जयपुर. पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव (Famous Poet Ikram Rajasthani) मना रहा है. हर जगह जश्न है, जलसे हो रहे हैं. इस बीच जयपुर के शास्त्री नगर की हाउसिंग बोर्ड बस्ती में रहने वाले इकराम राजस्थानी 75 बरस की देश की आजादी के सफरनामे को अपने जिंदगी के साथ जोड़कर देखते हैं. देश की आजादी के साथ पैदा हुए इकराम राजस्थानी ने खुद के नाम के आगे राजस्थान को जोड़कर अपनी कलम और जुबां को देश प्रेम की दास्तां के नाम कर दिया. इकराम राजस्थानी साहित्य के नजरिए पर कहते हैं कि अंधेरा है वहां, जहां आदित्य नहीं है, मुर्दा है वह देश जहां साहित्य नहीं है.
जब राजनीति लड़खड़ाती है तो साहित्य उसे संभालता है : इकराम राजस्थानी ने इतिहास के झरोखे से 15 अगस्त (Indian Independence Day) के एक वाकये का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि जब पंडित जवाहरलाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे और लाल किले पर वह सीढ़ियां चढ़ रहे थे. उनके पीछे देश के जाने-माने कवि और साहित्यकारों की जमात चल रही थी. इसी दौरान जब पंडित जी लड़खड़ाए तो पीछे से उन्हें राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने संभाल लिया. इस दौरान हल्का सा मुस्कुराकर पंडित नेहरू ने दिनकर जी का आभार व्यक्त किया तो दिनकर जी ने कहा कि आभार की जरूरत नहीं है. जब-जब देश में राजनीति लड़खड़ाती है तो साहित्य ही उसे संभाल लेता है.
अब हम हिंदुस्तान में नहीं मजहब में बंट गए : कवि इकराम राजस्थानी कहते हैं कि वह मां सरस्वती से भी अक्सर यही दरख्वास्त करते हैं कि 'मेरी लेखनी पर इतना एहसान कर दे मां, मैं जो भी शब्द लिखूं, उसे हिंदुस्तान कर दे मां'. वे इस आजादी के लिए लड़ने वाले शहीदों का शुक्रिया भी अदा करते हैं. इकराम राजस्थानी कहते हैं कि जब हम आजादी के लिए लड़ रहे थे, तब हम मजहब के लिए नहीं हिंदुस्तान के लिए लड़ रहे थे. लेकिन आजादी मिलने के बाद (Ikram Rajasthani Patriotism) अब जब जश्न का मौका है तो हम हिंदुस्तान नहीं, मजहब में बंट गए हैं.
वे कहते हैं कि अब धर्म की धूल और मजहब की मिट्टी से किसी सवाल का खुलासा नहीं होने वाला. मंदिर, मस्जिद में वह चिराग क्यों जलाते हैं, जिससे उजाला नहीं होने वाला. वे एक शेर और सुनाते हैं और कहते हैं कि न जाने कैसे राह आसान होगी नदियों की, अब समंदर पूछता है पहचान नदियों की. इस तरह से इकराम राजस्थानी ने देश की कौमी एकता में पड़ रहे खलल पर भी निशाना साधा. उन्होंने कहा कि काशी-काबा सब रखेंगे, पर सबसे पहले हिंदुस्तान रखेंगे, ईमान की बात मैं ईमान से कहता हूं, सबसे पहले हम हिंदुस्तान रखेंगे.
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आजादी के अमृत महोत्सव पर अपनी कलम से लिखते हुए इकराम राजस्थानी कहते हैं कि 'जुड़े इस देश की मिट्टी से मेरा नाम रहता है, यह देश है राम का इसी में इकराम रहता है. मिली-जुली तहजीब का इससे ज्यादा बेहतर नमूना दुनिया में कहीं और हो नहीं सकता. उन्होंने आचार्य विनोबा भावे और उनके शिष्यों से जुड़ा एक दृष्टांत सुनाते हुए कहा कि भारत का एक नक्शा लेकर विनोबा भावे ने उसको टुकड़े-टुकड़े करके अपने शिष्यों को थमा दिया और कहा कि क्या कोई इसे जोड़कर दिखा सकता है. सारे शिष्य मिलकर कोशिश करते रहे, लेकिन शाम तक उन्हें कामयाबी नहीं मिली. इस बीच एक शिष्य ने कहा कि गुरु जी मैं यह कर सकता हूं और थोड़ी ही देर में उस शिष्य ने भारत के नक्शे को सही तरीके से जोड़कर सामने रख दिया. जब विनोबा भावे ने पूछा कि आपने यह मुश्किल काम कैसे किया तो शिष्य ने कहा कि एक तरफ भारत का नक्शा और एक तरफ एक आदमी का चित्र बना हुआ था. मैंने आदमी को जोड़ा और हिंदुस्तान बन गया.
गांधी जी पर इकराम राजस्थानी ने लिखी कविता : इकराम राजस्थानी एक किताब का जिक्र करते हैं, जिसे राजस्थानी भाषा में लिखा गया है. इस किताब का टाइटल है 'आजादी के भागीरथ गांधीजी'. इस किताब में अलग-अलग गीतकारों के की रचनाओं का संग्रह है. खुद इकराम राजस्थानी ने भी इस किताब के लिए गीत लिखा और ईटीवी भारत के साथ उसे गुनगुनाया. उन्होंने जीत की शुरुआत करते हुए कुछ पंक्तियां बोली और कहा कि 'बरस बीत गया अब दैवो थे संदेस बापूजी, थे भी आकर देखो थाको देश बापूजी' दब्या-दब्या कद तक रेस्यो बापू जी, आख्या खोलो कदै तक सूता रेस्यो बापूजी'. इकराम राजस्थानी ने कहा कि देश की मौजूदा व्यवस्था को लेकर अगर कोई भारतीय राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से गुहार लगाता तो शायद गीत के जरिए राजस्थानी में उसका अंदाज यही होता.
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