जयपुर. राजस्थान में हर किसी की नजर इस बात पर टिकी हुई है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कब राजस्थान में मंत्रिमंडल का विस्तार या फिर फेरबदल करते हैं. मंत्रिमंडल के फेरबदल को लेकर कहा जा रहा है कि एक बार सभी मंत्रियों का इस्तीफा लिया जाएगा और नए सिरे से कैबिनेट का पुनर्गठन किया जाएगा.
हालांकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कैबिनेट में पुनर्गठन की जगह विस्तार चाहते हैं. यही कारण है कि हरियाणा कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष कुमारी शैलजा अचानक जयपुर आईं और सोनिया गांधी का संदेश मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को देकर दिल्ली लौट गईं. कहा जा रहा है कि गहलोत कैबिनेट में शामिल 20 मंत्रियों में से 10 मंत्री हटाए जा सकते हैं. हालांकि 10 में से 5 या 6 मंत्रियों को कमजोर परफॉर्मेंस के कारण नहीं, बल्कि कामराज फॉर्मूले के तहत हटाया जा सकता है.
कांग्रेस पार्टी चाहती है कि मजबूत मंत्रियो का इस्तेमाल संगठन में किया जाए और संगठन को मजबूत बनाया जाए. यही कारण है कि राजस्थान में अब कामराज फॉर्मूला लागू करने की कवायद चल रही है.
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कामराज फॉर्मूला क्या है ?
मद्रास राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री रहे कुमारास्वामी कामराज ने 1960 के दशक में कांग्रेस के संगठन में सुधार के लिए कामराज योजना प्रस्तुत की थी. इसके तहत पार्टी के ताकतवर मंत्रियों को संगठन के लिए काम करने की सलाह दी गई थी. यहां तक कि मुख्यमंत्री को भी अपना पद छोड़कर संगठन के काम करने की सलाह दी गई थी.
इस योजना के तहत खुद कामराज ने तो इस्तीफा दिया ही, उनके साथ ही लाल बहादुर शास्त्री, जगजीवन राम, मोरारजी देसाई जैसे नेताओं ने भी अपने पदों से इस्तीफा दे दिया. इस फार्मूले के तहत कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए वे इतने मजबूत हो गए कि उन्हें कांग्रेस का किंगमेकर कहा जाने लगा. कुमारास्वामी कामराज ने बतौर किंगमेकर अपने इस फॉर्मूले से लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाया.
राजस्थान में कद्दावर मंत्रियों की संगठन में एंट्री क्यों जरूरी ?
मंत्रियों को संगठन में शामिल करने की बात उठ रही है. क्योंकि राजस्थान में भले ही कांग्रेस पार्टी सरकार बनाने में सफल रही हो, लेकिन सरकार बनने के बाद ही लोकसभा चुनाव में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत सकी. वजह ये रही कि विधानसभा चुनाव में जो नेता संगठन में बड़ी भूमिकाओं में थे, वे सब मंत्री बन गए थे. ऐसे में संगठन कमजोर हुआ और लोकसभा चुनाव में इसका नुकसान उठाना पड़ा.
अब पार्टी चाहती है कि 2023 में राजस्थान में सरकार रिपीट हो. साथ ही 2024 के लोकसभा चुनाव में भी पार्टी मजबूत प्रदर्शन करे. ऐसे में कैबिनेट में शामिल मजबूत नेताओं को संगठन की जिम्मेदारी दी जाएगी. ताकि वे चुनाव जिताने में जोर लगाएं.
ये नेता संगठन में होंगे फिट, छोड़ेंगे मंत्री पद
गोविंद सिंह डोटासरा- डोटासरा शिक्षा मंत्री रहते हुए प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए. उन्हें अध्यक्ष बने 1 साल हो चुका है. लेकिन एक साथ दो जिम्मेदारियों के कारण वे संगठन पर ध्यान नहीं दे पा रहे. यही कारण है कि अब तक राजस्थान कांग्रेस के संगठन का विस्तार नहीं हो सका है. ऐसे में अब गोविंद डोटासरा को शिक्षा मंत्री की जिम्मेदारी से मुक्त किया जा सकता है. वे इस तरह की इच्छा जाहिर भी कर चुके हैं.
