ़ें- छात्र संघ चुनाव जीतने के बाद भी छात्रों के लिए 365 दिन संघर्ष करूंगा: NSUI प्रत्याशी

लेकिन कॉलेज प्राचार्य ने बताया कि उनकी कॉलेज में 100 रुपए में नामांकन लिए जाते हैं. जिसमें ही चुनाव होते है. स्टूडेंट तो 50 रुपए की सामग्री में ही चुनाव लड़ लेते है. कॉलेज में 6300 स्टूडेंट है. जिनमें कक्षा प्रतिनिधि चुनाव होते हैं और फिर वह अपनी टीम में से ही अपैक्स पदों के लिए चयन करते है. कॉलेज प्रशासन की मानें तो इस तरह के चुनाव कराने के बाद ना तो कागज की बर्बादी हुई और ना ही पर्यावरण को कोई नुकसान हुआ. हालांकि चुनावी मुद्दा एक बड़ी बहस का विषय रह चुका है लेकिन इसमें छात्र संघ चुनाव में हो रहे धनबल के प्रयोग को रोकने पर प्रशासन को जरूर विचार करना होगा.

जयपुर. चुनावों का नाम आए और ये कहा जाए कि बिना पैसे चुनाव लड़ा जा रहा है तो शायद आप इसको मजाक ही नहीं समझोगे. बल्कि इस पर विश्वास भी कम ही करोगे. छात्रसंघ चुनावों में भी यह हाल है. जहां पर चुनाव लाखों तक पहुंचते हैं. गाड़ियों का लवाजमा, चुनावी दिनों में चलता भंडारा और चुनावी टीम के लिए प्रत्याशी को लाखों खर्च करने पड़ते हैं. जोकि एक विधायक के चुनाव से कम नहीं पड़ता. लेकिन इसके विपरीत एक कॉलेज की तस्वीर आपको दिखाते हैं जो कि इन सब के विपरीत तो हैं ही साथ ही दूसरे चुनावों के लिए एक सबक भी है.

पढ़ें- छात्र संघ चुनाव 2019: जोधपुर में अनुच्छेद 370 को लेकर वोट मांग रहे ABVP प्रत्याशी

यह मिसाल पेश की है जयपुर की कनोडिया कॉलेज ने. जहां चुनाव तो हो रहे हैं लेकिन ना कैंपस बदरंग है और ना ही गाड़ियों का लवाजमा और नहीं कोई प्रत्याशी और उनके समर्थकों का हंगामा. लेकिन फिर भी यहां हर साल बेहद शांतिपूर्ण तरीके से छात्र संघ के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव, संयुक्त सचिव के पदों के चुनाव होते है. यहां चुनाव के कारण कॉलेज में पढ़ाई भी बाधित नहीं होती और इसकी वजह से यहां पर लिंगदोह की सिफारिशों के तहत प्रत्याशी हैंडमेड पोस्टर से प्रचार कर रहे है. निर्धारित जगह पर पोस्टर लगाए हैं और स्टूडेंट तक पहुंचकर कैंपस के मुद्दे भी बता रहे है.

जयपुर के इस कॉलेज में 100 रुपए में लड़ा जा रहा चुनाव

दरअसल, छात्र संघ चुनाव में पैसे की बर्बादी को लेकर लिंग दोह सिफारिशों को लाया गया. जिसमें चुनाव लड़ने के लिए 5 हजार रुपए तक की लिमिट की गई. लेकिन इन दिनों राजस्थान यूनिवर्सिटी के छात्र संघ चुनावों को देखा जाए तो यहां पर चुनाव लाखों से नीचे नहीं जाता. कहीं चुनाव की गणित तो 50 लाख से भी ज्यादा है. लेकिन प्रशासन भी इन पर आंखें मूंदकर चलने देते है. चुनाव बाद 5 हजार रुपए की राशि में ही चुनाव लड़ने की गणित के कागज को सही भी माना जाता है. लेकिन इस बीच सवाल यह है कि क्या एक स्टूडेंट इस तरह से चुनाव में 5 हजार में 50 गाड़ियों का लवाजमा, टीम का भंडारा, बैनर पोस्टर के खर्च के साथ-साथ कई खर्चे कैसे करता है. यहां तक मानते हैं कि 5 हजार रुपए में चुनावों की चाय तक संभव नहीं है.

पढ़ें- छात्र संघ चुनाव जीतने के बाद भी छात्रों के लिए 365 दिन संघर्ष करूंगा: NSUI प्रत्याशी

लेकिन कॉलेज प्राचार्य ने बताया कि उनकी कॉलेज में 100 रुपए में नामांकन लिए जाते हैं. जिसमें ही चुनाव होते है. स्टूडेंट तो 50 रुपए की सामग्री में ही चुनाव लड़ लेते है. कॉलेज में 6300 स्टूडेंट है. जिनमें कक्षा प्रतिनिधि चुनाव होते हैं और फिर वह अपनी टीम में से ही अपैक्स पदों के लिए चयन करते है. कॉलेज प्रशासन की मानें तो इस तरह के चुनाव कराने के बाद ना तो कागज की बर्बादी हुई और ना ही पर्यावरण को कोई नुकसान हुआ. हालांकि चुनावी मुद्दा एक बड़ी बहस का विषय रह चुका है लेकिन इसमें छात्र संघ चुनाव में हो रहे धनबल के प्रयोग को रोकने पर प्रशासन को जरूर विचार करना होगा.

