जयपुर. साल 2021 समाप्त होने जा रहा है. राजस्थान की राजनीति में इस साल (Rajasthan politics in 2021) कई उतार चढ़ाव आए. हालांकि राजस्थान कांग्रेस संगठन और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के लिये यह साल बेहतरीन रहा. चुनावी नतीजे कांग्रेस के पक्ष में आए.
हालांकि एक व्यक्ति एक पद के चलते गोविंद सिंह डोटासरा को अपना मंत्री पद गंवाना पड़ा, लेकिन संगठन के मुखिया के तौर पर राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी में चल रही गुटबाजी को थामना, संगठन का विस्तार करना, कैबिनेट का पुनर्गठन करवाना और सबसे बड़ी बात चुनाव में जीत दर्ज करने के लिहाज से डोटासरा के लिए यह साल बेहतरीन साबित हुआ. साथ ही राजस्थान कांग्रेस की उपलब्धियां (Achievements of Rajasthan Congress in 2021) भी इस साल गिनाने लायक रहीं.
जनवरी 2021 में हुआ संगठन का विस्तार
साल 2020 में राजस्थान में जब राजनीतिक संकट आया तो सचिन पायलट को हटाकर गोविंद सिंह डोटासरा को राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया. तमाम प्रयासों के बावजूद 6 महीने तक डोटासरा अपना संगठन नहीं बना सके. आखिर इस साल के शुरुआत में जनवरी में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को उनकी 39 की कार्यकारिणी मिली, इससे उनका संगठन का काम शुरू हुआ.
5 में से 4 उपचुनाव और पंचायत चुनाव जीत
चुनाव में जीत के लिहाज से देखा जाए तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के लिए यह साल जबरदस्त सफलता लेकर आया. इस साल राजस्थान में 5 सीटों पर उपचुनाव में से 4 सीट पर कांग्रेस को जीत मिली. सहाड़ा, सुजानगढ़, वल्लभनगर और धरियावद में कांग्रेस पार्टी को जीत मिली. केवल राजसमंद में कांग्रेस पार्टी कुछ अंतर से चुनाव हारी.
कांग्रेस के लिए खास बात यह रही कि वल्लभनगर और धरियावद में तो भाजपा के लिए जमानत बचाना मुश्किल हो गया. इसी तरीके से जहां 2020 में 21 जिलों में हुए पंचायत चुनाव में कांग्रेस पार्टी को भाजपा से पिछड़ गए थी तो वहीं इस साल हुए 12 जिलों के पंचायत चुनाव में कांग्रेस ने जबरदस्त जीत दर्ज की और 12 में से 9 जिला प्रमुख कांग्रेस ने बनाए. इस लिहाज से यह साल गोविंद डोटासरा के लिए साल 2021 उपलब्धियों (Achievements of Dotasara ) भरा रहा.
मंत्रिमंडल पुनर्गठन, गुटबाजी थामने में सफलता
इस साल भले ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को अपना शिक्षा मंत्री पद एक व्यक्ति एक पद सिद्धांत के चलते छोड़ना पड़ा. लेकिन प्रदेश अध्यक्ष के नाते उन्होंने राजस्थान में लंबे समय से जिस कैबिनेट पुनर्गठन को लेकर इंतजार हो रहा था उस इंतजार को समाप्त करते हुए कैबिनेट पुनर्गठन करवाने में अहम भूमिका निभाई. इसके साथ ही राजस्थान में सचिन पायलट और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गुटों के बीच जो गुटबाजी चल रही थी उस गुटबाजी को भी कम करने में गोविंद डोटासरा कामयाब रहे.
संगठन में 13 जिलाध्यक्षों की हुई नियुक्ति
जहां जनवरी में राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष ने अपने संगठन में 39 पदाधिकारियों की कार्यकारिणी घोषित की, तो वहीं 1 दिसंबर को उन्होंने 13 नए जिला अध्यक्ष भी घोषित कर दिए. इसके साथ ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने राजस्थान कांग्रेस के कोषाध्यक्ष और 2 प्रवक्ताओं को नियुक्ति दिलवा कर अपने संगठन का विस्तार भी कर लिया.
राजस्थान में कांग्रेस की राष्ट्रव्यापी रैली
एक तरफ प्रदेश से जुड़े मसलों को तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद डोटासरा ने सुलझाने का प्रयास किया है. इसके साथ ही राजस्थान वह पहला राज्य बना जिसमें पहली बार दिल्ली के बाहर कोई कांग्रेस की राष्ट्रव्यापी रैली आयोजित हुई. रैली की सफलता ने डोटासरा के संगठन के मुखिया के तौर पर अपनी पकड़ को साबित भी किया.
डोटासरा के सामने चुनौतियां
कांग्रेस कार्यकर्ताओं को राजनीतिक नियुक्तियां दिलवाने, प्रदेश कार्यकारिणी का विस्तार करने और गुटबाजी को समाप्त करने के लिहाज से से कांग्रेस के लिए 2021 अच्छा गया. आगे आने वाला साल 2022 राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के लिए चुनौती भरा रहने वाला है, क्योंकि सरकार के 3 साल बीत जाने के बाद भी कांग्रेस का कार्यकर्ता अब भी खाली हाथ है. ऐसे में उसे राजनीतिक नियुक्ति दिलवाना एक संगठन के मुखिया के तौर पर डोटासरा की जिम्मेदारी भी है और आवश्यकता भी.
क्योंकि यही कांग्रेस कार्यकर्ता पार्टी को चुनाव में जीत दिलवाता है और उसकी नाराजगी दूर करना और सरकार में उसे भागीदारी दिलवाना एक प्रदेश कांग्रेस संगठन के मुखिया के तौर पर उनकी पहली जिम्मेदारी होगी. जिसे वह अब तक पूरा नहीं कर सके हैं.
इसके साथ ही डोटासरा के सामने दूसरी चुनौती सचिन पायलट और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीच चल रही गुटबाजी को पूरी तरीके से समाप्त करना है. हालांकि अभी राजस्थान में गुटबाजी थमी हुई है लेकिन यह कब तक शांत रहे कुछ कहा नहीं जा सकता. ऐसे में डोटासरा की जिम्मेदारी होगी कि दोनों नेताओं को कैसे एकजुट रखा जाए. इसके साथ ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर करीब डेढ़ साल का कार्यकाल गुजर जाने के बाद भी डोटासरा के पास पूरे जिलाध्यक्ष नहीं हैं.
इसके चलते संगठन का काम प्रभावित हो रहा है. ऐसे में उन्हें अपने संगठन के सभी जिला अध्यक्ष बनाना प्रकोष्ठ और विभागों का गठन करने के साथ ही अपनी कार्यकारिणी का विस्तार करना भी बड़ी चुनौती होगा. चुनौती इसलिए क्योंकि भले ही गोविंद डोटासरा के समय में कैबिनेट विस्तार संगठन का गठन हो गया हो लेकिन यह भी बिल्कुल साफ है कि अब तक जो भी काम किए गए हैं उनमें किसी तरीके का कोई विवाद नहीं था और जिन बातों पर विवाद हो सकता था उन्हें टाल दिया गया. ऐसे में अब राजनीतिक नियुक्तियां और संगठन के विस्तार में नेताओं के नाराजगी से भी डोटासरा को दो-चार होना पड़ सकता है.