जयपुर. भारत में हर क्षेत्र का खान पान मशहूर है. चाहे वह राजस्थान का दाल-बाटी-चूरमा हो या गुजरात का थेपला हो, महाराष्ट्र का बड़ा पाव हो या फिर तमिलनाडु का सांभर डोसा, इन परंपरागत व्यंजनों को लेकर आयुष मंत्रालय रिसर्च करेगा और इसको जिम्मा जयपुर स्थित राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान को सौंपा गया है.
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इसके तहत संस्थान यह पता लगाया कि जिस वातावरण और जिन स्थानों पर परंपरागत व्यंजन काफी वर्षों से उपयोग में लाए जा रहे हैं, उसका सेहत पर क्या असर पड़ रहा है. क्योंकि, आयुर्वेद संस्थान के अनुसार भारत के हर क्षेत्र के मशहूर व्यंजन काफी पौष्टिक हैं. संस्थान यह पता लगाएगा कि भारतवर्ष में मौसम के हिसाब से खान-पान में आखिर क्यों बदलाव किए जाते हैं.
इन पारंपरिक व्यंजनों को किया गया शामिल
- राजस्थान- दाल,बाटी, चूरमा
- गुजरात- थेपला, खांडवी, पंकी
- महाराष्ट्र- बड़ा पाव, मोदक, थालीपीठ, श्रीखंड
- दिल्ली- चाट, छोले-भटूरे, परांठा-तंदूरी चिकन
- बिहार- लिट्टी-चोखा, तिलकुट, सत्तू, खाजा
- मध्य प्रदेश- बाफला बाटी, भोपाली कबाब
- कर्नाटक- मैसूर पाक, केसरी और बीसी बेले भात
- पंजाब- मक्का-रोटी, सरसों का साग, कुल्चा
- तमिलनाडु- अप्पम, इडली, सांभर, डोसा, पोंगल
- आंध्र प्रदेश- बिरयानी, मिर्ची की सेनल, कोरी-कोरा
- केरल- मालाबार परांठा, सध्या मील
- हरियाणा- छाछ, लस्सी, बाजरे की खिचड़ी और काचरी की सब्जी
आयुर्वेद संस्थान देश के सभी राज्यों के व्यंजनों को लेकर एक रिकॉर्ड तैयार करेगा और इसे केंद्र सरकार को सौंपेगा.