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जयपुर में धूमधाम से मनाई गई जलझूलनी एकादशी, आमेर में निकली भव्य शोभायात्रा

राजधानी जयपुर में जलझूलनी एकादशी का पर्व बड़े धूमधाम के साथ मनाया गया. जलझूलनी एकादशी के अवसर पर आमेर में भव्य शोभायात्रा निकाली गई. शोभायात्रा शाही लवाजमे के साथ कुंडा तिराहे से शुरु होकर आमेर मावठा पर पहुंची.

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Published : Sep 9, 2019, 11:52 PM IST

Updated : Sep 10, 2019, 1:58 AM IST

जयपुर. जलझूलनी एकादशी के पावन अवसर पर आमेर में भव्य शोभायात्रा निकाली गई. शोभायात्रा शाही लवाजमे के साथ निकाली गई. जहां जगह-जगह पुष्प वर्षा कर शोभायात्रा का स्वागत किया गया. बता दें कि ध्वज पूजन के साथ शोभायात्रा का शुभारंभ हुआ.

शोभायात्रा में विभिन्न प्रकार की जीवंत झांकियां देखने को मिली. शोभायात्रा में महिला-पुरुष ढोल बाजे की धुन पर नाचते गाते और जय श्रीराम के जयकारे लगाते शामिल हुए. इससे पूर्व विधि-विधान के साथ शोभायात्रा की पूजा-अर्चना की गई. शोभायात्रा में भगवान शिव का भव्य श्रंगार कर रंग-बिरंगे फूलों और बर्फ से भव्य झांकी सजाई गई.

जयपुर में धूमधाम से मनाई गई जलझूलनी एकादशी

शोभायात्रा में भक्तों की भारी भीड़ को देखते हुए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए. जगह-जगह पर पुलिस के जवान तैनात किए गए ताकि किसी भी प्रकार से भक्तों को परेशानियों का सामना नहीं करना पड़े. बता दें कि भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जलझूलनी एकादशी व्रत किया जाता है. इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु-लक्ष्मी का श्रृंगार करके खूबसूरत डोले में सजाकर यात्रा निकाली जाती है. इसलिए इसे डोल ग्यारस कहा जाता है.

यह भी पढ़ें : 84 दंगा मामला: कमलनाथ की बढ़ सकती हैं मुश्किलें, SIT दोबारा करेगी जांच

शास्त्रों के अनुसार इस एकादशी का सर्वाधिक महत्व है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु और उनके आठवें अवतार भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा की जाती है. कहा जाता है कि इस दिन माता यशोदा का जलवा पूजन किया गया था. इसे परिवर्तनी एकादशी भी कहा जाता है क्योंकि चातुर्मास के दौरान अपने शयनकाल में इस दिन भगवान विष्णु करवट बदलते हैं.

जयपुर. जलझूलनी एकादशी के पावन अवसर पर आमेर में भव्य शोभायात्रा निकाली गई. शोभायात्रा शाही लवाजमे के साथ निकाली गई. जहां जगह-जगह पुष्प वर्षा कर शोभायात्रा का स्वागत किया गया. बता दें कि ध्वज पूजन के साथ शोभायात्रा का शुभारंभ हुआ.

शोभायात्रा में विभिन्न प्रकार की जीवंत झांकियां देखने को मिली. शोभायात्रा में महिला-पुरुष ढोल बाजे की धुन पर नाचते गाते और जय श्रीराम के जयकारे लगाते शामिल हुए. इससे पूर्व विधि-विधान के साथ शोभायात्रा की पूजा-अर्चना की गई. शोभायात्रा में भगवान शिव का भव्य श्रंगार कर रंग-बिरंगे फूलों और बर्फ से भव्य झांकी सजाई गई.

जयपुर में धूमधाम से मनाई गई जलझूलनी एकादशी

शोभायात्रा में भक्तों की भारी भीड़ को देखते हुए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए. जगह-जगह पर पुलिस के जवान तैनात किए गए ताकि किसी भी प्रकार से भक्तों को परेशानियों का सामना नहीं करना पड़े. बता दें कि भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जलझूलनी एकादशी व्रत किया जाता है. इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु-लक्ष्मी का श्रृंगार करके खूबसूरत डोले में सजाकर यात्रा निकाली जाती है. इसलिए इसे डोल ग्यारस कहा जाता है.

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शास्त्रों के अनुसार इस एकादशी का सर्वाधिक महत्व है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु और उनके आठवें अवतार भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा की जाती है. कहा जाता है कि इस दिन माता यशोदा का जलवा पूजन किया गया था. इसे परिवर्तनी एकादशी भी कहा जाता है क्योंकि चातुर्मास के दौरान अपने शयनकाल में इस दिन भगवान विष्णु करवट बदलते हैं.

Intro:जयपुर
एंकर- राजधानी जयपुर में जलझूलनी एकादशी का पर्व बड़े धूमधाम के साथ मनाया गया। जलझूलनी एकादशी के अवसर पर आमेर में भव्य शोभायात्रा निकाली गई। शोभायात्रा शाही लवाजमे के साथ कुंडा तिराहे से शुरु होकर आमेर मावठा पर पहुची। जगह-जगह पुष्प वर्षा कर शोभायात्रा का स्वागत किया गया। ध्वज पूजन के साथ शोभायात्रा का शुभारंभ हुआ। Body:शोभायात्रा में विभिन्न प्रकार की जीवंत झांकियां देखने को मिली। शोभायात्रा में महिला- पुरुष ढोल बजे की धुन पर नाचते गाते जय श्रीराम के जयकारे लगाते शामिल हुए। और झाँकिया को लेकर मावठे तक पहुंचे। इससे पूर्व विधि-विधान के साथ शोभायात्रा की पूजा-अर्चना की गई। शोभायात्रा में भगवान शिव का भव्य श्रंगार कर रंग-बिरंगे फूलों और बर्फ से भव्य झांकी सजाई गई। शोभायात्रा में भक्तों की भारी भीड़ को देखते हुए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए। जगह-जगह पर पुलिस के जवान तैनात किए गए ताकि किसी भी प्रकार से भक्तों को परेशानियों का सामना नहीं करना पड़े।

भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जलझूलनी एकादशी व्रत किया जाता है। इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु-लक्ष्मी का श्रृंगार करके खूबसूरत डोले में सजाकर यात्रा निकाली जाती है। इसलिए इसे डोल ग्यारस कहा जाता है। शास्त्रों में इस एकादशी का सर्वाधिक महत्व है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु और उनके आठवें अवतार भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा की जाती है। कहा जाता है इस दिन माता यशोदा का जलवा पूजन किया गया था। इसे परिवर्तनी एकादशी भी कहा जाता है क्योंकि चातुर्मास के दौरान अपने शयनकाल में इस दिन भगवान विष्णु करवट बदलते हैं।
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Last Updated : Sep 10, 2019, 1:58 AM IST
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