हरीश चौधरी- हरीश चौधरी को हमेशा से ही संगठन का नेता माना जाता रहा है. मंत्री बनने से पहले वे ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी में सचिव रह चुके हैं. साथ ही पंजाब कांग्रेस के सह प्रभारी के तौर पर उन्होंने बेहतरीन काम किया. मंत्री रहते हुए भी हरीश चौधरी कई बार यह बात कह चुके हैं कि वे सरकार से ज्यादा संगठन के लिए काम करना पसंद करते हैं. ऐसे में हरीश चौधरी को संगठन में लेते हुए राजस्थान के मंत्री पद की जिम्मेदारी से मुक्त किया जा सकता है. हरीश चौधरी के पुराने अनुभव को देखते हुए उन्हें ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी में पद देकर किसी चुनावी राज्य की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है.
प्रताप सिंह खाचरियावास- परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास मंत्री बनने से पहले जयपुर कांग्रेस के जिला अध्यक्ष थे. वे अपनी आक्रामक कार्यशैली के लिए जाने जाते हैं. माना जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी प्रताप सिंह को भी संगठन में इस्तेमाल करना चाहती है. यही कारण है कि प्रताप सिंह को या तो राजस्थान कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जाएगा या फिर उन्हें प्रवक्ता बनाकर राष्ट्रीय कांग्रेस की उस टीम में शामिल किया जाएगा जो केंद्र की मोदी सरकार पर सबसे ज्यादा हमलावर रहती है.
रघु शर्मा- राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा की काबिलियत को भी कांग्रेस पार्टी संगठन में इस्तेमाल करना चाहती है. रघु शर्मा उन विरले नेताओं में शामिल हैं जो उपचुनाव में ही सही लेकिन पिछ्ले 10 साल में कांग्रेस के लोकसभा सांसद बने. रघु शर्मा को युवक कांग्रेस चलाने का अनुभव भी है. कई राज्यों में उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से भूमिका भी निभाई है.
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अशोक चांदना- राहुल गांधी के युवक कांग्रेस में इलेक्शन के फार्मूले से अगर कोई राजस्थान में नेता उभर कर आया है तो वह है अशोक चांदना. वे लगातार 7 साल तक राजस्थान युवा कांग्रेस के अध्यक्ष रहे और सड़कों पर जिस तरीके से उन्होंने संघर्ष किया वह सबके सामने है. खेल मंत्री के तौर पर भी अशोक चांदना का परफॉर्मेंस बेहतरीन रहा. चांदना के हटने के बाद 1 साल में ही यूथ कांग्रेस को तीन अध्यक्ष बदलने पड़े. अब कहा जा रहा है कि अशोक चांदना को संगठन में युवाओं को पार्टी के साथ जोड़ने की जिम्मेदारी के साथ संगठन में बड़ी भूमिका दी जा सकती है.
ममता भूपेश- गहलोत कैबिनेट में शामिल एक मात्र महिला मंत्री ममता भूपेश को भी पार्टी संगठन में इस्तेमाल करना चाहती है. ममता भूपेश संगठन चलाने का अनुभव रखती हैं. ऐसे में राजस्थान की इस तेज-तर्रार महिला मंत्री को कांग्रेस पार्टी संगठन में शामिल कर सकती है.
प्रमोद जैन भाया- खनन मंत्री प्रमोद जैन भाया भले ही अवैध खनन के मामले में अपनी ही पार्टी के विधायकों के सवालों के कटघरे में खड़े हों, लेकिन भाया सरकार के विश्वस्त मंत्रियों में से एक हैं. उनके संगठन में काम करने की काबिलियत किसी से छिपी नहीं है. बारां-झालावाड़ से राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के सामने अगर कोई चेहरा कांग्रेस पार्टी का टिक पाता है तो वह प्रमोद जैन भाया ही हैं. ऐसे में उनकी संगठन की क्षमता को देखते हुए प्रमोद जैन भाया को भी संगठन में एंट्री दी जा सकती है.
लाल चंद कटारिया - राजस्थान के कृषि मंत्री लालचंद कटारिया खुद यह चाहते हैं कि उन्हें संगठन में काम करने का मौका मिले. लालचंद कटारिया वह मंत्री हैं जो खुद एक बार मुख्यमंत्री को मंत्री पद से इस्तीफा सौंप चुके हैं.