ETV Bharat / city

Exclusive: बच्चों के पास ना वोट है, ना नोट है...आयोग आगे आकर काम करे : मनन चतुर्वेदी

आक्रामकता का शिकार हुए मासूम बच्चों का अंतरराष्ट्रीय दिवस हर साल 4 जून को मनाया जाता है. इस अंतरराष्ट्रीय दिवस पर बच्चों के अधिकारों और संरक्षण की बात होती है, लेकिन क्या वर्तमान में बच्चों पर अलग-अलग तरह से होने वाली घटनाओं में कोई कमी आई. क्या कोई कानून है, जो बच्चों के अधिकार के लिए काम करता है. वर्तमान में बच्चों के संरक्षण को लेकर किस तरह से काम होने चाहिए. इसको लेकर बाल संरक्षण आयोग की पूर्व अध्यक्ष ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की.

ईटीवी भारत से खास बातचीत  बच्चों के साथ हिंसा  आक्रमकता का शिकार बच्चे  जयपुर की खबर  jaipur news  former chairman manan chaturvedi  child protection commission
बाल सरक्षण आयोग की पूर्व अध्यक्ष मनन चतुर्वेदी
author img

By

Published : Jun 4, 2020, 5:15 PM IST

Updated : Jun 4, 2020, 7:53 PM IST

जयपुर. संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 19 अगस्त, 1982 से हर साल 4 जून को बच्चों का अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में घोषित किया था. इस दिवस का उद्देश्य आक्रमण के शिकार हुए बच्चों को यौन हिंसा, अपहरण से बचाना तथा उनके अधिकारों की रक्षा के लिए बात होती है. संयुक्त राष्ट्र का उद्देश्य दुनिया भर में उन बच्चों की पीड़ा को स्वीकार करने के लिए विस्तारित हुआ. जो शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक शोषण के शिकार हैं. यह संघर्ष की स्थितियों में बच्चों की स्थिति में सुधार के प्रयासों में एक ऐतिहासिक कदम था.

बच्चों का अंतरराष्ट्रीय दिवस

बाल संरक्षण आयोग की पूर्व अध्यक्ष मनन चतुर्वेदी ने बताया कि साल 1982 में हुए लेब्नान वॉर के बाद कई लोग प्रभावित हुए थे. उस वॉर के दौरान बच्चों ने भी बहुत कुछ खोया था और उत्पीड़न का सामना भी किया था. इसके बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 19 अगस्त, 1982 को हर साल 4 जून को इस दिवस के रूप में घोषित किया. इस दिन बच्चों पर होने वाली घटनों पर चर्चा हुई. यही वजह रही कि इसके बाद से बच्चों के अधिकारों को लेकर कई कानून और नियम बने. उनके न्याय को लेकर आवाजें उठने लगी. क्योंकि इस दिन कई तरह की एक्टिविटी होने लगी है. लेकिन, वर्तमान में देश एक बार फिर उसी दौर से गुजर रहा है.

यह भी पढ़ेंः कोरोना संकट में आत्महत्या जैसे कदम उठा रहे राजस्थान के पुलिसकर्मी, ADG ट्रेनिंग ने दिए तनाव कम करने के 11 टिप्स

वर्तमान में कोरोना वैश्विक महामारी संकट से विश्व गुजर रहा है. दुनिया थमी पड़ी है, फिर भी मासूम बच्चों-बच्चियों के साथ गुनाह नहीं रुक रहा. हाल ही में टोंक जिले में एक मासूम के ज्यादती की घटना हुई. इसी तरह से जयपुर में मेंटल चैलेंज (Mental challenge) बच्ची, जिसके साथ उसके अपने ही परिचितों ने दुष्कर्म किया. इन परिस्थितियों में भी इस तरह की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं.

बाल सरक्षण आयोग की पूर्व अध्यक्ष मनन चतुर्वेदी

मनन बताती हैं कि मासूमों के साथ जितनी भी घटनाएं सामने आ रही हैं, उनमें ज्यादातर मामलों में परिचित या आसपास के लोग होते हैं. जहां से वो हर दिन गुजरते हैं. बच्चे अच्छे बुरे के बारे में नहीं जानते वे मासूम होते हैं. उन्हें तो ये भी पता नहीं होता कि, जिस सख्स को अपना मानकर वे उसके साथ हैं, वही उनके साथ घटना करेंगे. अत्याचार में दुष्कर्म की घटना ही नहीं है. बल्कि मेंटल हैरेसमेंट, मेंटली टॉर्चर और मेंटल ट्रॉमा जैसी बहुत सारी घटनाएं हैं, जिनसे बच्चे प्रताड़ित हैं. इन घटनाओं को कम करने के लिए सभी को साथ मिलकर काम करना होगा.

