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Special : 294 साल से जयपुर में बरकरार विरासत, वास्तु और धर्म नगरी का संगम

18 नवंबर 1727 को बसा जयपुर आज 294 साल का हो गया है. यहां के किले, महल, चौपड़ और रास्ते जयपुर की विरासत को आज भी समेटे हुए हैं. नाहरगढ़ की पहाड़ियों से निगरानी रखने वाले गढ़ गणेश, आराध्य गोविंददेवजी और तीनों चौपड़ों पर एक ही शैली और समकोण में बने ऐतिहासिक मंदिरों की वजह से जयपुर छोटीकाशी भी कहलाता है.

jaipur city turns 294, Jaipur Foundation Day
294 साल का जयपुर
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Published : Nov 18, 2021, 2:33 PM IST

जयपुर. बनारस की भोर, प्रयाग की दोपहरी, अवध की शाम और बुंदेलखंड की रात जैसा नजारा यदि कहीं देखने को मिलता है तो वो है पिंक सिटी जयपुर. जयपुर आज 294 साल का हो गया है. बावजूद इसके आज भी इसका विरासतीय अंदाज बरकरार है. विश्व पटल पर जयपुर की छवि हेरिटेज लुक के साथ-साथ छोटीकाशी और वास्तुकला के नाते भी बनी हुई है. आपको जानकर हैरानी होगी कि यहां कारीगरों के काम के हिसाब से मोहल्लों का नाम पड़ा.

294 साल का जयपुर

ऐतिहासिक जयपुर आज अपना 294वां स्थापना दिवस मना रहा है. यहां के किले, महल, चौपड़ और रास्ते जयपुर की विरासत को आज भी समेटे हुए हैं. विकास के नाम पर बहुत कुछ बदलने के बाद भी ऐसा ही लगता है, जैसे आज भी जयपुर में कुछ न बदला हो. यही वजह है कि इसे वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल किया गया और इसकी बसावट निहारने के लिए हर साल लाखों देशी-विदेशी पावणे समंदर पार से खींचे चले आते हैं.

पढ़ें- Jaipur Foundation Day 2021: हेरिटेज और ग्रेटर निगम महापौर ने दिया गणेश जी को दिया पहला न्यौता, एक साथ की पूजा

सवाई जयसिंह द्वितीय ने रखी थी जयपुर की नींव

18 नवंबर 1727 को महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने जयपुर की नींव रखी थी. बंगाल के वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य ने यहां वर्षा जल संचयन और बारिश के निकासी का विशेष इंतजाम किया, जो आज भी आधुनिक भारत के ज्यादातर शहरों में देखने को नहीं मिलता. नाहरगढ़ की पहाड़ियों से निगरानी रखने वाले गढ़ गणेश, आराध्य गोविंददेवजी और तीनों चौपड़ों पर एक ही शैली और समकोण में बने ऐतिहासिक मंदिरों की वजह से जयपुर छोटीकाशी भी कहलाता है.

500 से ज्यादा भगवान श्री कृष्ण के मंदिर

इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत के अनुसार जयपुर एक धार्मिक नगरी के रूप में बसा, जिसकी होड़ बनारस, मथुरा, प्रयागराज से होती है. सवाई जयसिंह धार्मिक नगरियों में मुगल सूबेदार रहे और वहां की धार्मिक सभ्यता को जयपुर में लाने की कोशिश की. यहां 500 से ज्यादा भगवान श्री कृष्ण और 250 से ज्यादा भगवान श्री राम के मंदिर हैं. यही नहीं ताड़केश्वर महादेव को काशी विश्वनाथ का स्वरूप भी कहते हैं. इतिहासकार टीके मूलर ने तो ये तक कहा था कि जयपुर में कहां सिर नहीं झुकाऊं, यहां तो हर दरवाजा एक मंदिर में खुलता है.

