जयपुर. जिला प्रशासन, प्रशासनिक सेवाओं, राजस्व और पेंशन एवं सेवानिवृति की अनुदान मांगों पर बोलते हुए राठौड़ ने कहा कि सदन में बैठे एक मंत्री अपने जिले के कलेक्टर से चरण वंदना करवाकर आशीर्वाद देते हैं. राठौड़ ने कहा कि संविधान की ओर से दी गई शक्तियों के अधीन आल इंडिया सर्विस एक्ट 1951 बनाया गया. इस एक्ट में भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए भर्ती और सेवाओं का उल्लेख किया गया है.
वहीं इन सेवा के अधिकारियों के सार्वजनिक व्यवहार और दायित्वों को भी परिभाषित किया गया है. लेकिन यह भी सही है की सत्ता के साथ राजनीतिक निष्पक्षता और प्रतिबद्धता में बदल जाती है. मौजूदा समय में राजस्थान में राजनीतिक निष्पक्षता तब तार-तार हो गई, जब पंचायत राज अधिनियम 1954 की धारा 101 के अंतर्गत पंचायतों के पुनर्गठन के प्रस्ताव जिला कलक्टरों ने जिला निर्वाचन अधिकारी के रूप में कार्य करते हुए बनाए. यह सारे प्रस्ताव जिला कांग्रेस कमेटी के कार्यालय में तैयार हुए, जिस पर जिला निर्वाचन अधिकारी की डमी के रूप में जिला कलेक्टर ने हस्ताक्षर किए.
यह भी पढ़ेंः जब अपनी ही सरकार पर सवाल उठाकर खुद संभलना पड़ा डिप्टी CM को...
नियम यह भी है कि अखिल भारतीय सेवाओं का अधिकारी राजकीय दायित्वों के निर्वहन करते समय अपने परिवार, मित्र या स्वयं के लिए कोई वित्तीय लाभ स्वीकार नहीं करेगा. राठौड़ ने सवाल उठाया कि क्या आज तक किसी भी अधिकारी ने बताया या किसी भी अधिकारी को आज तक 25 हजार से अधिक का उपहार नहीं मिला. भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी के पद पर रहने वाले 5 सितारा होटलों और विदेश यात्रा की सेवाओं का लाभ विभिन्न व्यापारिक संस्थानों, एनजीओ व व्यक्तियों से लेते हैं. उनके अनुसार बड़ी संख्या में ऐसे अधिकारी भी हैं, जिनके परिजनों के नाम से करोड़ों अरबों रुपए की संपत्ति है. नियम के अंतर्गत तो बेनामी संपत्ति की घोषणा भी की जानी चाहिए, जिसके बारे में सोचना भी मजाक सा लगता है.
महिला आईएएस का नाम लेकर की टिप्पणी...
उन्होंने एक महिला आईएएस अधिकारी का नाम लेते हुए कहा कि वे अभी उपखंड अधिकारी हैं. उन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से फेसबुक और ट्वीटर पर नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ पोस्ट किया है. उसी अकाउंट से इस पोस्ट के बाद कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी को जन्म दिवस की बधाई भी दी है. यह किस राजनीतिक निष्पक्ष-निष्पक्षता का द्योतक है, यह बताने की आवश्यकता नहीं है.
माथुर आयोग की रिपोर्ट हुई गायब...
उन्होंने कहा कि प्रशासनिक सुधार के लिए मई 1999 में गठित शिवचरण माथुर आयोग ने अप्रैल 2000 में अपनी 11 रिपोर्ट सौंपी. वह आज दफ्तर दाखिल है. माथुर इस राज्य के 2 बार मुख्यमंत्री चार बार विभिन्न मंत्रालयों के मंत्री, सांसद और कई बार विधायक रहे. माथुर आयोग की 11 रिपोर्टों पर अमल करने के सुझावों के लिए साल 2002 में तत्कालीन सरकार ने एक मंत्रिमण्डलीय उपसमिति का भी गठन किया. लेकिन उप समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट पर कोई अमल नहीं किया गया. दोनों ही प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिशों पर राज्य के विधानमंडल में चर्चा नहीं हुई.
पटवारी के पास जाओ तो जेब में पैसा होना जरूरी है...
राजेंद्र राठौड़ ने अपने संबोधन में पटवारियों के साथ ही विभाग में हो रहे भ्रष्टाचार का भी उल्लेख किया. उन्होंने कहा कि जब हम आम आदमी की दृष्टि से प्रशासन की बात करते हैं तो उसका वास्ता पटवारी, ग्राम विकास अधिकारी, ग्राम सेवा सहकारी समिति का व्यवस्थापक, शिक्षक, स्वास्थ्य कार्यकर्ता, सिपाही आदि से पड़ता है. यह हमारे प्रशासन की प्राथमिक इकाईयां हैं. पटवारी प्रशासन की प्रथम इकाई है, लेकिन उनके पास जाओ तो एक हाथ जेब में रखना पड़ता है, एक हजार का नोट चाहिए.
राठौड़ ने कहा कि सरकार की शायद ही कोई ऐसी योजना हो, जिसमें शिक्षकों को न धकेला गया हो. शिक्षक अपने मूल कार्य के साथ न्याय नहीं कर पा रहा है. जहां शिक्षकों के रिक्त पदों को भरने की आवश्यकता है. वहीं शिक्षकों को शिक्षण के अलावा अन्य सभी कार्यों से मुक्त रखा जाना चाहिए. राठौड़ ने अपने संबोधन के दौरान 6 साल पहले बूंदी में वेयर हाउस के लिए 9 वाट की ओर से 200 करोड़ रुपए मंजूर करने के मामले में हुए घोटाले की भी चर्चा की.