जयपुर. बिल्ली ने रास्ता काट लिया, बिल्ली रो रही है, काली बिल्ली देख ली जरूर कुछ अशुभ होगा, बिल्लियों को लेकर (Cat Day Special) कुछ ऐसी ही सोच और मान्यता समाज में प्रचलित है. खासकर राजस्थान में तो इन्हें अच्छे नजरिए से नहीं देखा जाता. या यूं कहें कि अशुभ माना जाता है. बिल्ली के रास्ता काटते ही लोग अपने कदम रोक लेते हैं, लेकिन जयपुर में एक महिला ऐसी भी हैं जो बिल्लियों की पालनहार बनीं. जिसने लोगों में बिल्लियों से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करने का कदम उठाया. वो महिला हैं डॉ. रीमा हूजा, जो आज 100 से ज्यादा 'बिल्ली मौसी' की मां बनकर उनका ध्यान रखती हैं.
मोहिनी, मल्लिका, कालिका, देविका, चंद्रिका, पिंकी, मिंकी, टिंकू, चिंटू, ये किसी क्लास में बैठे बच्चों के नहीं बल्कि उन बिल्लियों के नाम हैं, जिन्हें पेट्स लवर रीमा हूजा अपने घर में रखती हैं. मूलरूप से इतिहासकार रीमा हूजा के घर में 100 से ज्यादा बिल्लियां हैं. रीमा हूजा ने बताया कि कई बार इनमें लड़ाई भी हो जाती है और जब इन्हें कहते हैं कि कौन शोर मचा रहा है तो सारी बिल्लियां ऐसे चुप हो जाती हैं, मानो किसी क्लास रूम में मॉनिटर या टीचर आ गई हो. वो एक दूसरे को इस तरह से देखती हैं, मानो ये कह रही हों कि शोर वो नहीं कोई और मचा रही है. आलम ये है कि किसी बिल्ली को यदि गलत नाम से पुकार लो तो वो जवाब तक नहीं देतीं. वो समझती हैं कि उसे नहीं किसी और को ही बुला रहे हैं. ये जुबान भले ही नहीं समझती हों, लेकिन टोन जरूर समझ जाती हैं.
रीमा ने इन बिल्लियों की देखभाल के लिए बाकायदा स्टाफ लगा रखा है और जब भी उन्हें मौका मिलता है, वो भी अपना पूरा समय देती हैं. रीमा ने कहा कि उन्होंने बिल्लियों को पाला हुआ है या बिल्लियों ने उन्हें, ये तो कह नहीं सकते. लेकिन बचपन में उनके घर में कुत्ते-बिल्ली साथ रहते थे. उन्होंने देखा है किस तरह उनकी बिल्ली अपने बच्चों के साथ डॉग के पिल्लों को और इसी तरह डॉग्स अपने पिल्लों के साथ किटन्स को भी दूध पिलाते थे. ऐसे में शुरुआत से ही उन्हें पेट्स का शौक था. उनकी माता भी सायामीस कैट रखती थीं और करीब 20 साल पहले बाहर से भी देशी बिल्लियां उनके घर आने लगीं. फिर आसपास के लोगों ने भी यहां बिल्लियां छोड़ना शुरू कर दिया. कुछ लोग किटन्स को भी छोड़ जाते हैं, जिन्हें ड्रॉपर से दूध पिलाना पड़ता है.
रीमा हूजा ने बताया कि लोगों को बिल्लियों से डर भी लगता है, उन्हें अशुभ भी मानते हैं और उनके साथ कैसा बर्ताव किया जाए ये भी नहीं जानते. कुछ लोग छोटी बिल्लियों को पाल लेते हैं, फिर उनसे लगाव हो जाता है और यदि उन्हें कहीं मूव करना होता है तो वो भी अपनी बिल्लियों को यहीं छोड़ जाते हैं. रीमा हूजा ने अपने चैलेंज बताए कि छोटी-छोटी चीजों से आसपास के लोग परेशान हो जाते हैं. 100 से ज्यादा बिल्लियां हैं, इसलिए सफाई की भी परेशानी रहती है. दुर्गंध भी काफी आती है. खाना और दूध की व्यवस्था करना और सबसे बड़ा चैलेंज होता है इनकी सेहत का ध्यान रखना. समय से एनिमल बर्थ कंट्रोल कराना. इसमें फाइनेंस भी एक चुनौती ही रहती है.
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उन्होंने बताया कि राजस्थान में भले ही इन्हें पसंद नहीं किया जाता, लेकिन उनका जो स्टाफ पश्चिम बंगाल से है, जहां बिल्लियों को लक्ष्मी के रूप में (August 8 is International Cat Day) देखा जाता है. दिवाली पर भी लोग बिल्लियों को देखना शुभ मानते हैं. इन्हें कभी अशुभ, तो कभी शुभ कहा जाता है. ऐसे में ये महज दो पैर वालों की सोच का विषय है. हालांकि, अब यूरोप से लेकर मुंबई तक बहुत से लोगों को बिल्ली पालने का शौक हो गया है.
कुछ लोग भी उनकी मदद भी करते हैं. कभी कुछ खाने का तो कुछ बैठने के लिए सामान दे देते हैं. यहां तक कि पिंजरे तक की व्यवस्था (Pets Lover Rima Hooja) करा देते हैं. यही नहीं, सर्दियों के दिनों में कपड़े और गर्मियों के दिनों में फैन तक डोनेट किए गए हैं. बहरहाल, बचपन से ही बिल्लियों के प्रति खास लगाव रखने वाली हूजा के लिए अब इतिहास की किताबों की तरह ही बिल्लियां भी जिन्दगी का एक अहम हिस्सा बन गई हैं. ना हूजा बिना बिल्लियां रह सकती हैं और ना हूजा के बिना ये बिल्लियां.