यह भी पढ़ेंः कहासुनी के बाद बढ़े विवाद में पति ने गला घोंटकर की पत्नी की हत्या...खुद फोन कर पुलिस को दी जानकारी

चतुर्वेदी ने कहा कि सरकार की तरफ से कानून बने हुए हैं. कई तरह की योजनाएं भी हैं, लेकिन तुरंत कार्रवाई करने की जरूरत है. आयोग के पास सख्तियां हैं, उसकी कड़ाई से पालना कराई जानी चाहिए. जरूरत है पेंडेंसी खत्म करने और उसे फॉलो करने की, ताकि समय पर पीड़ित को न्याय और आरोपी को सजा मिल सके. उन्होंने कहा कि बच्चों के पास ना वोट होते हैं ना नोट होते हैं और ना ही होठ होते हैं. ऐसे में बच्चों की आवाज बनने के लिए आयोग को आगे आना ही पड़ेगा. वर्तमान में सभी को, जो बच्चों के लिए डायरेक्ट और इन डायरेक्ट काम कर रहे हैं. उनको एक साथ मिलकर काम करना होगा. किसी भी केस को तब तक फॉलो करना होगा, जब तक उसका निस्तारण नहीं हो जाता, तभी जाकर इन आंकड़ों में कमी ला पाएंगे.

बच्चों के खिलाफ हिंसा पर एक नजर...

  • दुनिया भर में 1 बिलियन से अधिक बच्चे हिंसा से प्रभावित
  • दुनिया के 50 प्रतिशत बच्चे हर साल हिंसा का अनुभव करते हैं
  • हर 5 मिनट में, दुनिया में कहीं ना कहीं एक बच्चे की मौत हिंसा से होती है
  • 18 साल की आयु से पहले 10 में से एक बच्चे का यौन शोषण किया जाता है
  • कोई भी बच्चा ऑनलाइन हिंसा का शिकार हो सकता है
  • दुनिया भर में 246 मिलियन बच्चे हर साल स्कूल-संबंधित हिंसा से प्रभावित होते हैं
  • हर तीन में से एक छात्र को उसके साथियों द्वारा धमकाया जाता है और 10 में से कम से कम 1 बच्चा साइबर बुलिंग का शिकार होता है. (संयुक्त राष्ट्र, 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक)
  • 10 में से 9 बच्चे ऐसे देशों में रहते हैं, जहां शारीरिक दंड पूरी तरह से प्रतिबंधित नहीं है. 732 मिलियन बच्चों को कानूनी संरक्षण के बिना छोड़ दिया गया है

भारत में बाल संरक्षण के कड़े नियम

भारत में भी पिछले कुछ साल में बाल हिंसा को रोकने के लिए कई कानून में बदलाव किए गए हैं. प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ओफ्फेंसेस एक्ट (पॉक्सो) एक्ट लागू किया गया. इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध में अलग-अलग सजा का प्रावधान है. इसके अलावा बाल यौन अपराध संरक्षण नियम, 2020 जागरुकता और क्षमता निर्माण के तहत केंद्र और राज्य सरकारों को बच्चों के लिये आयु-उपयुक्त शैक्षिक सामग्री और पाठ्यक्रम तैयार करने के लिये कहा गया है. बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम में बच्चों के साथ होने वाली यौन हिंसा को भी परिभाषित किया गया है. ऐसे मामलों में बच्चों को हर स्तर पर क्या जरूरी सहायता देनी है. ये भी विस्तार से दिया गया है. चाइल्ड पोर्नोग्राफी से जुड़े प्रावधानों को भी कठोर किया गया है.

जयपुर. संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 19 अगस्त, 1982 से हर साल 4 जून को बच्चों का अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में घोषित किया था. इस दिवस का उद्देश्य आक्रमण के शिकार हुए बच्चों को यौन हिंसा, अपहरण से बचाना तथा उनके अधिकारों की रक्षा के लिए बात होती है. संयुक्त राष्ट्र का उद्देश्य दुनिया भर में उन बच्चों की पीड़ा को स्वीकार करने के लिए विस्तारित हुआ. जो शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक शोषण के शिकार हैं. यह संघर्ष की स्थितियों में बच्चों की स्थिति में सुधार के प्रयासों में एक ऐतिहासिक कदम था.

बच्चों का अंतरराष्ट्रीय दिवस

बाल संरक्षण आयोग की पूर्व अध्यक्ष मनन चतुर्वेदी ने बताया कि साल 1982 में हुए लेब्नान वॉर के बाद कई लोग प्रभावित हुए थे. उस वॉर के दौरान बच्चों ने भी बहुत कुछ खोया था और उत्पीड़न का सामना भी किया था. इसके बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 19 अगस्त, 1982 को हर साल 4 जून को इस दिवस के रूप में घोषित किया. इस दिन बच्चों पर होने वाली घटनों पर चर्चा हुई. यही वजह रही कि इसके बाद से बच्चों के अधिकारों को लेकर कई कानून और नियम बने. उनके न्याय को लेकर आवाजें उठने लगी. क्योंकि इस दिन कई तरह की एक्टिविटी होने लगी है. लेकिन, वर्तमान में देश एक बार फिर उसी दौर से गुजर रहा है.