Intro:जयपुर- छात्रसंघ चुनावों का शोर कैंपस और शहरों में सुनने को मिल रहा है। विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में चुनाव की गर्मजोशी खूब दिख रही है। नारेबाजी के हंगामे, प्रचार का शोरगुल, बैनर पोस्टर से बदरंग होते कैंपस, ऐसी तस्वीरें हर जगह देखने को मिलेगी लेकिन इन तस्वीरों से ठीक उलट राजधानी में एक कॉलेज ऐसा भी है जहां चुनाव तो है लेकिन हंगामा शोर-शराबा और नारेबाजी गायब है। यहां पर 100 रुपए में पूरा चुनाव लड़ा जा रहा है। पेश है ईटीवी भारत की यह खास रिपोर्ट।


Body:चुनावों का नाम आए और ये कहा जाए कि बिना पैसे चुनाव लड़ा जा रहा है तो शायद आप इसको मजाक ही नहीं समझोगे बल्कि इस पर विश्वास भी कम ही करोगे और शायद आज के इस बदलते युग में राजनीति दल भी उसी को टिकट देते हैं जिसके पास टीम के साथ पैसों का बंदोबस्त होता है। छात्रसंघ चुनावों में भी यह हाल है जहां पर चुनाव लाखों तक पहुंचते हैं, गाड़ियों का लवाजमा, चुनावी दिनों में चलता भंडारा और चुनावी टीम के लिए प्रत्याशी को लाखों खर्च करने पड़ते हैं, जोकि एक विधायक के चुनाव से कम नहीं पड़ता। लेकिन इसके विपरीत एक कॉलेज की तस्वीर आपको दिखाते हैं जो कि इन सब के विपरीत तो हैं ही साथ ही दूसरे चुनावों के लिए एक सबक भी है। यह मिसाल पेश की है जयपुर की कनोडिया कॉलेज ने जहां चुनाव तो हो रहे हैं लेकिन ना कैंपस बदरंग है और ना ही गाड़ियों का लवाजमा और नहीं कोई प्रत्याशी और उनके समर्थकों का हंगामा लेकिन फिर भी यहां हर साल बेहद शांतिपूर्ण तरीके से छात्र संघ के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव, संयुक्त सचिव के पदों के चुनाव होते है। यहां चुनाव के कारण कॉलेज में पढ़ाई भी बाधित नहीं होती और इसकी वजह से यहां पर लिंगदोह की सिफारिशों के तहत प्रत्याशी हैंडमेड पोस्टर से प्रचार कर रहे है। निर्धारित जगह पर पोस्टर लगाए हैं और स्टूडेंट तक पहुंचकर कैंपस के मुद्दे भी बता रहे है।

दरअसल, छात्र संघ चुनाव में पैसे की बर्बादी को लेकर लिंग दोह सिफारिशों को लाया गया जिसमें चुनाव लड़ने के लिए 5 हजार रुपए तक की लिमिट की गई। लेकिन इन दिनों राजस्थान यूनिवर्सिटी के छात्र संघ चुनावों को देखा जाए तो यहां पर चुनाव लाखों से नीचे नहीं जाता। कहीं चुनाव की गणित तो 50 लाख से भी ज्यादा है लेकिन प्रशासन भी इन पर आंखें मूंदकर चलने देते है। चुनाव बाद 5 हजार रुपए की राशि में ही चुनाव लड़ने की गणित के कागज को सही भी माना जाता है लेकिन इस बीच सवाल यह है कि क्या एक स्टूडेंट इस तरह से चुनाव में 5हजार में 50 गाड़ियों का लवाजमा, टीम का भंडारा, बैनर पोस्टर के खर्च के साथ-साथ कई खर्चे कैसे करता है। यहां तक मानते हैं कि 5 हजार रुपए में चुनावों की चाय तक संभव नहीं है लेकिन कॉलेज प्राचार्य ने बताया कि उनकी कॉलेज में 100 रुपए में नामांकन लिए जाते हैं जिसमें ही चुनाव होते है। स्टूडेंट तो 50 रुपए की सामग्री में ही चुनाव लड़ लेते है। कॉलेज में 6300 स्टूडेंट है जिनमें कक्षा प्रतिनिधि चुनाव होते हैं और फिर वह अपनी टीम में से ही अपैक्स पदों के लिए चयन करते है। कॉलेज प्रशासन की मानें तो इस तरह के चुनाव कराने के बाद ना तो कागज की बर्बादी हुई और ना ही पर्यावरण को कोई नुकसान हुआ।


Conclusion:हालांकि चुनावी मुद्दा एक बड़ी बहस का विषय रह चुका है लेकिन इसमें छात्र संघ चुनाव में हो रहे धनबल के प्रयोग को रोकने पर प्रशासन को जरूर विचार करना होगा।

बाईट- छात्रों की बाईट
बाईट- सीमा अग्रवाल, प्राचार्य, कनोडिया कॉलेज
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