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सवाई मानसिंह द्वितीय

परकोटा है जयपुर की शान

इसी जयपुर की शान है यहां का परकोटा. गंगापोल गेट की नींव के साथ इसका निर्माण हुआ. यहां नौ ग्रहों के आधार पर 9 चौकड़िया, 8 दरवाजे युक्त परकोटा बनवाया. पूर्व से पश्चिम की ओर जाती सड़क पर पूर्व में सूरजपोल और पश्चिम में चांदपोल बनाया गया. यहां के ऐतिहासिक महल, पुराने घरों में लगे गुलाबी धौलपुरी पत्थर और गेरुआ रंग रोगन जयपुर की पहचान में शामिल है. जिसकी वजह से प्रिंस ऑफ वेल्स अल्बर्ट ने जयपुर को पिंक सिटी नाम भी दिया था.

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जयपुर का परकोटा

माणक चौक चौपड़ पर सजती थी जवाहरात की सबसे बड़ी मंडी

इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि यहां कारीगरों के काम के हिसाब से मोहल्ले बसे. चौकड़ी मोदीखाना में पीतल का काम, मनिहारों के रास्ते में लाख का काम, खेजड़ों के रास्ते में संगमरमर पर नक्काशी आज भी प्रचलित है. यही नहीं माणक चौक चौपड़ पर जवाहरात की सबसे बड़ी मंडी सजती थी.

देखने को मिलती है मुगल शैली

जयपुर की बसावट में मुगल शैली भी देखने को मिलती है. इसका कारण बताते हुए देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि मुगल और आमेर रियासत के संबंध थे. ये एक ऐसी संधि थी जिसमें अकबर का राज्य विस्तार और व्यापारिक नीति मिर्जा राजा जयसिंह की हुआ करती थी. यही नहीं दिल्ली और आगरा से नजदीकी होने के चलते यहां उन्हीं कारीगरों की ओर से काम किया गया. नतीजन यहां की चित्रकारी और भवनों की बनावट में मुगल शैली नजर आती है.

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हवामहल

समय के साथ आए बदलाव

294 साल के जयपुर में समय के साथ बहुत से बदलाव आते गए. विरासत के बीच आज जयपुर प्रगति के पथ पर भी आगे बढ़ रहा है. एलिवेटेड और भूमिगत मेट्रो, मल्टीनेशनल कंपनी बड़े-बड़े मॉल्स और दौड़ भाग भरी जिंदगी के बीच आज का जयपुर हाईटेक जरूर हुआ है, लेकिन इससे शहर की विरासत पर कुछ खास असर नहीं पड़ा. शहर स्मार्ट भी हुआ और यहां मेट्रो भी दौड़ रही है. लेकिन अभी भी ये हेरिटेज सिटी के नाम से जाना जाता है. यहां की सैकड़ों साल पुरानी विरासत बदस्तूर जवां है.

जयपुर. बनारस की भोर, प्रयाग की दोपहरी, अवध की शाम और बुंदेलखंड की रात जैसा नजारा यदि कहीं देखने को मिलता है तो वो है पिंक सिटी जयपुर. जयपुर आज 294 साल का हो गया है. बावजूद इसके आज भी इसका विरासतीय अंदाज बरकरार है. विश्व पटल पर जयपुर की छवि हेरिटेज लुक के साथ-साथ छोटीकाशी और वास्तुकला के नाते भी बनी हुई है. आपको जानकर हैरानी होगी कि यहां कारीगरों के काम के हिसाब से मोहल्लों का नाम पड़ा.

294 साल का जयपुर

ऐतिहासिक जयपुर आज अपना 294वां स्थापना दिवस मना रहा है. यहां के किले, महल, चौपड़ और रास्ते जयपुर की विरासत को आज भी समेटे हुए हैं. विकास के नाम पर बहुत कुछ बदलने के बाद भी ऐसा ही लगता है, जैसे आज भी जयपुर में कुछ न बदला हो. यही वजह है कि इसे वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल किया गया और इसकी बसावट निहारने के लिए हर साल लाखों देशी-विदेशी पावणे समंदर पार से खींचे चले आते हैं.

पढ़ें- Jaipur Foundation Day 2021: हेरिटेज और ग्रेटर निगम महापौर ने दिया गणेश जी को दिया पहला न्यौता, एक साथ की पूजा

सवाई जयसिंह द्वितीय ने रखी थी जयपुर की नींव

18 नवंबर 1727 को महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने जयपुर की नींव रखी थी. बंगाल के वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य ने यहां वर्षा जल संचयन और बारिश के निकासी का विशेष इंतजाम किया, जो आज भी आधुनिक भारत के ज्यादातर शहरों में देखने को नहीं मिलता. नाहरगढ़ की पहाड़ियों से निगरानी रखने वाले गढ़ गणेश, आराध्य गोविंददेवजी और तीनों चौपड़ों पर एक ही शैली और समकोण में बने ऐतिहासिक मंदिरों की वजह से जयपुर छोटीकाशी भी कहलाता है.

