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Jal Jhulni Ekadashi 2022: ठाकुर जी को डोल में विराजमान कर निकाली गई यात्राएं, जलाशयों में कराया गया स्नान

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Published : Sep 7, 2022, 11:12 PM IST

जयपुर में बुधवार को जलझूलनी एकादशी पर ठाकुर जी को डोल में विराजमान कर शोभायात्राएं निकाली (Procession on Jal Jhulni Ekadashi) गई. इस दौरान ठाकुर जी को नौका विहार और स्नान कराया गया. वैष्णव संप्रदाय के अनुयायियों ने जलझूलनी एकादशी पर व्रत भी रखा. शहर के कई मंदिरों में झांकियों, शोभायात्रा सहित कई धार्मिक आयोजन किए गए.

Jal Jhulni Ekadashi celebrated in Jaipur, procession and other religious activities done in temples
Jal Jhulni Ekadashi 2022: ठाकुर जी को डोल में विराजमान कर निकाली गई यात्राएं, जलाशयों में कराया गया स्नान

जयपुर. छोटी काशी में बुधवार को जलझूलनी एकादशी पर ठाकुर जी को डोल में विराजमान कर यात्राएं निकाली गई. जलाशयों में ठाकुर जी को नौका विहार और स्नान कराया गया. वहीं जयपुर के आराध्य गोविंददेवजी मंदिर में ग्वाल झांकी के बाद शालिग्राम जी को खाट पर विराजमान कर तुलसी मंच पर ले जाया गया और पंचामृत अभिषेक किया (Jal Jhulni Ekadashi celebrated in Jaipur) गया.

जलझूलनी एकादशी पर भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा अर्चना की गई. भगवान कृष्ण के जन्म के 18वें डोल ग्यारस उत्सव के रूप में जाना जाता है. कहा जाता है कि इसी दिन माता यशोदा ने नन्हे कान्हा को डोल में बैठा कर तालाब के घाट पर ले जाकर जल और घाट की पूजा की थी. यही परंपरा बुधवार को छोटीकाशी जयपुर में भी निभाई गई. जहां ठाकुर जी को फूलों से सजी पालकी में विराजमान कर जयकारा लगाते हुए परकोटे में तालकटोरा और नजदीकी जलाशयों तक ले जाया गया. यहां भगवान को स्नान करा नौका विहार भी कराया गया. साथ ही डोल यात्राएं निकाली गई.

पढ़ें: जलझूलनी एकादशी पर पुष्कर में मंदिरों से धूमधाम से निकली रेवाड़िया

उधर. गोविंद देव जी मंदिर में ठाकुर जी को नटवर वेश में शृंगार किया गया. ग्वाल झांकी के बाद शालिग्राम जी को खाट पर विराजमान कर मंदिर के तुलसी मंच पर ले जाया गया. यहां पंचामृत अभिषेक कर आरती की गई. इसके बाद तुलसी मंच की चार परिक्रमा कर दोबारा शालिग्राम जी को खाट पर विराजमान कर मंदिर की एक परिक्रमा कर वापस निज मंदिर लाया गया. इसके अलावा राजधानी के दूसरे कृष्ण मंदिरों पुरानी बस्ती स्थित गोपीनाथ जी, गोनेर स्थित लक्ष्मी जगदीश महाराज, जगतपुरा स्थित इस्कॉन और वैशाली नगर स्थित अक्षय पात्र मंदिर में भी जलझूलनी एकादशी पर विशेष झांकियां सजा मेले, सजीव झांकी, शोभायात्रा और अन्य आयोजन किए गए.

पढ़ें: जलझूलनी ग्यारस पर सोने के पालने में विराजमान होकर निकले ठाकुर जी, प्रभु के रंग में रंगे भक्त

वैष्णव संप्रदाय के अनुयायियों ने जलझूलनी एकादशी पर व्रत भी रखा. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जलझूलनी एकादशी पर क्षीरसागर में योग निद्रा में लीन भगवान विष्णु करवट बदलते हैं. इस एकादशी के व्रत को करने से वाजपेय यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है.

जयपुर. छोटी काशी में बुधवार को जलझूलनी एकादशी पर ठाकुर जी को डोल में विराजमान कर यात्राएं निकाली गई. जलाशयों में ठाकुर जी को नौका विहार और स्नान कराया गया. वहीं जयपुर के आराध्य गोविंददेवजी मंदिर में ग्वाल झांकी के बाद शालिग्राम जी को खाट पर विराजमान कर तुलसी मंच पर ले जाया गया और पंचामृत अभिषेक किया (Jal Jhulni Ekadashi celebrated in Jaipur) गया.

जलझूलनी एकादशी पर भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा अर्चना की गई. भगवान कृष्ण के जन्म के 18वें डोल ग्यारस उत्सव के रूप में जाना जाता है. कहा जाता है कि इसी दिन माता यशोदा ने नन्हे कान्हा को डोल में बैठा कर तालाब के घाट पर ले जाकर जल और घाट की पूजा की थी. यही परंपरा बुधवार को छोटीकाशी जयपुर में भी निभाई गई. जहां ठाकुर जी को फूलों से सजी पालकी में विराजमान कर जयकारा लगाते हुए परकोटे में तालकटोरा और नजदीकी जलाशयों तक ले जाया गया. यहां भगवान को स्नान करा नौका विहार भी कराया गया. साथ ही डोल यात्राएं निकाली गई.

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उधर. गोविंद देव जी मंदिर में ठाकुर जी को नटवर वेश में शृंगार किया गया. ग्वाल झांकी के बाद शालिग्राम जी को खाट पर विराजमान कर मंदिर के तुलसी मंच पर ले जाया गया. यहां पंचामृत अभिषेक कर आरती की गई. इसके बाद तुलसी मंच की चार परिक्रमा कर दोबारा शालिग्राम जी को खाट पर विराजमान कर मंदिर की एक परिक्रमा कर वापस निज मंदिर लाया गया. इसके अलावा राजधानी के दूसरे कृष्ण मंदिरों पुरानी बस्ती स्थित गोपीनाथ जी, गोनेर स्थित लक्ष्मी जगदीश महाराज, जगतपुरा स्थित इस्कॉन और वैशाली नगर स्थित अक्षय पात्र मंदिर में भी जलझूलनी एकादशी पर विशेष झांकियां सजा मेले, सजीव झांकी, शोभायात्रा और अन्य आयोजन किए गए.

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वैष्णव संप्रदाय के अनुयायियों ने जलझूलनी एकादशी पर व्रत भी रखा. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जलझूलनी एकादशी पर क्षीरसागर में योग निद्रा में लीन भगवान विष्णु करवट बदलते हैं. इस एकादशी के व्रत को करने से वाजपेय यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है.

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