यह भी पढ़ेंः कोरोना संकट में आत्महत्या जैसे कदम उठा रहे राजस्थान के पुलिसकर्मी, ADG ट्रेनिंग ने दिए तनाव कम करने के 11 टिप्स

वर्तमान में कोरोना वैश्विक महामारी संकट से विश्व गुजर रहा है. दुनिया थमी पड़ी है, फिर भी मासूम बच्चों-बच्चियों के साथ गुनाह नहीं रुक रहा. हाल ही में टोंक जिले में एक मासूम के ज्यादती की घटना हुई. इसी तरह से जयपुर में मेंटल चैलेंज (Mental challenge) बच्ची, जिसके साथ उसके अपने ही परिचितों ने दुष्कर्म किया. इन परिस्थितियों में भी इस तरह की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं.

बाल सरक्षण आयोग की पूर्व अध्यक्ष मनन चतुर्वेदी

मनन बताती हैं कि मासूमों के साथ जितनी भी घटनाएं सामने आ रही हैं, उनमें ज्यादातर मामलों में परिचित या आसपास के लोग होते हैं. जहां से वो हर दिन गुजरते हैं. बच्चे अच्छे बुरे के बारे में नहीं जानते वे मासूम होते हैं. उन्हें तो ये भी पता नहीं होता कि, जिस सख्स को अपना मानकर वे उसके साथ हैं, वही उनके साथ घटना करेंगे. अत्याचार में दुष्कर्म की घटना ही नहीं है. बल्कि मेंटल हैरेसमेंट, मेंटली टॉर्चर और मेंटल ट्रॉमा जैसी बहुत सारी घटनाएं हैं, जिनसे बच्चे प्रताड़ित हैं. इन घटनाओं को कम करने के लिए सभी को साथ मिलकर काम करना होगा.

यह भी पढ़ेंः कहासुनी के बाद बढ़े विवाद में पति ने गला घोंटकर की पत्नी की हत्या...खुद फोन कर पुलिस को दी जानकारी

चतुर्वेदी ने कहा कि सरकार की तरफ से कानून बने हुए हैं. कई तरह की योजनाएं भी हैं, लेकिन तुरंत कार्रवाई करने की जरूरत है. आयोग के पास सख्तियां हैं, उसकी कड़ाई से पालना कराई जानी चाहिए. जरूरत है पेंडेंसी खत्म करने और उसे फॉलो करने की, ताकि समय पर पीड़ित को न्याय और आरोपी को सजा मिल सके. उन्होंने कहा कि बच्चों के पास ना वोट होते हैं ना नोट होते हैं और ना ही होठ होते हैं. ऐसे में बच्चों की आवाज बनने के लिए आयोग को आगे आना ही पड़ेगा. वर्तमान में सभी को, जो बच्चों के लिए डायरेक्ट और इन डायरेक्ट काम कर रहे हैं. उनको एक साथ मिलकर काम करना होगा. किसी भी केस को तब तक फॉलो करना होगा, जब तक उसका निस्तारण नहीं हो जाता, तभी जाकर इन आंकड़ों में कमी ला पाएंगे.

बच्चों के खिलाफ हिंसा पर एक नजर...

  • दुनिया भर में 1 बिलियन से अधिक बच्चे हिंसा से प्रभावित
  • दुनिया के 50 प्रतिशत बच्चे हर साल हिंसा का अनुभव करते हैं
  • हर 5 मिनट में, दुनिया में कहीं ना कहीं एक बच्चे की मौत हिंसा से होती है
  • 18 साल की आयु से पहले 10 में से एक बच्चे का यौन शोषण किया जाता है
  • कोई भी बच्चा ऑनलाइन हिंसा का शिकार हो सकता है
  • दुनिया भर में 246 मिलियन बच्चे हर साल स्कूल-संबंधित हिंसा से प्रभावित होते हैं
  • हर तीन में से एक छात्र को उसके साथियों द्वारा धमकाया जाता है और 10 में से कम से कम 1 बच्चा साइबर बुलिंग का शिकार होता है. (संयुक्त राष्ट्र, 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक)
  • 10 में से 9 बच्चे ऐसे देशों में रहते हैं, जहां शारीरिक दंड पूरी तरह से प्रतिबंधित नहीं है. 732 मिलियन बच्चों को कानूनी संरक्षण के बिना छोड़ दिया गया है

भारत में बाल संरक्षण के कड़े नियम

भारत में भी पिछले कुछ साल में बाल हिंसा को रोकने के लिए कई कानून में बदलाव किए गए हैं. प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ओफ्फेंसेस एक्ट (पॉक्सो) एक्ट लागू किया गया. इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध में अलग-अलग सजा का प्रावधान है. इसके अलावा बाल यौन अपराध संरक्षण नियम, 2020 जागरुकता और क्षमता निर्माण के तहत केंद्र और राज्य सरकारों को बच्चों के लिये आयु-उपयुक्त शैक्षिक सामग्री और पाठ्यक्रम तैयार करने के लिये कहा गया है. बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम में बच्चों के साथ होने वाली यौन हिंसा को भी परिभाषित किया गया है. ऐसे मामलों में बच्चों को हर स्तर पर क्या जरूरी सहायता देनी है. ये भी विस्तार से दिया गया है. चाइल्ड पोर्नोग्राफी से जुड़े प्रावधानों को भी कठोर किया गया है.

Last Updated : Jun 4, 2020, 7:53 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.