500 से ज्यादा भगवान श्री कृष्ण के मंदिर

इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत के अनुसार जयपुर एक धार्मिक नगरी के रूप में बसा, जिसकी होड़ बनारस, मथुरा, प्रयागराज से होती है. सवाई जयसिंह धार्मिक नगरियों में मुगल सूबेदार रहे और वहां की धार्मिक सभ्यता को जयपुर में लाने की कोशिश की. यहां 500 से ज्यादा भगवान श्री कृष्ण और 250 से ज्यादा भगवान श्री राम के मंदिर हैं. यही नहीं ताड़केश्वर महादेव को काशी विश्वनाथ का स्वरूप भी कहते हैं. इतिहासकार टीके मूलर ने तो ये तक कहा था कि जयपुर में कहां सिर नहीं झुकाऊं, यहां तो हर दरवाजा एक मंदिर में खुलता है.

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सवाई मानसिंह द्वितीय

परकोटा है जयपुर की शान

इसी जयपुर की शान है यहां का परकोटा. गंगापोल गेट की नींव के साथ इसका निर्माण हुआ. यहां नौ ग्रहों के आधार पर 9 चौकड़िया, 8 दरवाजे युक्त परकोटा बनवाया. पूर्व से पश्चिम की ओर जाती सड़क पर पूर्व में सूरजपोल और पश्चिम में चांदपोल बनाया गया. यहां के ऐतिहासिक महल, पुराने घरों में लगे गुलाबी धौलपुरी पत्थर और गेरुआ रंग रोगन जयपुर की पहचान में शामिल है. जिसकी वजह से प्रिंस ऑफ वेल्स अल्बर्ट ने जयपुर को पिंक सिटी नाम भी दिया था.

jaipur city turns 294, Jaipur Foundation Day
जयपुर का परकोटा

माणक चौक चौपड़ पर सजती थी जवाहरात की सबसे बड़ी मंडी

इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि यहां कारीगरों के काम के हिसाब से मोहल्ले बसे. चौकड़ी मोदीखाना में पीतल का काम, मनिहारों के रास्ते में लाख का काम, खेजड़ों के रास्ते में संगमरमर पर नक्काशी आज भी प्रचलित है. यही नहीं माणक चौक चौपड़ पर जवाहरात की सबसे बड़ी मंडी सजती थी.

देखने को मिलती है मुगल शैली

जयपुर की बसावट में मुगल शैली भी देखने को मिलती है. इसका कारण बताते हुए देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि मुगल और आमेर रियासत के संबंध थे. ये एक ऐसी संधि थी जिसमें अकबर का राज्य विस्तार और व्यापारिक नीति मिर्जा राजा जयसिंह की हुआ करती थी. यही नहीं दिल्ली और आगरा से नजदीकी होने के चलते यहां उन्हीं कारीगरों की ओर से काम किया गया. नतीजन यहां की चित्रकारी और भवनों की बनावट में मुगल शैली नजर आती है.

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हवामहल

समय के साथ आए बदलाव

294 साल के जयपुर में समय के साथ बहुत से बदलाव आते गए. विरासत के बीच आज जयपुर प्रगति के पथ पर भी आगे बढ़ रहा है. एलिवेटेड और भूमिगत मेट्रो, मल्टीनेशनल कंपनी बड़े-बड़े मॉल्स और दौड़ भाग भरी जिंदगी के बीच आज का जयपुर हाईटेक जरूर हुआ है, लेकिन इससे शहर की विरासत पर कुछ खास असर नहीं पड़ा. शहर स्मार्ट भी हुआ और यहां मेट्रो भी दौड़ रही है. लेकिन अभी भी ये हेरिटेज सिटी के नाम से जाना जाता है. यहां की सैकड़ों साल पुरानी विरासत बदस्तूर जवां है.

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